
हम जितना यूरोपीय कुसंस्कृति का अनुकरण करेंगे समाज उतना ही विकृत होता जाएगा : अनिल सुभाष
सुभाष विचार मंच के संस्कृति विभाग की मार्गदर्शन योजना
भारत में जहाँ पति परमेश्वर होता था तथा नारी पति की भी आत्मा होती थी आज भी किसी भी शुभ कार्य, पूजन तक बिना पत्नी के पूर्ण नहीं होता उस देश में पति की नीले ड्रम की जघन्य/आश्चर्यजनक हत्या होना तथा अनेक पत्नियों का कत्ल होना समाज में आई नैतिक, सांस्कृतिक पतन का प्रमाण है।
हम जितना यूरोपीय कुसंस्कृति का अनुकरण करेंगे समाज उतना ही विकृत होता जाएगा।
वर्तमान में दुनिया में जो जितना विकसित देश है उस देश में उतनी अधिक वैश्यावृत्ति, बलात्कार अपराध है। यदि यही विकास है तो विनाश क्या होगा ? भारत को ये विकास नहीं चाहिए। दुनिया चलाने वालो के पास न समाजशास्त्र का ज्ञान है और न ही अर्थशास्त्र का।
नोबल प्राइज तक मूर्खों को दिए जाते हैं, आज जिसे दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान माना गया है। अमेरिका के पास दुनिया के सबसे ज्यादा नोबल प्राइज (600 में से 403) हैं और उसके यहाँ दुनिया के सबसे अधिक कैदी हैं।
आज अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश है सभी बैंक फेल होने के कगार पर पहुँच चुके हैं। संभवतया 20 वर्षों में अमेरिका कबीलों में बदल जायेगा।
भारत के दर्शनशास्त्र के अनुसार कर्जा पिता का भी नहीं होना चाहिए। पितृ ऋण भी हमें लौटाना होता है।
जब-जब समाज में बुराई स्थापित होने लगती है तब-तब समाज के लोगों की ही यह जिम्मेदारी बनती है कि जिनके पास समय है वह समय देने के लिए आगे आएं। जिनके पास संसाधन हो वो संसाधन के साथ आगे आएं तथा जिनके पास समाज का मार्गदर्शन का ज्ञान है वो विद्वान आगे आएं।
हम हर जाति, हर धर्म (तथाकथित) के सभी लोगों का आव्हान करते हैं कि समाज को सही दिशा देने के लिए आगे आएं।
भारतीय ज्ञान आज तक न कभी पढ़ाया गया है और न पढ़ाया जाता है देखिये भारत के अनुसार आचरण करने का क्या लाभ होगा ?
चिकित्सा क्षेत्र - आप जीवन में कभी बीमार ही नहीं होंगे। इसमें आचरण विज्ञान आता कि हमें समाज में कैसा आचरण करना चाहिए? भोजन विज्ञान में आता है कि हमें क्या भोजन करना चाहिए?
ज्योतिष विज्ञान जो हमें ग्रहों की चाल तथा उसका जीवन पर पड़ने वाले अच्छे और बुरे प्रभाव का ज्ञान कराता है।
व्यापार विज्ञान हमें व्यापार में कितना लाभ लेना चाहिए। पैसा विज्ञान हमें सिखाता है कि कमाए पैसे को कैसे खर्च करें? जिससे बुराई के रास्ते से बचा जा सके और अपमानित न होना पड़े। उदहारण के लिए शराब का खर्च आपको समाज में कभी सम्मान नही दिलाएगा तथा समाज में परोपकार में किया गया खर्च आपको बुरे समय में भी आत्म संतोष दिलाकर आपको यह भाव देगा कि आपने कुछ परोपकार किया है, अत: बुरा समय जल्द निकल जायेगा।
दुनिया का कोई भी व्यक्ति आज तक सम्पूर्ण ज्ञानी नहीं हुआ, यदि कोई एक व्यक्ति सम्पूर्ण विद्वान होता तो अनेक धर्म और अनेक देश न होते। सबसे बड़ी बात जो आपको आश्चर्य चकित करेगी कि दुनिया में सबसे अधिक अकाल मृत्यु (हत्याएं) इन 2 शब्दो ने कराई हैं "देश और धर्म" ने, और आज तक इस पुरी दुनिया को चलाने वालों के पास इन दो शब्दों की परिभाषा तक ही नहीं है न देश और न धर्म की। देश की परिभाषा होती तो 800 लोगों का देश न होता, वाटिकन सिटी मात्र 800 लोगों का देश है।
इस तथाकथित यू.एन.ओ. ने दुनिया को लड़ाया और बांटा तृतीयहै युगोस्लोवाकिया के 6 टुकड़े कराकर दुनिया के नक्शे से मिटा दिया। भारत के तीन टुकड़े, रूस के 15 टुकड़े, कोरिया के टुकड़े, जर्मन के टुकड़े तथा ऐसे ही अनेक उदहारण और है।
यदि धर्म की परिभाषा होती तो 7 महायुद्ध इस्लाम और ईसाइयत के बीच में येरुशेलम की एक मस्जिद को लेकर न होते। महायुद्ध में दोनों और एक-एक नहीं अनेक अनेक देश लड़ते है 10-10, 15-15 देश। करोड़ों लोग मर चुके हैं।
भारत का विभाजन जिसमें लाखों लोग हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर मारे गए, यह उदाहरण दूर का नहीं है। आज भी गाजा और इस्राइल का तथाकथित धर्म युद्ध है जिसमें विकसित समाज में आसमान में लाशें उड़ती देख सकते हो। यदि धर्म शब्द की परिभाषा दुनिया के पास होती तो ये कत्ले आम न होते।
भारत के ज्ञान के अनुसार “धर्म” केवल आचरण में स्थापित करने की चीज है यदि आप अन्याय पूर्ण आचरण करते हो तो अधर्मी हो यदि न्यायपूर्ण आचरण करते हो तो धर्म प्रेमी हो।
भारत में धर्मयुद्ध हुआ जिसे महाभारत का नाम दिया गया आज तक के इतिहास में यंहा तक कि किसी भी विश्वयुद्ध में इतना बड़ा कत्लेआम नहीं हुआ जितना महाभारत में हुआ था। 18 दिन में 18 लाख लोग मारे गए थे एक लाख रोज मगर भगवान कृष्ण की एक बात दुनिया को स्मरण करनी होगी ही होगी .....
जब-जब राजनीती में शंकरवर्ण सन्तान स्थापित होंगी तब-तब महाभारत होगा। शंकरवर्ण सन्तान का अर्थ यही है कि हरामी औलाद। हम भारत के विषय में कुछ नहीं बोलना चाहते। आज भारत में इतनी बुरी स्थिति है कि सत्य बोलने की हिम्मत न मुझमे है और न किसी और में, क्योंकि सत्य बोलने का मतलब जेल और कत्ल। जेल और कत्ल से भी हम जैसे लोग नहीं डरते यदि जेल जाने से समस्या का समाधान हो जाये। भगवान श्रीकृष्ण और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जेल से बाहर आकर ही कुछ किया है अत: यदि हमें कुछ करना है तो जेल से बाहर ही रहकर समाज के लिए किया कुछ किया जा सकता है।
आओ देश और समाज के सही मार्गदर्शन के लिये अच्छे लोग जो समाज को कुछ अच्छा देना चाहते है वो आगे आये। जयहिन्द।
आपका सहयोग भारत को सही दिशा देगा और भारत दुनिया का सही मार्गदर्शन करेगा - अनिल सुभाष, पूर्व अधिवक्ता सुप्रीमकोर्ट।
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