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एम.एड संघर्ष समिति ने राजस्थान शिक्षा सेवा नियमों में बदलाव पर जताई आपत्ति
एम.एड संघर्ष समिति ने राजस्थान शिक्षा सेवा नियमों में बदलाव पर जताई आपत्ति
बदलाव प्रकृति का नियम है। बदलाव होना भी चाहिए,किन्तु कोई भी बदलाव या परिवर्तन परिष्कृत व परिमार्जित रूप में हो तो ही सार्थक है। वर्तमान में राजस्थान सरकार ने शिक्षा सेवा नियमों में बदलाव किया है। सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। जो नियमावली 1971 में बनी थी वह आज के परिपेक्ष्य में बदलनी चाहिए। यह अच्छी पहल है जो नियम पुराने हो चुके उनमें नयापन जरूरी है।
सभी सेवारत शिक्षकों द्वारा इसका स्वागत भी किया गया। अनुभव का लाभ, नए कैडर का निर्माण, योग्यता में वृद्धि आदि काम किये। जब हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करते है तो निश्चित रूप से योग्यता व अनुभव के आधार पर तय करते है।
शिक्षकों की योग्यता के निर्धारण हेतु राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का गठन भारत की संसद द्वारा किया गया और इसे पर्याप्त शक्तियां भी प्रदान की गईl यही परिषद अध्यापकों की योग्यता व प्रशिक्षण के मानदंडों का निर्धारण करती है।
सरकार द्वारा सेवा नियमों में जो परिवर्तन किया है, यह परिवर्तन योग्यताओं को नकारते हुए किये गए है। जैसे- सेवारत शिक्षकों में बहुत से शिक्षक एम.एड. (शिक्षा अधिस्नातक) नेट(राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) विद्या वाचस्पति (Ph.D.) आदि योग्यताएँ रखते हैं; किंतु इनका कहीं कोई जिक्र नही किया गया है। जो यह दर्शाता है कि उच्च योग्यताधारी शिक्षकों की योग्यता का लाभ उन्हें नही मिलेगा। जबकि इन योग्यताओं का लाभ अवश्य ही मिलना चाहिए था। साथ ही राजस्थान में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक शिक्षा के शिक्षकों के लिए जिला स्तरीय प्रशिक्षण स्कूल जो कि जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान(DIETs) के नाम से जाने जाते है। ये संस्थान प्रारम्भिक शिक्षा के तहत संचालित होते हैं।
इन संस्थानों में एनसीटीई के नियमों की अवहेलना की जा रही है। इन संस्थाओं के लिए सेवा नियमों में कोई स्थान नही है। जबकि राजस्थान में एम.एड की डिग्री करवाई जाती है और एनसीटीई के नियमानुसार डीएलएड संस्थानों में इनकी डिग्री का उपयोग किया जा सकता है। इन प्रशिक्षण संस्थानों के लिए भी सेवा नियम बनाकर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की जाए, जो कि सेवा नियमों से अब भी बाहर है। लम्बे समय से इन संस्थाओं में कामचलाऊ स्कूली शिक्षकों को प्रशिक्षक के रूप में प्रतिनियुक्त कर प्रशिक्षण कार्यक्रम को जैसे-तैसे पूर्ण करवाया जा रहा है। जो कि नियम विरुद्ध है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण भी आवश्यक है, लेकिन इस कामचलाऊ व्यवस्था को समाप्त कर स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति करने के प्रति राज्य सरकार पूरी तरह से उदासीन हैl शिक्षा जगत में एमएड की डिग्री उपेक्षा का शिकार रही है। इन परिवर्तनों में भी निराशा ही हाथ लगी है। शिक्षा विषय में स्नातकोत्तर (एम.एड.), राष्ट्रीय/राज्य पात्रता परीक्षा(नेट/सेट ) एम.फिल. तथा शिक्षा में डाक्टरेट (पीएच.डी.) जैसी महत्वपूर्ण उपाधियों का राजस्थान में सिवाय निजी महाविद्यालय में नौकरी करने के अलावा और कोई महत्व नहीं है। शिक्षक शिक्षा की इन सभी उच्च डिग्री को वर्ष 1998 से शिक्षा विभाग भूल कर बैठा है।विदित है कि राजस्थान में राज्य शैक्षिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान परिषद् (एस.सी.ई आर.टी.) उदयपुर, राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान(आई.ए एस.ई.) अजमेर एवं बीकानेर तथा सभी जिलों में 33 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट्स)हैं लेकिन सरकारी सेवाओं में शिक्षक शिक्षा की इन उच्च डिग्रियों का उपयोग नहीं के बराबर है। वर्ष 1998 से पहले शिक्षा विभाग अपने कार्मिक को एम.एड. के आधार पर प्रमोशन देता था लेकिन 1998 के बाद यह व्यवस्था समाप्त कर दी गयी। नतीजतन पिछले 22 सालों से राजस्थान में एम.एड. जैसी उच्च योग्यता उपेक्षित हो रही है। वर्ष 2015 से जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के पश्चात बी.एड. का पाठ्यक्रम दो वर्ष का करके बी.एड. को उच्च शिक्षा में सम्मिलित किया गया था, वहीं दूसरी ओर अनुदानित बी.एड. शिक्षकों के लिए राज्य सरकार ने पांच शासकीय बी.एड. काॅलेज स्थापित किए थे, जो शिक्षक शिक्षा के सेवानियम के अभाव में बन्द हो गए। आज हमारे राज्य की शिक्षक शिक्षा दोहरे नियम पर चल रही है; जहां एक ओर निजी बी.एड. काॅलेज उच्च शिक्षा आयुक्तालय जयपुर के अधीन है वहीं राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान शिक्षा निदेशालय स्कूल शिक्षा बीकानेर के अन्तर्गत संचालित है। इन संस्थानों को लेकर भी नियमावली में कोई स्थान नही दिए गया। राजस्थान में शिक्षक शिक्षा के सेवानियम नहीं बनाने पर टीचर एडुकेटर्स में आक्रोश है। राज्य शैक्षिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान परिषद्, राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में प्रति नियुक्तियों की अस्थाई व्यवस्था बंद हो एवं एनसीटीई अनुसार सेवा नियमावली का निर्माण किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से राज्य सरकार ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई।डॉ.राजेन्द्र श्रीमाली, डॉ.प्रभु दयाल, डॉ प्रशांत गुर्जर,राम बाबू जांगीड़, ललित कुमार सैन, राकेश कडेला, नरेंद्र मैन्सन, महावीर पूनिया आदि सदस्यों ने रोष व्यक्त किया। संभाग अध्यक्ष ललित कुमार सैन ने बताया कि डाइट्स जो कि शिक्षा निदेशालय बीकानेर द्वारा संचालित है, इनको सेवा नियमों जगह न देना गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण के प्रति सरकार की उदासीनता जाहिर होती है। जबकि यहाँ पर सेवापूर्व व सेवारत शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है।
अतः सरकार को चाहिए कि सेवा नियमों में बदलाव पर पुनर्विचार करें।अन्यथा गुणवत्ता के अभाव में भावी पीढ़ी किस ओर जाएगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।