इलेक्टोरल बांड: पारदर्शिता की आड़ में गोपनीयता?
भारतीय राजनीति में चंदे की पारदर्शिता एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वर्षों से बहस होती रही है। इसी क्रम में, इलेक्टोरल बांड की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को नियमित और पारदर्शी बनाना था। हालांकि, इस योजना के तहत दाताओं की जानकारी को गोपनीय रखने का निर्णय विवादों का कारण बना।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, इलेक्टोरल बांड का प्रावधान राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए किया गया था। लेकिन जब इसके दाताओं की सूचना को गोपनीय रखा गया, तो इसने कई सवाल खड़े कर दिए। आलोचकों का कहना है कि इससे राजनीतिक दलों को अनाम चंदा देने का मार्ग प्रशस्त होता है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं का खतरा बढ़ जाता है।सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा इलेक्टोरल बांड के बचाव में उतरना इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा कितना जटिल है। जहां एक ओर सरकार का तर्क है कि इससे चंदे की प्रक्रिया में सुधार होगा, वहीं विपक्ष और अन्य संगठन इसे राजनीतिक फंडिंग में अस्पष्टता और अनियंत्रण का कारण बता रहे हैं।इस प्रकार, इलेक्टोरल बांड की गोपनीयता और पारदर्शिता के बीच की रेखा को समझना और उसे संतुलित करना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती बना हुआ है। यह जरूरी है कि चंदे की प्रक्रिया में सुधार के साथ-साथ उसकी निगरानी और जवाबदेही को भी सुनिश्चित किया जाए, ताकि राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता को वास्तविकता में बदला जा सके।