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दलित/आदिवासी पंचायतीराज जन प्रतिनिधियों को दी कानून की जानकारी

पंचायतीराज में दलित/आदिवासी व महिला जन प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी के बिना प्रजातंत्र अधूराः- एडवोकेट चन्दा लाल बैरवा

दौसा l पीपुल्स एक्षन फॉर रूरल अवेकनिंग (पारा), नई दिल्ली व दलित अधिकार केन्द्र, जयपुर के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 21 नवम्बर, 2025 को रावत पैलेस, आगरा रोड दौसा में पंचायतीराज दलित जन प्रतिनिधियों का एक दिवसीय जिला स्तरीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया।
श्री चन्दा लाल बैरवा, एडवोकेट, राज्य समन्वयक, रिसर्च पीपुल्स एक्षन फॉर रूरल अवेकनिंग (पारा), नई दिल्ली द्वारा प्रशिक्षण शिविर के उपदेश्यों पर प्रकाश डाला गया। आपने बताया कि इस प्रशिक्षण शिविर का मुख्य उपदेश्य पंचायतीराज के जन प्रतिनिधियों को पंचायतीराज की व्यवस्था व जमीनी स्तर की समस्याओं की सच्चाईयों से अवगत करवाना है। पंचायतीराज जन प्रतिनिधि अपने अधिकारों का आज भी पूरा खूल कर उपयोग नही करते तथा दलित/आदिवासी व महिला जन प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी नही होने के कारण से पंचायतीराज में दलितों व महिलाओं को आरक्षण का प्रावधान होने के बावजूद आज भी वो खुल कर अपने अधिकारों का उपयोग नही कर पा रहे है। पंचायत में कितना बजट आता है, वह कहा इस बारे में पंचायतीराज जन प्रतिनिधियों को जानकारी नही होती।
श्री हैमन्त मीमरौठ, एडवोकेट, मुख्य कार्यकारी, दलित अधिकार केन्द्र जयपुर ने दलित व महिला जन प्रतिनिधियों को पंचायतीराज में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 73 वे संविधान संशोधन विषेषताओं पर प्रकाष डालते हुए कहा कि उक्त संविधान संषोधन के माध्यम से दलितों और महिलाओं को पंचायती राज में भागीदारी सुनिष्चित करने का प्रयास था लेकिन आज खाप व जातिय पंचायतों दलितों व महिलाओं को इन सामाजिक जातिय पंचायतों ने भी न्याय से वंचति रखा। हमारा देश 1947 को आजाद हुआ व 1950 को पूरे देश में संविधान लागू किया गया लेकिन केन्द्र व राज्य सरकार अस्तित्व में आई लेकिन स्थानीय स्तर पर कोई सरकार नही थी जो ग्राम स्तर के विकास, समस्या, समाधान की बात कर सके इसके लिए 1959 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने नागौर में पंचायतीराज की शुरूआत की । संविधान संशोधन 1993 में 73 वां संविधान संशोधन कर तीन स्तरीय व्यवस्था का सूत्रपात किया गया ।
श्री ताजुउद्वीन खाँन, पंचायतीराज एक्सपर्ट, संदर्भ व्यक्ति ने पंचायतीराज की त्रि-स्तरीय व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुये कहा कि 73 वां सविधान संशोधन में कई महत्वपूर्ण विशेष प्रावधान के बारे में बताया गया जैसे महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान, हर पांच वर्ष में चुनाव करना, चुनाव आयोग का गठन, त्रि-स्तरीय व्यवस्था का गठन आदि प्रावधान रखे गये आपने पंचायतीराज की मूल अवधारणा के बारे में बताते हुये कहा कि ग्रामीणों को अपने सामाजिक आर्थिक विकास के बारे में सोचना, निर्णय प्रक्रिया में ग्राम वासियों की भागीदारी सुनिष्चित करना, सता का विकेन्द्रीकरण करना, जन भागीदारी को बेहतर बनाना त्रि-स्तरीय व्यवस्था के लिए 1956 में राष्ट्रीय विकास परिषद ने श्री बलवन्त राय मेहता के अधीन समिति नियुक्त की गई। समय-समय पर वी.