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’’बोधगया में महाबोधि मंदिर विवाद पर महाथेरा ने जताई चिंता’’, बुद्ध की धरती में युद्ध की बात करने वाले है राष्ट्रद्रोही :- अमरेंद्र।

बोधगया (गया)
बोधगया में कुछ तथाकथित भिक्षु और लोग महाबोधि मंदिर मुक्ति के नाम पर सामाजिक समरसता को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। यह बोधगया के लिए ठीक नहीं है। भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली से संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश दिया जाता रहा है। यहां विभिन्न देशों के बौद्ध श्रद्धालु आते हैं। कई देशों के बौद्ध मठ भी यहां स्थापित हैं। स्थानीय लोगों और बौद्ध मठों के बीच हमेशा मधुर संबंध रहे हैं। अब तक किसी तरह का विवाद नहीं हुआ। महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. पी. शिवली महाथेरा ने बुधवार को प्रेस वार्ता में यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान शांति और विधि पूर्वक होना चाहिए। बोधगया से हमेशा शांति और मानवता का संदेश दिया गया है। किसी भी जाति, धर्म या संप्रदाय के लोगों को गाली देने वाला कभी बुद्ध का अनुयायी नहीं हो सकता। केवल चीवर पहन लेने से कोई भिक्षु नहीं बन जाता। भगवान बुद्ध ने मानवता का संदेश दिया था, नफरत का नहीं। अगर कोर्ठ अधिकार की लड़ाई है तो उसके लिए न्याय का रास्ता है। बुद्ध कभी नहीं कहा है कि एक दूसरे को निचा दिखाकर या उसके धर्म के कहकर न्याय मांगा जाए। इससे सिर्फ अशांति का वातावरण होगा, सभी को शांति का मार्ग पर चलना चाहिए। तथागत भगवान बुद्ध व बोधि वृक्ष पर सभी देशों का आस्था है। तभी हर देश के मॉनेस्ट्री व बौद्ध मंदिर यहा पर है। सभी धर्म से ऊपर आस्था है।
इंटर फेथ फोरम के महासचिव डॉ. ए. एच. खान ने इस विवाद पर दुख जताया। उन्होंने आंदोलनकारियों को नसीहत देते हुए कहा, “समझ के आग लगाना हमारे घर को तुम। हमारे घर के बराबर तुम्हारा घर भी है।“ यह अमन की धरती है। यहां हिन्दू व मुस्लिम नहीं रहते। यहां मानव रहते है। पहले मानव होंगे, तब जाकर किसी धर्म के होंगे, किसी देश के होंगे। अगर किसी को कोई समस्या है तो कानून का सरन लिजिए। यहा हर देश के, हर धर्म के लोग आते है। यहा अशांति नहीं फैलाय।
महाबोधि सोसायटी के सदस्य और अधिवक्ता अमरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि बौद्ध धर्म में न जाति का स्थान है, न घृणा का और न द्विवेश की बात है। पंचशील का पालन करने वाला ही सच्चा बौद्ध होता है। चीवर पहन्ने से कोई ना बौद्ध होता है और ना कोई पंचशील के झंडे को लेकर घूमने से बौद्ध होता है। ऐसे आंदोलनकारियों को पंचशील का ज्ञान नहीं है। पूरी दुनिया के लोग इस मिट्टी को चूमने आते हैं। हम इस मिट्टी की महक को खराब नहीं होने देंगे। नफरत फैलाने वाले समाजद्रोही हो सकते हैं, लेकिन बौद्ध नहीं। हम किसी का विरोधी नहीं है, लेकिन बुद्ध की नगरी में शांति को नष्ट ना करे। जिस धरती से पूरी दुनिया में शांति का संदेश गया आज उस धरती से अशांति का संदेश फैलने नहीं देंगे। बोधगया में लोग राजनीति ना करे। यहां जात, पात का कोई सवाल ही नहीं उठता है। अगर ऐसा होता तो भगवान बुद्ध कभी सुजाता के झूठे खीर को नहीं खाया होता। भगवान बुद्ध ने संदेश दिया कि जात-पात से हटकर मानव के कल्याण के लिए कार्य करे। जो बुद्ध के धरती पर युद्ध की बात करते है वो राष्ट्रहित के लिए सही नहीं है। उसे हम राष्ट्रद्रोही मानते है।

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