डॉ कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’ । इनके लेखन व लेखनी की धार पाठक को अनायास ही अपनी और आकर्षित करती है व पढ्ने हेतु मज़बूर करती है। आइये जाने इनका संक्षिप्त जीवन परिचय -
नाम – डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’
जन्म स्थान – भाटपार रानी,जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश २७४७०२
जन्म दिनांक – 10, अगस्त
जीवनसंगिनी – श्रीमती मीरा गुप्ता
संतान – पुत्री रत्न ( कु.ज्योती गुप्ता,M.Sc. व कु. श्रुति गुप्ता, B.Ed.)
आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा जिला देवरिया मे रहकर प्राप्त की। आपने उच्च शिक्षा हिंदी विषय मे प्राप्त की, तत्पश्चात हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी मे विशेष रूचि के चलते आपने हिंदी भाषा मे ही विद्या वाचस्पति की उपाधि अर्जित की। शिक्षा व साहित्य से विशेष लगाव के चलते आपने जीवन यापन के लिये भी किसी अन्य नौकरी के स्थान पर अध्यापन कार्य शुरु किया तथा वर्तमान मे बिहार के सीवान जिले के ‘उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इंटर कॉलेज’ मे हिंदी के प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं ।
रूझान- पद्य विधाओं मे रचना करना। काव्य रचना मे आपकी विशेष रूची है।
लेखन विधा - आप कविता के साथ साथ दोहा जैसी रचनाओं को हृदय की गहराईयों से कलम के माध्यम से करते हैं। आपकी रचनाओं में उत्तम भावों का समावेश होता है।
साहित्यिक परिचय- हिंदी भाषा व साहित्य के प्रति आपका समर्पण अत्यंत ही सराहनीय है। आदरणीय कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’ जी कई आभासी पटलों के माध्यम से साहित्य की सेवा मे जुटे हैं तथा बडे ही लगन भाव से रचनायें प्रस्तुत करते रहे हैं । आपको बचपन से ही साहित्य व रंगमंच मे रूची है। बचपन मे आपने दीपदान नामक राजस्थानी भाषा के नाटक मे बडे ही मन से एक कठिन किरदार निभाया जिसे बहुत सराहा गया। आपके द्वारा लिखी गयी कविताओं का संग्रह “काव्य निर्झर” नामक पुस्तक के माध्यम से प्रकाशित हुआ है । साहित्य संगम संस्थान ने आपकी बहुमूल्य योग्यता को पहचानते हुए आपको समीक्षक पैनल मे स्थान दिया है। आपने साहित्य मे अन्य रचनाकारों को आगे बढाने के उद्देश्य से “भाट्पारा साहित्य मंच” नामक संस्था की स्थापना भी की है।
डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’ जी की कुछ रचनाओं पर एक दृष्टि डालिये ।
1.
श्रृंगार माँ भारती का हिमालय मुकुट सँवारता है।
सागर भी चरणों में बैठ कर निज पाँव पखारता है।
हवाओं में पुष्प सुरभित तन मन की साँस लगती है।
नदियाँ तेरे हृदय की गल माल हार सज्जितसुशोभित है।
वंदन अराधना नित सूरज, चाँद, तारे हम सब गाते है।
भाव हृदय सुमन अर्पित कर, तेरा निश दिन गुणगान करे।
तेरे आँचल के हम है लाल, हम सच्चे सपूत तेरे बन जाये।
तेरी गोद में ही जन्म लिया, तेरी गोद में ही हम सो जाये।
श्रृंगार तेरा माँ कर जाये, श्रृंगार तेरा माँ कर जाये।
2.
भारत प्यारा देश हमारा, हम इसकी संतान हैं,
इसकी नदियाँ कलकल करती जाने जहान है,
इसकी मिट्टी चंदन से पावन, जल अमृत सा है,
यहाँ का मौसम रंग रंगीला, ऋतु भी सुहानी है,
जीवन के त्योहार अनोखें, यहाँ रीति पुरानी है,
गोरी के आँखों में सावन, पावन मनभावन है,
यहाँ मनती हर रोज दिवाली और दशहरा है,
यहाँ के पुरुष संस्कारों वाले संतान श्रवण है,
यहाँ की नारी सीता सावित्री और अनुसूया है.
श्री कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’ जी बहुत ही सरल स्वभाव के हैं । ‘किशन’ उपनाम आपको साहित्य संगम संस्थान, म0प्र0 द्वारा सम्मान के रूप मे दिया गया है, जिसके आप सर्वदा पात्र हैं। उ.प्र. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा एक कार्यक्रम मे आपके जीवन परिचय पर प्रस्तुति भी दी गयी। ऐसे साहित्य सेवक को कोटि-कोटि नमन है।