के.राव, एल.एम. सिंघवी, सरकारिया आयोग सभी ने पंचायतीराज निकायों को मान्यता देने व समय-समय पर संषोधन करने के लिए प्रेरणा दी। 1957 में बलवन्त राय मेहता ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, बलवन्त राय मेहता की तीन स्तरीय व्यवस्था की सिफारिष दी। दिनांक 2 अक्टूबर 1959 में नागौर में पंचायती राज व्यवस्था की षुरूआत की । आपने जिला परिषद की संरचना के बारे में बताते हुये कहा कि जिले पर जिला प्रमुख (अध्यक्ष जिला परिषद) होता है उसके बाद में उप जिला प्रमुख होता है। जिला परिषद सदस्य चुने हुये प्रतिनिधि होते है। पंचायत समिति प्रधान (मतदान का अधिकार नही) मुख्य कार्यकारी, अति.मुख्य कार्यकारी, मुख्य आयोजना अधिकारी, अधिसाषी अभियन्ता, परियोजना अधिकारी, लेखाधिकारी, जिला कलेक्टर, अर्न्तविभागीय अधिकारी होते है जो जिला स्तर पर काम करते है। पंचायत समिति में प्रधान होता है जो पंचायत समिति का मुखिया होता है। सरकारी अधिकारी विकास अधिकारी होता है। राज्य सरकार व जिला परिषद द्वारा सौंपे गये कार्यो /योजनाओं के सम्बन्ध में वार्षिक योजना तैयार कर समय से जिला परिषद को भेजना। पंचायत समिति क्षेत्र की ग्राम सभाओं से प्राप्त योजनाओं को समकित कर जिला परिषद जिला परिषद को भेजना। पंचायत समिति का वार्षिक बजट तैयार करना। प्राकृतिक आपदाओं में सहायता करना अन्य सभी कार्यो को सम्पन्न करना जो समय- समय पर राज्य सरकार द्वारा सौपे गये है। आदि कार्य होता है। संरपच ग्राम पंचायत का मुखिया होता है। ग्राम पंचायत में उप सरपंच, वार्ड पंच (ग्राम पंचायत सदस्य) ग्राम सेवक एवं पदेन सचिव अन्य विभागीय कर्मी ग्राम पंचायत क्षेत्र के विकास हेतु वार्षिक योजना तैयार करना प््राकृतिक आपदाओं में सहयोग जुटाना लोक सम्पति से अतिक्रमण हटाना समुदाय के कार्यो हेतु जन सहयोग जुटाना पंचायत की सम्मपति का सुरक्षित रखना व संधारन करना जनगणना में सहयोग करना पंचायत के क्षेत्र में कृषि उपज बडाने हेतु कार्यक्रम बनाना आदि कार्य होता है।
श्री रामप्रसाद बौद्व, चैयरमेन, नगर पालिका, भाण्डारेज, जिला दौसा ने ग्राम पंचायत स्तर पर गठित स्थाई समिति में सामाजिक न्याय समिति, प्रषासनिक व स्थापना समिति, वित और कराधान समिति, विकास व उत्पादन कार्यक्रम समिति एवं षिक्षा समिति का गठन, प्रक्रिया व भूमिका पर प्रकाष डालते हुये आपने प्रत्येक स्थाई समिति को अपने विषयों से सम्बन्धित कार्यो के लिए उन सभी षक्तियों के प्रयोग का अधिकार होता है जो पंचायत के द्वारा उसे दी जाती है।
श्री बिहारी लाल, सरपंच, ग्राम पंचायत पण्डितपुरा, बसवा, जिला दौसा कोई भी संस्था तभी मजबूत और स्वतंत्र हो सकती है जब वह आर्थिक रूप से मजबूत हो। अगर ग्राम पंचायत के अपने स्वयं के आय के साधन उसकी सभी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है तो वह ग्राम पंचायत अपने कार्यो को पूरा करने में ज्यादा स्वतंत्र होगी। ग्राम पंचायत की वित्त और कराधान समिति मुख्य रूप से ग्राम पंचायत की आय -व्यय से जुडे कामों को पूरा करने में ग्राम पंचायत को सहयोग देगी। वित्त और कराधान समिति मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करेगी - ग्राम पंचायत की आय के स्रोतों कों बढाने के लिए नए कर लगाने के बारे में सुझाव देना । ग्राम पंचायत क्षेत्र में स्थापित सभी व्यवसायिक/वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों से नियमित कर वसूलने में पंचायत को सहयोग। ग्राम पंचायत क्षेत्र में लगाये जाने वाले सभी विज्ञापनों के विज्ञापनदाताओं से कर वसूली में सहयोग। गांवों के लोगों को पंचायत के कोष में दान देने के लिए प्रोत्साहित करना।
