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प्लास्टिक का पेड़ लगा मोमबत्ती जलाने का नहीं शोक सप्ताह मनाने को है--- शास्त्री जी

चंडीगढ़ 26 दिसंबर 25 आर विक्रम शर्मा रक्षा शर्मा अनिल शारदा हरीश शर्मा अश्विनी शर्मा भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में दिसंबर मास का अंतिम सप्ताह यह कहिए अंतिम 10 दिन मानवता के लिए शौक के दिन है सिख पंथ के रचयिता गुरु गोविंद सिंह ने मानवता के लिए पंथ के लिए अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी और फिर अपने चार साहबजादे बाबा अजीत सिंह बाबा जुझार सिंह बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी की और फिर अंत में अपनी कुर्बानी दी थी।। मुगलों से लोहा लेते हुए दिसंबर की 20 तारीख पौष मास में उन्होंने आनंदपुर साहब का किला अपने परिवार सहित छोड़ दिया था लेकिन सरसा नदी तक पहुंचते पहुंचते परिवार बढ़ गया था माता गुजरी बच्चों को लेकर अलग हो गई और गुरु गोविंद सिंह अलग रास्ते पड़ गए और कई दिनों तक जंगलों में इधर-उधर भटकते रहे। और मुगल उनका पीछा करते रहे। अंत में दो बड़े साहबजादे चमकौर गढ़ी में और दो छोटे साहबजादे सरहिंद की दीवारों में शहीद हुए थे। और माता गुजरी ने भी सरहिंद में ही तड़प तड़प कर प्राण त्याग दिए थे। इन बच्चों को और माता गुजरी कौर को ठंडे बुर्ज में 3 दिन मोतीलाल मेहरा ने गर्म दूध की मुगलों से छुपकर सेवा की थी।। इसके बदले में गुस्सैल काफिर जेहादियों ने उसके 7 साल के बच्चे को धरम पत्नी को और उनकी 80 वर्षीया माता को और अंत में मोतीलाल मेहरा को कोल्हू में पेर दिया गया था। इतिहास गवाह है इस परिवार की सिख पंथ व मानवता के लिए यह कुर्बानी अद्भुत और लसानी है। जैसे गुरु गोविंद सिंह जी का वैसे ही मोतीलाल मेहरा का पूरा बीज नाश यानी वंश नाश मुगलों ने निर्ममता पूर्वक खत्म कर दिया था।। गुरु गोविंद सिंह जी ने तत्कालिनिक परिवेश को संबोधित हुए कहा था कि इस्लामी मुसलमान यानी काफिरों जिहादियों पर कभी भी कभी भी कभी भी विश्वास मत करना यह कौम दुनिया की धरती पर सबसे जालिम निर्दय बे रहम कौम है।। यह वचन गुरु गोविंद सिंह जी ने किए थे।।

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