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जापानी महिला नाना मेस ने छठ पूजा में लिया हिस्सा, अंतरराष्ट्रीय रंग में रंगा आस्था का महापर्व।

बोधगया (गया)
आस्था, अनुशासन और श्रद्धा का प्रतीक बिहार का महापर्व छठ अब अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है। इस वर्ष छठ पूजा के अवसर पर जापान से आई महिला नाना मेस ने बोधगया में व्रतियों के साथ पूजन-अर्चन में भाग लेकर सबका ध्यान आकर्षित किया है। नाना मेस न केवल घाट पर उपस्थित रहीं बल्कि हर अनुष्ठान में पूरे मनोयोग से शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि उन्होंने भारत में छठ पर्व के बारे में बहुत कुछ सुना था, लेकिन इस पावन अवसर पर प्रत्यक्ष रूप से शामिल होकर वे स्वयं को सौभाग्यशाली और भावविभोर महसूस कर रही हैं।

नाना मेस ने बताया कि छठ पूजा भारतीय संस्कृति की गहराई और आस्था की अद्भुत मिसाल है, जिसमें शुद्धता, अनुशासन और समर्पण का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने कहा, “यह पर्व न केवल प्रकृति की पूजा है बल्कि मानव और पर्यावरण के बीच संतुलन का प्रतीक भी है। जिस तरह से महिलाएं व्रत रखकर सूर्य और छठी मईया की आराधना करती हैं, वह अत्यंत प्रेरणादायक है।”

उनके साथ भारत आईं रुद्राणी दत्ता ने बताया कि यह पहली बार है जब किसी जापानी नागरिक ने छठ पूजा में भाग लिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की गहराई और यहां के लोगों की निष्ठा को देखकर वे बेहद प्रभावित हैं। रुद्राणी ने कहा, “बिहार में छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि यह लोगों की जीवनशैली और आस्था का हिस्सा है।”

विदेशी मेहमानों की भागीदारी से बोधगया में छठ पूजा का माहौल और भी खास हो गया है। स्थानीय लोगों ने नाना मेस और रुद्राणी दत्ता का गर्मजोशी से स्वागत किया। बोधगया के गुप्ता परिवार के यहां आयोजित छठ पूजा में दोनों मेहमान पारंपरिक परिधानों में शामिल हुईं और छठ गीतों के साथ लोक संस्कृति का आनंद लिया। उपस्थित लोगों ने बताया कि विदेशी मेहमानों की इस भागीदारी से बिहार की परंपरा को विश्व स्तर पर नई पहचान मिल रही है।

आस्था का यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक एकता के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया है। चार दिवसीय छठ पर्व नहाय-खाय से प्रारंभ होकर खरना, संध्या अर्घ्य और भोर के अर्घ्य तक चलता है। अब बोधगया में यह पर्व सीमाओं से परे होकर आस्था और संस्कृति के वैश्विक संगम का प्रतीक बन चुका है।

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