श्री मुन्ना लाल महावर, सरपंच, ग्राम पंचायत हिंगवा, जिला दौसा ने ग्राम विकास समिति के बारे में बताया कि ग्राम पंचायत के विकास में इस समिति की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यह समिति न केवल गांव के विकास के लिए सुझाव देगी बल्कि गांवों में होने वाले सभी प्रकार के उत्पादन को बढाने में भी अपना सुझाव देगी। हमारे गावों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर आधारित है। खेती से हमें अनाज के साथ ही रोजगार और पषुओं के लिए चारा भी उपलब्ध होता है। फसलों का उत्पादन इनकी बिक्री तथा इनसे होन वाली आमनदनी गांवों के परिवारों के जीवन को प्रभावित करते हैं। इसी प्रकार गांव में किए जा रहे उत्पादन कार्यो का भी लोगों पर प्रभाव पडता है।
श्रीमती सुनीता देवी बैरवा, जिला समन्वयक, दलित अधिकार केन्द्र, दौसा ने विकास व सामाजिक न्याय (ग्रामीण पेयजल, स्वास्थ्य और सफाई , ग्रामदान, संचार , समाज के वर्गो का कल्याण इत्यादि राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम के अनुसार पंचायतों का प्रमुख कार्य अपने क्षेत्रों में आर्थिक विकास की योजनाओं को बनाना और उन्हे प्रभावी ढंग से लागू करना है। किन्तु पंचायतों का विकास तभी सही माना जायेगा जब आर्थिक विकास के साथ-साथ क्षेत्र में सामाजिक विकास और सामाजिक न्याय भी हो। उदाहरण के लिए यदि किसी गांव का आर्थिक विकास होने से वहां के लोगों की आमदनी बढ जाये किन्तु उस बढी हुई आमदनी से लोग षराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट या गलत व्यवहार करें तो ऐसे विकास को क्या वास्तविक विकास माना जायेगा? दूसरे षब्दों में मानव जीवन में सामाजिक विकास भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आर्थिक विकास।
श्री मांगी लाल बैरवा, कार्यक्रम समन्वयक, दलित अधिकार केन्द्र, जयपुर ने पंचायतीराज से जुडे हुये बजट, योजना, स्वीकृतियां, स्थानीय आय के स्रोत, राज्य व केन्द्र सरकार से आने वाले बजट व ग्राम पंचायत के स्तर पर संचालित सामाजिक आर्थिक उत्थान के विकास की योजनाऐं पालनहार योजना, विधवा पेंशन योजना, वृद्वा अवस्था पेंशन, फवारा योजना, खेत फार्म पाउण्ड योजना, शुभ लक्ष्मी योजना, आदि के बारे में विस्तार से बताया गया ।
उक्त प्रशिक्षण शिविर में 45 पंचायतीराज के महिला पुरूष प्रतिनिधि (सरपंच, वार्ड पंच, जिला परिषद सदस्यों) सामाजिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों, समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
श्रीमती द्रोपदी जोनवाल, प्रेरक, पारा दौसा ने सभी जनप्रतिनिधियों को धन्यवाद ज्ञापित किया ।

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2 comment  
  • Ashokkumar Ramanlal Patel

  • Ashokkumar Ramanlal Patel

    पूरे भारत पे कबजा करोगे