आसा जीवै जग मरै, लोग मरे मरि जाइ।*
*सोई मूबे धन संचते, सो उनते तन खाइ।*
*अर्थ:*
नश्वर जगत मरता है परन्तु आशा जीती रहती है, लोग मारकर फिर मरते चले जाते है। जो धन का अत्यधिक संग्रह करते है, वे भी मरते है, और जो कुछ समय के लिए बचे रह जाते है, वे उस धन को खाते भोगते है।....
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