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हार और जीत तो महज मनोदशा है 🌺 ‘विश्वास’ वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधेरे में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है -रविंद्र नाथ टैगोर

हार और जीत' तो महज मनोदशा है

कठिन परिस्थितियों में जो मानसिक बल हमें सफलता दिलाता है, वही आत्मविश्वास है। यदि विश्वास दृढ़ हो तो जो कार्य हमें करना है, उसके लिए सैकड़ों बाधाओं को पार करके भी हम एक दिन सफल हो ही जाएंगे। बात उस समय की है, जब जापान में दो राज्यों के बीच युद्ध चल रहा था। युद्ध अपने चरम पर था। आने वाला कल युद्ध का आखिरी दिन था। ऐसे कठिन समय में जापान के एक राज्य के सेनापति ने अपनी सेना के समस्त सरदारों के साथ बैठक की। बैठक में पक्ष और विपक्ष की शक्ति को लेकर चर्चा हुई। शत्रु की सेना संख्या, हथियार और अपनी क्षमता सहित हर तरह से उन पर भारी थी। बैठक करने वाले राज्य के सरदारों का आत्मविश्वास डगमगाने लगा, लेकिन सेनापति पीछे नहीं हटना चाहता था। उसने सैनिकों से दृढ़ता से कहा निर्णय सुबह होगा। देखते ही देखते सुबह भी हो गई थी। सेना चलते-चलते रास्ते में एक मंदिर के सामने रुकी। सेनापति पूजा के लिए मंदिर में चला गया। थोड़ी देर बाद वह मंदिर से वापस निकला और अपने सैनिकों से बोला, मेरे पास एक अभिमंत्रित सिक्का है। यह हमें बताएगा कि युद्ध में हमारी हार होगी या जीत। उसने वह सिक्का ऊपर उछाला और बोला कि अगर चित आता है, तो जीत होगी और पट आता है, तो हार। सिक्का जमीन पर गिरा। सैनिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। सिक्के का चित वाला हिस्सा गिरा था। सैनिकों का आत्मविश्वास फिर से हिलोरे मारने लगा। युद्ध के मैदान में जब दोनों सेनाएं आमने-सामने थीं, तो आत्मविश्वास से भरी सेना ने जमकर युद्ध किया और अपने से ज्यादा भारी सेना को धूल चटा दिया। युद्ध समाप्त हो गया। विजयी सेना के सेनापति ने अपने सरदार से कहा, हमें तो जीतना ही था। तब सरदार ने पूछा कैसे? विजयी सेनापति ने सरदार को अपने पास बुलाया और वह अभिमंत्रित सिक्का दिखाया। उस सिक्के के दोनों तरफ चित ही बना हुआ था।

कहानी से सीख

कहानी बताती है कि परिस्थिति कैसी भी हो, अपनी मनोस्थिति को सकारात्मक और मजबूत रखना चाहिए। इससे आपका आत्मविश्वास चरम पर होता है और आप अपने मनचाहे लक्ष्य को कम समय में ही हासिल कर सकते हैं।

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