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*अक्षय तृतीया के दिन यज्ञ, हवन तथा सत्‍पात्र दान कर अधिकाधिक आध्‍यात्मिक लाभ लें ! - श्री. विश्‍वनाथ कुलकर्णी, हिन्‍दू


*अक्षय तृतीया के दिन यज्ञ, हवन तथा सत्‍पात्र दान कर अधिकाधिक आध्‍यात्मिक लाभ लें ! - श्री. विश्‍वनाथ कुलकर्णी, हिन्‍दू जनजागृति समिति*

अक्षय तृतीया साढ़े तीन मुहूर्तो में से एक पूर्ण मुहूर्त अक्षय तृतीया का होता है । उस दिन तिल तर्पण करना, उदकुंभ दान करना, मृत्तिका पूजन करना और दान देने का बहुत महत्‍व होता है। अक्षय तृतीया के का अध्‍यात्‍म शास्त्र हिन्‍दू जनजागृति समिति द्वारा लिए जानेवाले धर्मशिक्षा वर्गों में बताया गया । अक्षय तृतीया त्रेता युग का प्रारंभदिन है । इस तिथि को हयग्रीव अवतार, नर-नारायण प्रकटिकरण और परशुराम अवतार हुआ । इस तिथि को ब्रह्मा और विष्‍णु की एकत्रित तरंगें उच्‍च देवताओं के लोक से पृथ्‍वी पर आती हैं । इस कारण पृथ्‍वी की सात्‍विकता 10% बढ़ जाती है । इस काल महिमा के अनुसार इस तिथि को पवित्र स्नान, दान आदि धार्मिक कृतियां करने से आध्‍यात्‍मिक लाभ होता है। इस तिथि को देव और पितरों को उद्देश्‍य कर जो कर्म किए जाते हैं वे सब अक्षय होते हैं ।

*महत्‍व :*
अस्‍यां तिथौ क्षयमुपैति हुतं न दत्तं
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्‍तृतीया ।
उद्दिश्‍य दैवतपितृन्‍क्रियते मनुष्‍यै:
तच्‍चाक्षयं भवति भारत सर्वमेव ॥ - मदनरत्न

अर्थ : (श्रीकृष्‍ण कहते हैं) हे युधिष्ठिर इस तिथि को किया हुआ दान और हवन का क्षय नहीं होता है, इसीलिए मुनि ने अक्षय तृतीया ऐसा कहा है । देव और पितर इनको उद्देश्‍य कर इस तिथि में जो कर्म किए जाते हैं, वे सब अक्षय होते हैं । साढ़े तीन मुहूर्तो में से एक मुहूर्त माने जाने वाला यह एक मुहूर्त है। इसी दिन से त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ । इस दिन से एक कलह काल का अंत और दूसरे सत्‍य युग का प्रारंभ, ऐसी संधि होने के कारण अक्षय तृतीया के संपूर्ण दिन को मुहूर्त कहते हैं । मुहूर्त केवल एक क्षण का हो तो भी संधि काल के कारण उसका परिणाम 24 घंटे रहता है इसीलिए यह दिन संपूर्ण दिन शुभ माना जाता है, इसीलिए अक्षय तृतीया इस दिन को साढे तीन मुहूर्त में से एक मुहूर्त माना जाता है ।

*धार्मिक कृतियों का अधिक लाभ होना* : इस तिथि को की गई विष्‍णु पूजा, जप, होम, हवन, दान आदि धार्मिक कृतियों का अधिक आध्‍यात्‍मिक लाभ होता है ऐसा माना जाता है । अक्षय तृतीया के दिन समृद्धि प्रदान करने वाले देवताओं के प्रति कृतज्ञता का भाव रखकर उपासना की जाए तो उन देवताओं की कृपा दृष्टि कभी भी क्षय नहीं होती ऐसा माना जाता है । श्री विष्‍णु जी के साथ वैभव लक्ष्मी की प्रतिमा का कृतज्ञता भाव रखकर भक्‍ति भाव से पूजा करनी चाहिए। होम हवन और जप करने में समय व्‍यतीत करना चाहिए ।

*अक्षय तृतीया यह त्‍यौहार मनाने की पद्धति* : काल चक्र का प्रारंभिक दिन भारतीयों को हमेशा ही पवित्र लगता है, इसीलिए इस तिथि को स्नान आदि धर्म कृत बताएं गए हैं । इस दिन की विधि इस प्रकार है -पवित्र जल में स्नान, श्री विष्‍णु की पूजा, जप, होम, दान और पितृ तर्पण इस दिन अपिंडक श्राद्ध करना चाहिए यदि वह संभव ना हो तो कम से कम तिल तर्पण करना चाहिए ।

*ऊदक कुंभ का दान* : इस दिन देव और पितरों को उद्देश्‍य कर ब्राह्मण को उदक कुंभ का दान करना चाहिए ।

