
वीर बाल दिवस: साहस और बलिदान की अमर गाथा
26 दिसंबर का दिन भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, लेकिन यह चमक किसी जश्न की नहीं, बल्कि उस सर्वोच्च बलिदान की है जिसने अन्याय के सामने झुकने से इनकार कर दिया था। भारत सरकार ने इसी दिन को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की है, जो सिखों के 10वें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों—बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत को समर्पित है।
इतिहास की वो काली रात और बिछड़ता परिवार
यह कहानी सन 1704-05 की है। मुगलों और पहाड़ी राजाओं ने आनंदपुर साहिब के किले को कई महीनों तक घेरे रखा था। अंततः, गुरु गोबिंद सिंह जी ने किला छोड़ने का निर्णय लिया। सरसा नदी के किनारे भयंकर युद्ध और बाढ़ के कारण गुरु जी का परिवार बिछड़ गया।
गुरु गोबिंद सिंह जी और बड़े साहिबजादे एक तरफ चले गए, जबकि माता गुजरी जी (दादी) अपने दो छोटे पोतों—बाबा जोरावर सिंह (उम्र लगभग 9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (उम्र लगभग 7 वर्ष)—के साथ अलग हो गईं। उन्हें उनके रसोइए गंगू ने शरण दी, लेकिन लालच में आकर उसने मुगलों को खबर कर दी और उन्हें गिरफ्तार करवा दिया।
सरहिंद की दीवारें और नन्हे वीरों का साहस
गिरफ्तारी के बाद, माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर खान ने बच्चों को इस्लाम कबूल करने के बदले जान बख्शने, धन-दौलत और ऐशो-आराम का लालच दिया। लेकिन गुरु के उन सिंहों ने, जिनकी उम्र अभी खेलने-कूदने की थी, नवाब की आँखों में आँखें डालकर कहा— "हमारा धर्म हमें अपनी जान से भी प्यारा है।"
जब लालच काम न आया, तो उन्हें डराया गया। कड़कड़ाती ठंड में उन्हें 'ठंडे बुर्ज' में रखा गया, जहाँ दीवारें खुली थीं और हवा हड्डियों को कंपा देने वाली थी। लेकिन दादी की शिक्षा और पिता के संस्कारों ने उनका हौसला टूटने नहीं दिया।
26 दिसंबर: शहादत का दिन
अंततः, 26 दिसंबर 1705 को वजीर खान ने वह क्रूर आदेश दिया जिसे सुनकर इतिहास भी कांप उठा। उसने दोनों नन्हे साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवाने का हुक्म दिया।
जैसे-जैसे दीवार ऊँची होती गई, वजीर खान ने उनसे आखिरी बार धर्म बदलने को कहा। लेकिन साहिबजादों ने 'बोले सो निहाल' के जयकारे लगाए और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उधर, इस खबर को सुनकर माता गुजरी जी ने भी ठंडे बुर्ज में अपने प्राण त्याग दिए।
इस दिवस का महत्व
'वीर बाल दिवस' हमें याद दिलाता है कि वीरता का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता। यह दिन हमें सिखाता है कि:
धर्म और सत्य के लिए अडिग रहना: चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहिए।
अन्याय के खिलाफ आवाज: एक नन्हे बालक भी अगर ठान ले, तो वह बड़े से बड़े साम्राज्य की नींव हिला सकता है।
आज हम उन नन्हे शहीदों को नमन करते हैं जिन्होंने अपने प्राण देकर भारत की संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा की। उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।