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बौद्ध विरासत वापसी की मांग को लेकर शांति मशाल धम्म यात्रा हुई तेज, आंदोलन को मिल रहा व्यापक समर्थन।

बोधगया (गया)
बौद्ध समाज द्वारा बौद्ध विरासत की पुनर्प्राप्ति और 1949 बीटी एक्ट को रद्द करने की मांग को लेकर चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन दिन-प्रतिदिन सशक्त होता जा रहा है। इसी कड़ी में देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित की जा रही शांति मशाल धम्म यात्रा को जनसमूह का बड़ा समर्थन मिल रहा है। हाल ही में 29 नवंबर को मध्यप्रदेश के बालाघाट के कटंगी तहसील में भी इस यात्रा का सफल आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। आंदोलन से जुड़े संगठनों ने बताया कि समाज जागरूक हो रहा है और बौद्धों की ऐतिहासिक विरासत को वापस पाने का संकल्प अब जनआंदोलन का रूप ले चुका है।

आंदोलन के नेताओं का कहना है कि शासन-प्रशासन की ओर से दबाव और डराने की कोशिशें लगातार जारी हैं। उनका आरोप है कि पहले भी गोलंबर क्षेत्र से भिक्षु संघ को जबरन हटाकर अस्पताल ले जाया गया था, जबकि भंते भूख हड़ताल पर शांतिपूर्ण ढंग से बैठे थे। मीठी-मीठी बातें कर आंदोलन खत्म करवाने की कोशिशें भी की गईं, लेकिन भिक्षुओं ने किसी भी प्रकार के दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया। आंदोलनकारियों के अनुसार, यह संघर्ष ताकत या टकराव का नहीं, बल्कि धम्म और न्याय का है, इसलिए वे पूरी शालीनता और संयम के साथ आंदोलन जारी रखे हुए हैं।

नेताओं ने कहा कि कई लोग मानसिक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, इसलिए वे खुलकर सामने नहीं आ पा रहे, जबकि जो लोग इस मानसिक बंधन से मुक्त हो चुके हैं, वे निडर होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि गुलामों को गुलामी का एहसास करा दो, तो वह उसके खिलाफ जंग छेड़ देगा। वक्ताओं आरोप लगाया गया कि प्रशासनिक अधिकारियों एसपी, एसडीओपी और थाना प्रभारी पर राजनीतिक दबाव बनाया जा रहा है। आंदोलनकारियों ने नेताओं से अपील की है कि वे अधिकारियों पर दबाव डालने के बजाय सीधे आंदोलन के प्रमुखों आकाश लामा, भदंत प्रज्ञाशील भंते, धम्मप्रकाश भारती भंते सहित प्रतिनिधि मंडल से संवाद करें।

आंदोलनकारियों का स्पष्ट कहना है कि जब तक बौद्धों की विरासत बौद्धों को वापस नहीं की जाती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। उनका लक्ष्य है कि महाबोधि महाविहार को उसके मूल संरक्षकों, बौद्धों को पूर्ण अधिकार के साथ सौंपा जाए। उनका मानना है कि यह केवल धार्मिक अधिकारों की बहाली नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैश्विक विरासत की रक्षा का विषय है। इसलिए यह शांतिपूर्ण धम्म संघर्ष निरंतर जारी रहेगा।

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