*शास्त्र* : अक्षय तृतीया, इस दिन ब्रह्मांड में अखंड रूप से तथा एक समान गतिशीलता दर्शाने वाली सत्‍व-रज लहरियों का प्रभाव अधिक मात्रा में होने से इन लहरियों के प्रवाहयोग से पितर एवं देव इनके लिए ब्राह्मण को किया गया दान पुण्‍यदायी एवं पिछले जन्‍म के लेनदेन के हिसाब को कर्म-अकर्म करने वाला होता है। कभी भी क्षय न होने वाली लहरियों के प्रभाव की सहायता से किया गया दान महत्‍वपूर्ण होता है।

*तिल तर्पण करना :* तिल तर्पण अर्थात देवता एवं पूर्वज इनको तिल एवं जल अर्पित करना। तिल यह सात्‍विकता का प्रतीक है तथा जल शुद्ध भाव का प्रतीक है। भगवान के पास सब कुछ है, अतः हम उन्‍हें क्‍या अर्पण करेंगे, उसी प्रकार मैं भगवान को कुछ अर्पण कर रहा हूं, यह अहंकार ना हो इसलिए तिल अर्पण करते समय भगवान ही मुझसे सब कुछ करवा ले रहे हैं ऐसा भाव रखना चाहिए। इससे तिल तर्पण करते समय साधक का अहंकार नहीं बढता, उसका भाव बढ़ने में सहायता होती है तिल तर्पण अर्थात देवता को तिल के रूप में कृतज्ञता एवं शरणागति का भाव अर्पित करना है।

*तिल तर्पण किसे करना चाहिए ? -*

*देवता* : सर्वप्रथम देवताओं का आवाहन करना चाहिए। तांबे अथवा किसी भी सात्‍विक धातु की थाली हाथ में लेनी चाहिए ब्रह्मा अथवा श्री विष्‍णु इनका अथवा उनके एकत्रित स्‍वरूप अर्थात भगवान दत्त का स्‍मरण करके, उन्‍हें उस थाली में आने का आवाहन करना चाहिए। तत्‍पश्‍चात देवता सूक्ष्म रूप में यहां आए हैं ऐसा भाव रखना चाहिए । तत्‍पश्‍चात उनके चरणों पर तिल अर्पित कर रहा हूं ऐसा भाव रखना चाहिए। परिणाम: प्रथम सूक्ष्म रूप से आए देवताओं के चरणों पर तिल अर्पण करने से तिल में देवताओं की ओर से प्रक्षेपित होने वाली सात्‍विकता अधिक मात्रा में ग्रहण होती है एवं जल अर्पण करने से अर्पण करने वाले का भाव जागृत होता है। भाव जागृत होने के कारण देवताओं की ओर से प्रक्षेपित सात्‍विकता तिल तर्पण करने वाले को अधिक मात्रा में ग्रहण करना संभव होता है।

*पूर्वज :* अक्षय तृतीया को पूर्वज पृथ्‍वी के निकट आने के कारण मानव को अधिक तकलीफ होने की संभावना होती है। मानव पर जो पूर्वजों का ऋण है उसको उतारने के लिए मानव ने प्रयत्न करना चाहिए, यह ईश्‍वर को अपेक्षित है। इसलिए अक्षय तृतीया को पूर्वजों को सद्गति मिलने के लिए तिल तर्पण करना चाहिए।

*पद्धति :* पूर्वजों को तिल अर्पण करने से पूर्व, तिलों में श्री विष्‍णु एवं ब्रह्मा इनके तत्‍व आने के लिए देवताओं से प्रार्थना करनी चाहिए। तत्‍पश्‍चात पूर्वज सूक्ष्म रूप में आए हैं एवं हम उनके चरणों पर तिल एवं जल अर्पित कर रहे हैं ऐसा भाव रखना चाहिए। तत्‍पश्‍चात 2 मिनट बाद देवताओं के तत्‍वों से भरी हुई तिल एवं अक्षता पूर्वजों को अर्पित करनी चाहिए। सात्‍विक बने हुए तिल हाथ में लेकर उसके ऊपर से थाली में धीरे-धीरे पानी छोड़ना चाहिए, उस समय दत्त, ब्रह्मा अथवा श्री विष्‍णु इनसे पूर्वजों को सद्गति देने हेतु प्रार्थना करनी चाहिए।

*परिणाम :* तिलों में सात्‍विकता ग्रहण करके रज,तम नष्ट करने की क्षमता अधिक है, साधक के भाव अनुसार तिल तर्पण करते समय सूक्ष्म रूप से थाली में आए हुए पूर्वजों के प्रतीकात्‍मक सूक्ष्म देह पर से काले आवरण दूर होकर उनके सूक्ष्म देह की सात्‍विकता बढती है एवं उन्‍हें अगले लोक में जाने के लिए आवश्‍यक ऊर्जा प्राप्‍त होती है।

