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घबराई भाजपा संविधान की शरण में

लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों में हुए मतदान को लेकर जो अनुमान लगाये जा रहे हैं उनमें भारतीय जनता पार्टी और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) की हालत पस्त बताई जा रही है। तीसरे चक्र का मतदान जो 7 मई को होने जा रहा है, उसके बारे में भी कहते हैं कि रूझान कुछ ऐसे ही होंगे। फिर, भाजपा की मुख्य विपक्षी कांग्रेस एवं उसके गठबन्धन इंडिया के सहयोगी दल लोकतंत्र और संविधान को लेकर जिस तरह से हमलावर हैं, उसके कारण भाजपा अब संविधान की दुहाई जोर-शोर से दे रही है। उसके सबसे प्रमुख बिन्दु आरक्षण के साथ कोई छेड़छाड़ न करने का वह बारम्बार वादा भी कर रही है। यह अलग बात है कि उसके कहे पर कोई भरोसा नहीं कर रहा है और लोग मानने लगे हैं कि यदि तीसरी बार भाजपा-एनडीए की सरकार आई तो संविधान निश्चित रूप से बदल दिया जायेगा और इसकी पहली मार आरक्षण व्यवस्था पर ही पड़ेगी।
कांग्रेस व इंडिया जिस जोरदार तरीके से जातिगत जनगणना कराये जाने का भरोसा जनता को दिला रहे हैं, उससे भाजपा की बेचैनी बढ़ चली है।

इस बात को पहली बार उठाने तथा उस पर दमदारी से टिके रहने वाले राहुल गांधी की लोकप्रियता का राज इसी में छिपा है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने इस मामले को उठाया था। यह मुद्दा उनकी दूसरी यात्रा के दौरान और ताकतवर बन गया। कांग्रेस के घोषणापत्र का प्रस्थान बिन्दु, जिसे ‘न्याय पत्र’ नाम दिया गया है- यही जातिगत जनगणना है। सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने का जरिया जातिवार जनसंख्या तो है ही, आरक्षण को बनाये रखने को भी वही औचित्यपूर्ण व तर्कसंगत बनाता है। समतामूलक व न्यायपूर्ण समाज की सरंचना के लिये आरक्षण के महत्व से तो सभी अवगत थे लेकिन भाजपा तथा उसकी मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को यह व्यवस्था कभी भी स्वीकार्य नहीं रही। 26 नवम्बर, 1950 को देश ने इस संविधान को लागू किया था। केवल 5 दिनों के बाद संघ ने अपने मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइज़र’ में एक लेख लिखा था जिसमें संविधान को यह कहकर अस्वीकृत किया था कि इसमें देश की परम्परागत व्यवस्था के लिये स्थान नहीं है। उसका यह भी मानना रहा है कि भारत के पास मनुस्मृति जैसी संहिता पहले से मौजूद है जिसके आधार पर देश चलना चाहिये।

संविधान के लागू होने के समय से ही संघ एवं उसके अनुषांगिक संगठन के नज़रिए में इस संविधान के लिए विश्वास या श्रद्धा - दोनों ही नहीं रहे हैं। वैसे बाद के वर्षों में इसकी बहुत सी व्यवस्थाएं व प्रावधान अपना लिये जाने के बावजूद आरक्षण का विरोध संघ, पूर्ववर्ती जनसंघ व मौजूदा भाजपा करती रही है। उसके द्वारा एक तरह से यह धारणा फैलाई गयी है कि इसके चलते अयोग्य व प्रतिभाहीन लोगों को अवसर मिलते हैं तथा प्रतिभा व योग्यता उससे वंचित रह जाती है। इसका आशय साफ तौर पर आरक्षण के जरिये शिक्षा, नौकरियों तथा प्रतिनिधि सभाओं में बहुजनों, पिछड़ों, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों आदि को मिलने वाले अवसरों से होता है।

दो बार केन्द्र में सरकार बनाने के बाद तीसरी मर्तबा पूर्ण बहुमत हासिल करने हेतु अपने दम पर 370 तथा एनडीए के जरिये 400 सीटें पाने का लक्ष्य भाजपा की संविधान बदलने की मंशा से जुड़ा है। जब चुनाव प्रचार हुआ तब भाजपा एवं उसके नेता व उम्मीदवार इस नारे को जोर-शोर से उठाते थे, लेकिन जब उन्होंने पाया कि प्रतिकार स्वरूप कांग्रेस व इंडिया आरक्षण बचाने के लिये मजबूती से खड़े है; और जनता उनका साथ भी दे रही है तो भाजपा के हाथ-पांव ढीले पड़ गये। कांग्रेस-इंडिया ने एक कुशल रणनीति के तहत आरक्षण बचाने की लड़ाई को संविधान व लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बना दिया है। इसके कारण लोकसभा चुनाव में उसे बढ़त मिलती दिखाई दे रही है। अब भाजपा के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं रह गया है कि वह लोगों को सफाई देती फिरे कि संविधान नहीं बदला जाएगा। उसे कहना पड़ रहा है कि आरक्षण जारी रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या गृह मंत्री अमित शाह या अन्य नेतागण- हर चुनावी सभा में कहते सुनाई पड़ रहे हैं कि यह कांग्रेस व इंडिया का फैलाया गया झूठ है। वैसे भाजपा द्वारा तीसरी बार केन्द्र की सत्ता हासिल होने पर उसके द्वारा संविधान ख़त्म करने की आशंका को इसलिये बल मिला कि खुद उसके कई नेता कह चुके हैं कि मोदी को इसलिये 400 सीटें चाहिये क्योंकि उन्हें संविधान बदलना है। अनंत हेगड़े, अरूण गोविल, लल्लू सिंह और ज्योति मिर्धा आदि इस आशय का बयान दे चुके हैं। लोग तो अब यह भी कहने लगे हैं कि अगर भाजपा का ऐसा कोई इरादा नहीं है तो उसने ऐसा बयान देने वाले उपरोक्त नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।

भाजपा की पतली हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत यह कहने के लिये उतर पड़े हैं कि ‘समाज में जब तक भेदभाव है, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिये।’ हैदराबाद में एक कार्यक्रम में तो उन्होंने यह भी मान लिया है कि ‘देश में भेदभाव चाहे ऊपर से दिखलाई न दे परन्तु यह मौजूद है।’ यदि कोई सोचे कि संघ में वैचारिक परिवर्तन आया है और वह उदार हो चला है, तो उसे यह गलतफ़हमी दूर कर लेनी चाहिये। संविधान विरोध के चक्कर में आरक्षण का लाभ पाने वाले वर्ग व उसकी महत्ता जानने वाले यदि भाजपा के ख़िलाफ़ गये तो चुनाव के सम्भावित परिणाम की कल्पना से दहशत में आने की यह घबराहट है।

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