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सूर्य उपासना का महापर्व छठ
भाटपार रानी (देवरिया)।
सूर्य की उपासना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है। ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं । वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं। वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं।
भारत में पाषाण युग से लेकर आद्यैतिहासिक काल तक सूर्योपासना की प्रथा विद्यमान थी। हङप्पा संस्कृति के विभिन्न पुरास्थलों की खुदाई में भी चक्र, स्वस्तिक, किरण-मंडल आदि कुछ ठीकरों पर खुदे हुये मिले हैं, जिन्हें बाद में सूर्य-पूजा से संबंद्ध कर दिया गया।
कीथ का विचार है, कि सूर्य-पूजा की परंपरा में आर्य तथा अनार्य दोनों ही तत्वों का सम्मिश्रण था। सूर्य की उपासना का महापर्व छठ बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मनाया जाने लगा है ।
भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। सूर्य की संचित शक्ति का रूप षष्ठी देवी हैं , जिन्हें छठी मईया कह कर संबोधित किया जाता है। सूर्य की शक्तियां ही सावित्री और माता गायत्री हैं, जिनसे जीवन की सृष्टि और पालन होता है। सावित्री के पश्चात जीवों के पालन हेतु षष्ठी के दिन ही मां गायत्री प्रक़ट हुईं। विश्वामित्र ऋषि के मुख से गायत्री मंत्र षष्ठी के दिन ही प्रष्फूटित हुआ था।
दुनिया में छठ ही एक ऐसा सांकृतिक महापर्व है जिसमें पहले डूबते हुए शक्ति की अराधना की जाती है फिर उगते हुए शक्ति की। दुनिया में शायद दूसरी कोई मिसाल नहीं जहां डूबते हुए शक्ति की अराधना की जाती हो।
लोक आस्था के इस महापर्व में शाम का अर्ध्य डूबते हुए सूरज को दिया जाता है, फिर उगते हुए सूरज को। यह एक ऐसा महापर्व है जिसमें न पुरोहित की जरुरत होती है न मूर्ति की ।
भारतीय संस्कृति में त्यौहार सिर्फ औपचारिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। त्यौहार जहाँ मानवीय जीवन में उमंग लाते हैं वहीं पर्यावरण संबंधी तमाम मुद्दों के प्रति भी किसी न किसी रूप में जागरूक करते हैं। सूर्य देवता के प्रकाश से सारा विश्व ऊर्जावान है और इनकी पूजा जनमानस को भी क्रियाशील, उर्जावान और जीवंत बनाती है। यह त्यौहार में भगवान सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि सौरमंडल में चमकता हुआ सूर्य मैं ही हूं ।
आदित्य हृदय स्तोत्र में इस बात का वर्णन है, कि भगवान सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण हैं तथा पितर आदि भी यही हैं। सूर्य उपासना का महापर्व छठ व्रत ना होकर तपस्या है , जो वाह्य और आंतरिक दोनों ही प्रकार से मनुष्य को शुद्ध् करता है और मनुष्य में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है ।