*अक्षय तृतीया के दिन दान का महत्‍व :* अक्षय तृतीया के दिन किये हुए दान का कभी क्षय नहीं होता, इसलिए इस दिन किए गए दान से बहुत पुण्‍य मिलता है। बहुत पुण्‍य मिलने से जीव के द्वारा पूर्व में किए गए पाप कम होते हैं और उसका पुण्‍य संचय बढ़ता है। किसी जीव का पूर्व कर्म अच्‍छे होने पर उसका पुण्‍य संचय बढता है, इससे जीव को स्‍वर्ग प्राप्‍ति हो सकती है, परंतु साधकों को पुण्‍य प्राप्‍त करके स्‍वर्ग प्राप्‍ति नहीं करनी होती उन्‍हें तो ईश्‍वर प्राप्‍ति करनी होती है । इसलिए साधकों ने सुपात्र को दान करना आवश्‍यक होता है। यहां सत पात्र दान अर्थात (जहां अध्‍यात्‍म प्रसार के साथ राष्ट्र एवं धर्म इनके लिए कार्य किया जाता है ऐसे सब कार्यों में दान करना) सतपात्रे दान करने से दान करने वाले को पुण्‍य प्राप्‍ति नहीं होगी बल्‍कि दान का कर्म अकर्म होगा और उससे साधक की आध्‍यात्‍मिक उन्‍नति होगी,आध्‍यात्‍मिक उन्‍नति होने से साधक स्‍वर्ग लोक में ना जाकर उच्‍च लोक में जाएगा।

*धन का दान :* ऊपर किए गए उल्लेख के अनुसार सतपात्रे दान संत, धार्मिक कार्य करने वाले व्‍यक्‍ति, धर्म प्रसार करने वाली आध्‍यात्‍मिक संस्‍था आदि को वस्‍तु या धन के रूप में दान करना चाहिए।
*तन का दान :* धर्म विषयक उपक्रमों में सहभागी होना यह तन का दान है। इस हेतु देवताओं की विडंबना, धार्मिक उत्‍सवों में होने वाले अपप्रकार आदि रोकना चाहिए।

*मन का दान :* कुल देवता का नामजप करना उसे प्रार्थना करना इसके द्वारा मन अर्पण (दान) करना चाहिए।

*मृत्तिका पूजन :* हमेशा कृपा दृष्टि रखने वाली मृत्तिका अर्थात मिट्टी के द्वारा ही हमें धान्‍यलक्ष्मी, धनलक्ष्मी एवं वैभव लक्ष्मी इन की प्राप्‍ति होती है। अक्षय तृतीया का दिन कृतज्ञता भाव रखकर मृत्तिका अर्थात मिट्टी की उपासना करनी चाहिए ।

*मिट्टी मे मेढ़ बनाना एवं बुवाई :* संवत्‍सररम्‍भ के शुभ मुहूर्त पर जोती हुई खेत की जमीन में अक्षय तृतीया तक तैयार की हुई मिट्टी (जोती हुई जमीन को साफ करके खाद मिश्रित जमीन को ऊपर नीचे करना) के प्रति कृतज्ञता का भाव रखकर पूजन करना चाहिए। तत्‍पश्‍चात पूजन की हुई जमीन में क्‍यारियां बनानी चाहिए एवं उनमें बीजों की बुवाई करनी चाहिए । अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीजों की बुवाई प्रारंभ करने से उन बीजों से विपुल अन्‍न उपजता है एवं बीजों की कभी भी कमी नहीं होती । उससे वैभव प्राप्‍त होता है। बीज अर्थात खेती से प्राप्‍त धान्‍य अपनी आवश्‍यकतानुसार अलग रखकर बचा हुआ धान्‍य स्‍वयं के लिए एवं दूसरों के लिए अगली बुवाई के लिए बचा कर रखना चाहिए ।

*वृक्षारोपण :* अक्षय तृतीया इस शुभ मुहूर्त पर क्‍यारियां बनाकर लगाए गए फलों के वृक्ष बहुत फल देते हैं । उसी तरह आयुर्वेद में बताई हुई औषधि वनस्‍पति भी अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर लगाने से इन वनस्‍पतियों का क्षय नहीं होता अर्थात औषधि वनस्‍पतियों की कमी नहीं होती।

*हल्‍दी कुंकुम :* स्त्रियों के लिए अक्षय तृतीया का दिन महत्‍वपूर्ण होता है। चैत्र में स्‍थापित की गई चैत्र गौरी का विसर्जन उन्‍हें इस दिन करना होता है। इसलिए वे हल्‍दी कुमकुम भी करती है।

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