
शीर्षक :
देशभक्ति के उपदेश और निजी सुविधाओं का विरोधाभास
उपशीर्षक :
नेताओं और प्रभावशाली वर्ग के दोहरे मापदंडों पर उठते सवाल
समाचार विवरण :
ये वही महाशय हैं जो आम जनता को अपने बच्चों को रामायण और महाभारत पढ़ाने की सलाह देते नहीं थकते, लेकिन उनकी अपनी बेटी कुहू ने लंदन के प्रतिष्ठित किंग्स कॉलेज से साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) में बीएससी की डिग्री हासिल की है। यह उदाहरण एक बार फिर देश में चल रहे उस विरोधाभास को उजागर करता है, जहाँ उपदेश कुछ और होते हैं और व्यवहार कुछ और।
वास्तविकता यह है कि भारत के अधिकांश बड़े नेता, प्रभावशाली व्यक्तित्व और तथाकथित मार्गदर्शक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजते हैं, जबकि देश के आम नागरिकों को जाति और धर्म के मुद्दों में उलझाए रखा जाता है। शिक्षा, रोजगार और विकास जैसे मूलभूत प्रश्नों से ध्यान हटाकर समाज को विभाजन की दिशा में मोड़ना एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है।
सूत्रों के अनुसार, इस काम को और प्रभावी बनाने के लिए आजकल “ब्रांडेड बाबाओं” और कथित धर्मगुरुओं को आगे किया जा रहा है, जो मंचों से प्रवचन देकर भावनात्मक मुद्दों को हवा देते हैं। इससे जनता का ध्यान वास्तविक समस्याओं—जैसे शिक्षा की गुणवत्ता, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता—से भटक जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक आम नागरिक सवाल पूछना और तथ्यों के आधार पर सोच विकसित करना नहीं सीखेगा, तब तक यह दोहरा चरित्र बना रहेगा। देश को आवश्यकता है समान अवसर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जागरूक समाज की, न कि खोखले उपदेशों और दिखावटी नैतिकता