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उत्तर प्रदेश बांदा में ठेंगे पर NGT का आदेश, माफिया और पत्रकारों की मिलीभगत से चलता है खनन का खेल !

बांदा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के 3 दिसंबर 2025 के आदेश के बावजूद बांदा जिले में अवैध मौरम खनन पर प्रभावी रोक नहीं लग पाई है। आरोप है कि जिला खनिज विभाग और खदान संचालक एनजीटी के आदेशों को नजरअंदाज करते हुए खुलेआम खनन गतिविधियां जारी रखे हुए हैं।

15 दिसंबर 2025 को ग्राम पंचायत सांडी, मौरम खंड-77 से सामने आए वीडियो ने एक बार फिर प्रशासनिक दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह खदान न्यू यूरेका माइन्स एंड मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम दर्ज है, जिसके स्वामी हिमांशु मीणा बताए जा रहे हैं। कंपनी का संबंध मध्यप्रदेश के होशंगाबाद-भोपाल स्थित मल्होत्रा ग्रुप से जोड़ा जा रहा है।

बताया जा रहा है कि एनजीटी ने 3 दिसंबर को ओ.ए. याचिका संख्या 614/2025 पर सुनवाई करते हुए संयुक्त जांच समिति गठित करने का आदेश दिया था, ताकि ग्राउंड पर अवैध खनन की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके। याचिका में ग्राम सांडी के खंड-77 में ग्रामसभा की भूमि, किसानों की निजी जमीन और लीज एरिया से बाहर मौरम खनन के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसके बावजूद, खनन गतिविधियां बेरोकटोक जारी रहने का दावा किया जा रहा है।

बाँदा : ठेंगे पर #NGT का आदेश

रोक के बावजूद धड़ल्ले से माफिया कर रहे हैं खनन

खनन रोक पाने में प्रशासन नाकाम

स्थानीय माफिया और पत्रकारों की मिलीभगत

@bhadasmedia @bandapolice @Uppolice

सूत्रों का कहना है कि बांदा जिले की मौजूदा 15 मौरम खदानों में पट्टाधारकों ने मजबूत ‘मीडिया मैनेजमेंट’ खड़ा कर रखा है। आरोप है कि हर साल कुछ लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचाकर अवैध खनन को संरक्षण दिया जाता है। इस सीजन में भी हालात अलग नहीं बताए जा रहे हैं। पैलानी क्षेत्र की सिन्धनकला और सादिक मदनपुर खदानों को लेकर भी ऐसे ही आरोप सामने आए हैं, जहां कथित तौर पर पत्रकारों के माध्यम से लेन-देन किया जाता है।

ग्राम सांडी, खंड-77 में कथित तौर पर खदान से जुड़े कुछ स्थानीय लोगों द्वारा इस ‘मैनेजमेंट’ की जिम्मेदारी संभालने की बातें कही जा रही हैं। वहीं सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि इस खदान में कुछ राजनीतिक चेहरों और कारोबारी समूहों की हिस्सेदारी है, जबकि शेष हिस्से में छोटे ठेकेदार शामिल बताए जाते हैं। पैलानी की अमलोर मौरम खदान और बांदा के अन्य इलाकों—बबेरू, मर्का और कोलावल रायपुर—में भी राजनीतिक और कारोबारी गठजोड़ के आरोप लगाए जा रहे हैं।

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में सीएजी रिपोर्ट के आधार पर फर्जी रॉयल्टी, टेंपर्ड नंबरों के जरिए परिवहन, प्रतिबंधित मार्गों से मौरम निकासी और खनिज न्यास फाउंडेशन के नियमों की अनदेखी की गई। नियमों के अनुसार, खदान संचालकों को कुल खनिज आय का 5 प्रतिशत प्रभावित गांवों में विकास कार्यों और पौधरोपण पर खर्च करना होता है, लेकिन आरोप है कि इसका पालन नहीं किया जा रहा।

इन तमाम बिंदुओं के बावजूद, आरोप है कि बांदा प्रशासन एनजीटी में फरवरी माह में होने वाली अगली सुनवाई से पहले कोई ठोस कार्रवाई करने से बचता नजर आ रहा है। स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े संगठनों का कहना है कि यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो केन नदी क्षेत्र में हो रहा यह अवैध खनन पर्यावरणीय तबाही को और गहरा कर देगा।

