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हिटमैन रोहित शर्मा

भारतीय क्रिकेट में कुछ नाम ऐसे हैं, जो सिर्फ आँकड़ों से नहीं, अपने सफ़र से पहचाने जाते हैं। रोहित शर्मा उन्हीं में से एक हैं—एक ऐसा खिलाड़ी, जिसने शुरुआती ठोकरों को अपनी ताक़त बनाया और अंततः भारतीय क्रिकेट का चेहरा बन गया।

रोहित शर्मा जब भारतीय टीम में आए, तो उन्हें एक टैलेंटेड मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज़ माना गया। कभी नंबर 5, कभी नंबर 6—रन बनते थे, लेकिन निरंतरता नहीं थी। मौके मिलते रहे, सवाल भी उठते रहे। कई बार लगा कि शायद यह प्रतिभा पूरी तरह खिल नहीं पाएगी। लेकिन रोहित ने हार नहीं मानी। उन्होंने इंतज़ार किया—अपने सही स्थान का, अपने सही समय का।

2013 में जब रोहित शर्मा को ओपनिंग की ज़िम्मेदारी मिली, तो मानो उनकी बल्लेबाज़ी को नई पहचान मिल गई। गेंद को देर तक देखने की कला, शुरुआती ओवरों में धैर्य और फिर अचानक आक्रमण। रोहित ने दिखा दिया कि “क्लास अगर सही जगह मिले, तो इतिहास बन जाता है।”

तीन दोहरे शतक, अनगिनत बड़े स्कोर और वनडे क्रिकेट में एक अलग ही दबदबा—रोहित शर्मा के इन कारनामों ने उन्हें भारत का सबसे भरोसेमंद ओपनर बना दिया। रोहित की बल्लेबाज़ी सिर्फ ताक़त नहीं, समझ का खेल है। वह जानते हैं कब रुकना है और कब मैच छीन लेना है। यही कारण है कि बड़े टूर्नामेंटों में उनकी पारियाँ अक्सर टीम को मज़बूत नींव देती रही हैं।

करियर के आख़िरी पड़ाव में जब रोहित शर्मा को भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गई, तो यह सिर्फ पद नहीं था—यह अनुभव पर किया गया भरोसा था। रोहित की कप्तानी की सबसे बड़ी खूबी रही—खिलाड़ियों को आज़ादी देना। वह शांत रहे, दबाव में भी संयम नहीं खोया और टीम को एकजुट रखकर आगे बढ़ाया।

इसी का नतिका रहा कि रोहित शर्मा की कप्तानी में भारत ने टी20 वर्ल्ड कप का खिताब जीता, चैंपियंस ट्रॉफी में देश को चैंपियन बनाया और 2023 वनडे वर्ल्ड कप में टीम को लगभग चैंपियन बना दिया। हालाँकि 2023 का फाइनल जीत में नहीं बदला, लेकिन उस टूर्नामेंट में भारत का दबदबा रोहित की आक्रामक सोच और नेतृत्व का नतीजा था। उनकी तेज़ शुरुआतों ने पूरे टूर्नामेंट में भारत को हमलावर मानसिकता दी।

आज रोहित शर्मा भारतीय टीम के कप्तान नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी ख़त्म नहीं हुई है। उनकी लड़ाई अब 2027 वर्ल्ड कप तक खुद को तैयार रखने की है—फिटनेस, फ़ॉर्म और अनुभव के सहारे। यह संघर्ष सिर्फ एक टूर्नामेंट खेलने का नहीं, बल्कि यह साबित करने का है कि क्लास और जज़्बा उम्र के मोहताज नहीं होते।

रोहित शर्मा न सबसे ज़्यादा बोलते हैं, न ही खुद को आगे रखते हैं। लेकिन जब बात आती है टीम के लिए खेलने की, टीम को आगे ले जाने की— तो उनका योगदान अमिट है।

रोहित शर्मा की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर इंसान खुद पर भरोसा रखे, तो असफलताएँ भी सफलता की सीढ़ी बन जाती हैं।
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