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नागदा खाचरौद जिला उज्जैन मध्य प्रदेश स्थित हर मुराद होती है पूरी भारत में दो भैरव उज्जैन काल भैरव खाचरोद गौरा भैरवनाथ साक्षात मदिरापान करने वाले भैरव महाराज प्याला चढ़ता है लेकिन कहां जाता पता नहीं लगता

फर्नाजी मेला उज्जैन : पृथ्वीराज चौहान के शासन काल के महलो में है भगवान देवनारायण का मन्दिर
खाचरौद. गुर्जर-गारी व आदिवासी समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण की राजगादी खाचरौद-जावरा रोड पर खाचरौद से 7 किमी दूर बसे ग्राम फर्नाजी में पहाड़ी पर स्थित महल में है। दीपोत्सव के बाद तीज से 9 दिवसीय मेला यहां 2 नबंवर से भगवान देवनारायण के मंदिर की तलहटी पर प्रारंभ होगा। जिसकी तैयारियां स्थानीय जनपद पंचायत ने प्रारंभ कर दी है।
प्रतिवर्ष मेले का आयोजनप्रतिवर्ष मेले का आयोजन जनपद पंचायत खाचरौद की ओर से किया जाता हैं। भगवान देवनारायण की एकमात्र राजगादी पर लगने वाले इस मेले में सम्पूर्ण भारत से दर्शन करने गुर्जर-गारी व आदिवासी समाज के लोग यहां आते हैं। बताया जाता है ग्राम फर्नाजी में पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में बने महल में भगवान देवनारायण एवं भैरव बाबाजी की प्रतिमा स्थापित है।
लगाया जाता है मदिरा का भोग ऐसी मान्यता है कि भगवान देवनारायण संवत् 968 में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के ग्राम डुंगरी में एक चट्टाननुमा पानी के कुंड से कमल के फूल में साडू माता एवं सवाई भोज को बालक के रूप में मिले। मालवा अंचल में भ्रमण करने के दौरान भगवान के सफेद घोड़े के मुख से ओबास कुंवर भैरव की प्रतिमा प्रकट हुई थी। जिसे देवनारायण भगवान ने अपने हाथों से फर्नाजी के टीले पर स्थापित किया था। भैरव प्रतिमा पर मदिरा का भोग लगाया जाता है। प्रतिमा भोग लेती है। दिनभर जितनी भी मदिरा चढ़ती है वो भैरव बाबा ग्रहण करते हैं।
तलहटी पर साडू माता की बावड़ीमहल परिसर की तलहटी पर भगवान देवनारायण की माता साडू माता की बावड़ी हैं। मान्यता है कि जिन महिलाओं व दुधारू पशुओं को प्रसव के बाद दूध नहीं उतरता उन्हें इस बावड़ी का पानी सेवन कराने या इसके पानी से कपड़े गीले कर पहनाने से यह रोग दूर हो जाता है व दूध उतरने लगता हैं।
विभिन्न वेषभूषा में आते हैं आदिवासी 9 दिवसीय मेले में आसपास के क्षेत्र से हजारों की संख्या में गुर्जर-गारी, आदिवासी व अन्य समाज के नागरिक आते हैं व भगवान देवनारायण के दर्शन के साथ ही मेला प्रांगण में लगे विभिन्न प्रकार के झूलों का भी आनन्द लेते हैं। मेले में दूर-दराज से आदिवासी अपने आराध्य देव भगवान देवनारायण के दर्शन एवं मान-मन्नत उतारकर विभिन्न वेषभूषा धारण कर, ढोल-ढमाके के साथ आदिवासी गानों पर नाचते-गाते हैं।

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