बांदा। उत्तर प्रदेश सरकार जहां अवैध खनन के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की बात कर रही है, वहीं बांदा जनपद में बालू खनन माफिया के हौसले अब भी बुलंद नजर आ रहे हैं। प्रशासनिक कार्रवाई के बावजूद अवैध खनन का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है। इस बीच, कुछ कथित पत्रकारों द्वारा खनन माफिया को संरक्षण देने और अवैध वसूली में संलिप्त होने के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, बांदा में कुछ लोग खुद को पत्रकार बताकर खदान प्रबंधन के नाम पर अवैध वसूली कर रहे हैं। आरोप है कि पत्रकारिता की आड़ में खनन माफिया से सांठगांठ कर न केवल अवैध खनन को संरक्षण दिया जा रहा है, बल्कि अन्य पत्रकारों को भी ‘मैनेज’ करने की कोशिशें की जा रही हैं, ताकि यह मामला शासन-प्रशासन तक न पहुंचे।

शिकायतों में एक अखबार से जुड़े व्यक्ति अंशु का नाम सामने आया है। सूत्रों का दावा है कि यह खुद को पत्रकार बताकर खनन माफिया के पक्ष में काम करता है। यह भी आरोप लगाया गया है कि उनके खिलाफ पहले से कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और पुलिस कार्रवाई के बावजूद वे पत्रकारिता की आड़ में सक्रिय हैं। सवाल उठ रहा है कि ऐसे मामलों की निष्पक्ष जांच अब तक क्यों नहीं हुई।

इसी तरह, सूत्रों ने यह भी दावा किया है कि दैनिक जागरण झांसी संस्करण से जुड़े एक ब्यूरो सदस्य के प्रभाव और संरक्षण का हवाला देकर मान्यता से जुड़ी फाइलें आगे बढ़ाई जाती हैं। आरोप है कि इसी कथित संरक्षण के चलते कुछ लोग बेखौफ होकर अवैध गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। वहीं, लखनऊ से संचालित एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर मनोज द्वारा सूचना विभाग और अन्य पत्रकारों को मैनेज करवाने की बात सामने आई है। इसी तरह मनीष मिश्रा जो खुद को एडीटीवी का रिपोर्टर बताते हैं, पर इटवा खदान में पत्रकारों को मैनेज करवाने का आरोप है।

एक अन्य मामले में ‘अमर भारती’ नामक अखबार से जुड़े होने का दावा करने वाले इलियास पर आरोप है कि वह अखबार का दबदबा दिखाकर पुलिस को गुमराह करने और खनन माफिया के साथ मिलकर अवैध खनन का ठेका दिलाने में भूमिका निभा रहे हैं। शिकायतों में यह भी कहा गया है कि पत्रकारों के नाम पर धन वसूली कर उसे अलग-अलग लोगों में बांटने का काम किया जाता है।

इसके अलावा, ‘सहारा समय’ नामक अखबार से जुड़े हरदेव और खुद को विभिन्न बड़े मीडिया संस्थानों का प्रतिनिधि बताने वाले कुछ अन्य लोगों पर भी खनन माफिया से सांठगांठ और अवैध लेन-देन के आरोप लगाए गए हैं। कुछ नाम ऐसे भी सामने आए हैं जो टीवी चैनलों के रिपोर्टर होने का दावा कर खदानों में पत्रकारों को ‘मैनेज’ कराने की भूमिका निभा रहे हैं।

इन तमाम आरोपों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब प्रशासन अवैध खनन पर कार्रवाई कर रहा है, तो फिर पत्रकारिता की आड़ में चल रहे इस कथित नेटवर्क पर कब शिकंजा कसेगा। स्थानीय लोगों और ईमानदार पत्रकारों की मांग है कि पूरे मामले की निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच कराई जाए, ताकि असली पत्रकारिता की साख बचाई जा सके और अवैध खनन माफिया को मिल रहे संरक्षण पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके।

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