
जितेन्द्र जायसवाल नागदा जिला उज्जैन मध्य प्रदेश
श्री तनोट राय मंदिर का इतिहास //
// श्री तनोट राय मंदिर का इतिहास //
माडप्रदेश (जैसलमेर बाड़मेर का भूभाग) निवासी साउवा शाखा के मामड़ जी द्वारा संतान प्राप्ति हेतु की गई सात पैदल यात्राओं से प्रसन्न माँ हिंगलाज ने प्रकट होकर वर माँगने को कहा। मामड़ जी द्वारा मॉ हिंगलाज जैसी संतान प्राप्ति की माँग करने पर माता जी ने पुत्र होने का वरदान दिया विक्रम संवत 308 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार को भगवती श्री आवड़ देवी (माता तनोट राय) का जन्म हुआ। इनके बाद भगवती की 06 बहिनों का (आशी, सेसी, गेहली, होल, रूप व लांग) एवं एक पुत्र महिरख का जन्म हुआ। ये सातो बहने आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर शक्ति का अवतार के रूप में पुज्यनीय हुयी। अपने अवतरण के पश्चात भगवती आवड़जी ने अनेको चमत्कार दिखाये तथा नगणेची, काले डूंगर राय, भोजासरी, देगराय, तेमड़े राय व तनोटराय नाम से प्रसिद्ध हुई ।
विक्रम संवत 826 में भाटियों ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया। भाटियों के अन्तिम राजा श्री तनुराव थे। विक्रम संवत 847 में अश्विनी शुक्ल दशमी को तनोट गढ़ की आधार शिला रखी। गढ़ में सर्वप्रथम तनोट राय के मन्दिर की स्थापना कर उसमें प्रतिमा को स्थापित किया।
1965 में भारत-पाक युद्ध के समय पाकिस्तान ने मन्दिर तथा उसके आस-पास लगभग 3 हजार बम बरसाये। 450 गोले मन्दिर परिसर में गिरे किन्तु मन्दिर को खरोंच भी नहीं आयी। इसी प्रकार 1971 के भारत पाक युद्ध में माता तनोट की कृपा से शत्रु के सैकडों टैंक व गाड़ियों को भारतीय फौजों ने नेस्तनाबूद कर दिया और शत्रु दुम दबाकर भागने को विवश हो गये, अतः माता श्री तनोट राय भारतीय सैनिकों व सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र है।
श्री तनोट राय महाशक्ति मॉ श्री आवड़ जी का स्वरूप है। सेवक गुमान सिंह जी को मॉ तनोट दर्शन दिया करती थी और 1965 के भारत-पाक के युद्ध के दौरान माँ ने गुमान सिंह जी को दर्शन देकर ज्योत करने का हुकुम दिया, उस समय चारों तरफ गोला-बारी हो रही थी, मोर्चे में मौजूद जवानों द्वारा उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए बेलचा में ही माँ की ज्योत की गई, ज्योत के बाद गुमान सिंह जी ने पानी की मटकी में गाय का दुध मिलाया और पोस्ट की परिक्रमा की जिससे पोस्ट के चारों ओर सीमा रेखा बन गई। मॉ ने सैनिकों को मोर्चे से बाहर नहीं निकलने का आदेश दिया, सैनिकों ने माँ के आदेश का अनुसरण किया, जिसके फलस्वरूप लड़ाई में पाकिस्तानी सेना द्वारा गिराये गये बमों में से एक भी नहीं फुटा और जवानों में से किसी का बाल भी बांका नही हुआ ।
युद्ध के बाद जवान गुमान सिंह जी को मॉ श्री तनोट राय ने सपने में दर्शन देकर नोट में मंदिर बनाने का आदेश दिया और एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने को कहा। उन्हें जिस स्थान पर खुदाई करने का निर्देश प्राप्त हुआ था, वहाँ राजा तन्नु राव के द्वारा 847 ईस्वी में स्थापना किया गया श्री तनोट राय माता का मंदिर मौजूद था, जो जमीन में कई फिट नीचे जा चुका था। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो जमीन में से आवड़ माता सहित सातों बहिनों की लकड़ी की मूर्ति, एक तलवार, एक चिमटा, एक नगाड़ा और एक त्रिशुल निकला। वह मुर्ति आज भी तनोट स्थित मंदिर में है और बाकी चारों चीजें गुरान सिंह के गाव समीचा में उनके द्वारा स्थापित श्री तनोट राय माता मंदिर में मौजूद है। खुदाई के स्थान के उत्तर में लगभग 50-60 मीटर की दूरी पर उनके द्वारा एक छोटे मंदिर का निर्माण करवाया गया था, जो गत वर्षों में धीरे - धीरे बदलाव के साथ आज के इस वर्तमान स्वरूप में हम सबके सामने हैं।、
वर्ष 1965 में सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने यहाँ सीमा चौकी स्थापना कर तब से अब तक मन्दिर की पूजा अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार सम्भाला तथा वर्तमान में मन्दिर का प्रबन्ध संचालन बी.एस.एफ. ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है।