
सरकार द्वारा बजट में इतने खर्च के बाद भी ऐसी व्यवस्था क्यो? बड़ा सवाल है।
बिहार(नालन्दा)। शेखपुरा डायट में एक शिक्षक की मौत हार्ट अटैक होने के कारण हो गयी। आखिर इसका जिम्मेवार किसे ठहराया जाए।
मुझे नही पता कि मैं सही हूँ या गलत,लेकिन जो लोग पोस्ट को देखेंगे जनहित में अपनी राय जरूर दे----
1) कुछ शिक्षकों का कहना है कि उनका तबियत पहले से खराब था।
2) तो फिर सवाल है कि वो प्रशिक्षण में गए क्यो?
यदि जाना विभाग द्वारा कंपल्सरी किया गया है तो क्या ऐसी स्तिथि में भी जाना होगा जहाँ किसी का जान भी चले जाएं। क्या विभाग द्वारा एक ऑप्शन नही दिया जा सकता जहाँ वापस होकर अगले बार प्रशिक्षण में भाग लिया जा सके।
2) खाना खिलाने वाले लोगो से बहस की बात कही जा रही है। खाना की गुणवत्ता सही नही थी इसके लिए कुछ कहा सुनी हुई थी।
एक खाना पकाकर संस्था में देने वालो की ये औकात हो गयी वो शिक्षकों को कुछ भी बोल दे। सही में इसमे भी कोई आश्चर्य की बात नही है क्योंकि ये बात विभिन्न डायट में अक्सर सुनने को मिलता है।
सवाल है ऐसा क्यों? क्या कॉलेज प्रशासन द्वारा खुली छूट मिली हुई है? या फिर भोजन में कमीशन है,जो निडर बना देती है।
3) प्रिंसिपल द्वारा बहस और स्पस्टीकरण की माँग की गई थी।
खाना का गुणवत्ता जब खराब था तो प्रिंसिपल को ठेकेदार से बात पहले करना चाहिए। खाने की जांच करनी चाहिए उसके बाद पूर्ण रूप से संतुष्टि होने के बाद ही आगे एक्शन लिया जाना सही था।
4) अभी ठंड बहुत है इसका मतलब ये नही है कि कोई भी जनहित या विभाग का काम रुक जाए,लेकिन व्यवस्था तो देनी होगी विभाग को। डायट के स्नानागार में गीजर नही है। इस ठंड में भी बिल्कुल ठंडे पानी से नहाना होता है। एक पतला से ब्लैंकेट दे दिया जाता है,क्या उससे ठंड को भगाया जा सकता है। बेड की क्वालिटी भी इतनी गिरी होती है,जैसे शिक्षक नही कोई जानवर को रखा गया है।
अब बताइये सरकार दोषी है। हर बार सरकार को दोषी क्यो ठहराए? सरकार तो पैसे देती ही है। तो दोषी कौन। सरकारी सुविधा आप तक पहुँचने के पहले इतना फ़िल्टर हो जाता है कि पब्लिक तक आते-आते पोलियो खुराक बन जाता है। सही में यदि 80% भी काम हो जाये तो दुनिया का सबसे अच्छा देश और विकसित देश भारत हो जाएगा। विकासशील से विकसित नही होने में सबसे बड़ा दोषी तो हमलोग खुद है। हर सरकारी योजना को बपौती समझते है। पहले लूटते है फिर बचे राशि से काम करते है।
ये मामला शांत भी नही हुआ था कि नया मामला मसौढ़ी टीचर ट्रेनिंग कॉलेज का सामने आया है,जहाँ शिक्षकों को छिपकिली वाली भुजिया परोसी गयी। तस्वीर में भी आप साफ देख सकते है कि कितनी अच्छे तरीक़े से छिपकिली का भुजिया बना दिया गया है। इससे साफ पता चलता है कि किसी को भी शिक्षकों के प्रशिक्षण से लेना देना नही है,बल्कि प्रशिक्षण की आड़ में केवल सरकारी राशि की बन्दर बाट करना है। सही में इस तरह की प्रशिक्षण शिक्षकों को अद्यतन किया जा सकता है। जवाब मुझे नही देना बल्कि स्कूलों की जाँच में ज़रूरत से ज्यादा सक की निगाह से देखने वाले अधिकारी कभी डायट की जाँच क्यो नही करते है।