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सलाम है उस जज्बे को, जिसने दूध की सेवा के बदले अपना वंश वार दिया। अमर शहीदी: दो गिलास दूध और पूरे परिवार का बलिदान।

सलाम है उस जज्बे को, जिसने दूध की सेवा के बदले अपना वंश वार दिया।
अमर शहीदी: दो गिलास दूध और पूरे परिवार का बलिदान
सरहिंद: इतिहास के पन्नों में जब भी अटूट श्रद्धा और निस्वार्थ सेवा का जिक्र होगा, अमर शहीद बाबा मोती राम मेहरा जी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिया जाएगा। आज उनका शहीदी दिवस हमें उस रूहानी साहस की याद दिलाता है, जिसने मुगल सल्तनत के जुल्मों के आगे झुकने के बजाय मौत को गले लगाना बेहतर समझा।
सेवा का वह 'अपराध'
यह कहानी उस समय की है जब दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों (बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी) और माता गुजरी जी को सरहिंद के 'ठंडे बुर्ज' में कैद किया गया था। कड़ाके की ठंड और भूख-प्यास के बीच, मुगल हुकूमत का सख्त पहरा था कि उन्हें कुछ भी खाने-पीने को न दिया जाए।
ऐसे समय में, बाबा मोती राम मेहरा जी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए, पहरेदारों को रिश्वत दी और अपनी कीमती वस्तुएं बेचकर साहिबजादों और माता जी के लिए गर्म दूध पहुँचाया।
कोल्हू में पिस गया पूरा परिवार
जब सूबा सरहिंद (वजीर खान) को इस 'गुस्ताखी' का पता चला, तो उसने बाबा मोती राम मेहरा जी को सपरिवार पेश करने का हुक्म दिया। वजीर खान ने इसे राजद्रोह माना। सजा इतनी रूह कंपा देने वाली थी कि सुनकर आज भी आंखें नम हो जाती हैं।
* बलिदान: बाबा मोती राम मेहरा जी, उनकी माता, धर्मपत्नी और छोटे बच्चे को जिंदा कोल्हू में पीसकर शहीद कर दिया गया।
* कीमत: इतिहास गवाह है कि मात्र दो गिलास दूध पिलाने की सेवा के बदले में एक हंसता-खेलता परिवार कुर्बान हो गया।
आज की पीढ़ी के लिए संदेश
बाबा मोती राम मेहरा जी का बलिदान हमें सिखाता है कि सेवा केवल कर्म नहीं, बल्कि एक इबादत है। आज उनके शहीदी दिवस पर देश और कौम उन्हें कोटि-कोटि नमन करती है। उनकी शहादत हमें जुल्म के खिलाफ खड़े होने और मानवता की रक्षा करने की प्रेरणा देती रहती है।

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