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विषय मजदूर हैं, मजबूर नही

विषय मजदूर है,मजबूर नहीं वो
पीठ,कमर में बांधे ईंटे ,तपती धूप झुरसते प्रीतें
घरवाला बीमार पड़ा है कर्जा पानी लेने को हर कोई मेरे द्वार खड़ा है
प्रिय तुम्हे कुछ न होगा ये मेरी जिम्मेदारी है
चली पत्नी मजदूरी करने इसमें ही समझदारी है
देखा है हर दिन कैसे कर्जदार चिल्ला के जाते है
मैं जाती मजदूरी करने अभी थोड़ी देर में आतें है
इतना काम कराते फिर भी जरा भी न हिचकिचाते है
मजदूरी देने में जाने क्यों इतना संकुचाते है
पगार कम दिए क्योंकि तुम तो एक नारी हो
कम उठाए होंगे ईट तुमने नाटक किए होंगे बीमारी है
इतनी पीढ़ा में बोली मजदूर है मजबूर नहीं न उठाए फायदा की ये मेरी लचारी है
भगवान का शुक्र है तुमसे अच्छी सोच ,इंसानियत आज हम सबमें जारी है।।
मानसी सविता
कानपुर

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