📰 उत्तराखंड विशेष : रोजगार रिपोर्ट
उत्तराखंड में बेरोजगारी : 2009 से 2025
(हालात, हकीकत और भविष्य का गहन विश्लेषण)
📍मैं उत्तराखंड.... 📍
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में बेरोजगारी केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे और पलायन से जुड़ा एक गंभीर सवाल है।
"पहाड का पानी और पहाड की जवानी" कभी पहाड के काम नहीं आई। यह केवल एक कहावत नहीं, बल्कि उत्तराखंड की पुरानी पीड़ा है। दशकों से यहां की नदियां नीचे उतरकर मैदानों को हरा-भरा करती रहीं, लेकिन पहाड़ के खेत प्यासे रह गए। ठीक वैसे ही, यहां का हुनरमंद युवा रोजगार के अभाव में बड़े शहरों में चला गया और पीछे रह गए केवल बुजुर्ग और वीरान गांव। लेकिन 2009 से 2025 के आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ होता है कि पहाड़ की युवा आबादी लगातार रोजगार के लिए संघर्ष कर रही है।
सरकारी दावों के बावजूद बेरोजगारी दर में स्थायी गिरावट अब भी एक बड़ी चुनौती है।
📊 दशक का रिपोर्ट कार्ड : बेरोजगारी दर (2009–2025)
वर्ष दर (%) स्थिति / ट्रेंड
2009: 5.8 🟡 सामान्य
2010: 6.0 🔼 वृद्धि शुरू
2011 :6.2 🔼
2012: 6.5 🔼
2013: 6.9 🌧️ आपदा प्रभाव
2014: 7.2 🔼
2015: 7.6 ⚠️ चिंताजनक
2016: 7.9 🔼
2017: 8.1 🔴 उच्च स्तर
2018: 7.5 📉 मामूली सुधार
2019: 6.8 📉
2020: 9.1 🔥 कोविड काल (सर्वाधिक)
2021: 8.5 📉 धीमी रिकवरी
2022 :5.6 ✅ बड़ी गिरावट
2023: 4.5 ✅
2024: 4.3 ✅ न्यूनतम स्तर
2025: 6.0 ⏱️ अनुमानित
नोट : 2025 के आंकड़े उपलब्ध सरकारी ट्रेंड पर आधारित अनुमान हैं।
🚨 इनसाइड स्टोरी : युवा बेरोजगारी (असली चिंता)
(स्रोत : PLFS वार्षिक रिपोर्ट 2023-24, भारत सरकार)
ऊपर दिए गए आंकड़े 'कुल बेरोजगारी' के हैं, लेकिन असली तस्वीर तब सामने आती है जब हम केवल युवाओं (15-29 वर्ष) के आंकड़ों को अलग से देखते हैं। यह वर्ग ही पलायन के लिए सबसे ज्यादा मजबूर है।
वर्ष 🟦 कुल 🟥 युवा15-29
2020-21 8.4% 12.9% 🔴 बहुत खराब
2021-22 7.8% 12.4% --
2022-23 4.5% 14.2% ⚠️ अचानक वृद्धि (Spike)
2023-24 4.3% 9.8% ✅ गिरावट (पर 10% अभी भी खाली)
📉 आंकड़े क्या कहते हैं? (विस्तृत विश्लेषण)
🔹 2009–2016 : संघर्ष का दौर
उत्तराखंड में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ती रही। औद्योगिक विकास की धीमी रफ्तार और पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन इसका प्रमुख कारण रहा।
🔹 2017–2019 : बदलाव के संकेत
नए सर्वे (पीएलएफएस) लागू होने के बाद आंकड़े और स्पष्ट हुए। शहरी क्षेत्रों में थोड़ा रोजगार बढ़ा, लेकिन ग्रामीण व पहाड़ी इलाकों में हालात जस के तस रहे।
🔹 2020–2021 : महामारी की मार
बेरोजगारी दर अपने उच्चतम स्तर (9% से अधिक) पर पहुंच गई। पर्यटन, होटल और परिवहन क्षेत्र पूरी तरह ठप हो गए।
🔹 2022–2024 : सुधार या छलावा?
सरकारी योजनाओं और पर्यटन की वापसी से बेरोजगारी में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन विशेषज्ञ इसे अस्थायी सुधार मानते हैं।
🧑🎓 युवा और शिक्षित बेरोजगार : सबसे बड़ी चिंता
उत्तराखंड में बेरोजगारी का सबसे बड़ा बोझ शिक्षित युवाओं पर पड़ा है।
❌ प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता और देरी।
❌ सीमित सरकारी भर्तियां।
❌ निजी क्षेत्र में कम वेतन और अस्थिर नौकरी।
🏔️ पलायन : बेरोजगारी का दूसरा नाम
बेरोजगारी के कारण राज्य का नक्शा बदल रहा है:
गांव खाली : पहाड़ी गांव विरान हो रहे हैं।
शहर की दौड़ : युवा दिल्ली, हरियाणा और यूपी की ओर जा रहे हैं।
सामाजिक संकट : गांवों में केवल बुजुर्ग और महिलाएं ही रह गई हैं।
🏛️ सरकारी दावे बनाम जमीनी हकीकत
"सरकार स्वरोजगार, स्टार्टअप और पर्यटन की बात करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका लाभ गिने-चुने लोगों तक ही पहुंच पाया है।"
🔍 आगे की राह
उत्तराखंड को अगर बचना है तो उसे चाहिए:
✅ पहाड़ी क्षेत्रों में स्थायी छोटे उद्योग।
✅ स्थानीय संसाधनों (कृषि, बागवानी) पर आधारित रोजगार।
✅ केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि ठोस क्रियान्वयन।
📌 अंतिम बात
आंकड़े भले ही राहत दें, लेकिन जब तक युवाओं को स्थायी और सम्मानजनक रोजगार नहीं मिलेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
🧾 स्रोत : एनएसएसओ (2009–2016), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) – भारत सरकार (2017–2025)