logo

फ्रीबी राजनीति ने देश को अपाहिज बना दिया है: सरकारें वोट के लिए भविष्य गिरवी रख रही हैं:


✍️ डॉ. महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल की कलम से

विशेष राजनीतिक टिप्पणी
अब यह कहना अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि कटु सत्य है कि भारत आज मेहनतकश राष्ट्र से धीरे-धीरे मुफ़्तखोरी का समाज बनता जा रहा है। यह स्थिति किसी प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही फ्रीबी आधारित वोट-बैंक राजनीति की देन है, जिसमें हर सरकार ने सत्ता के लिए देश की आत्मा को दाँव पर लगा दिया।
फ्रीबी: जनकल्याण नहीं, राजनीतिक रिश्वत-जिसे आज “जनकल्याण” कहा जा रहा है, उसका बड़ा हिस्सा वास्तव में राजनीतिक रिश्वत है—मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, नकद ट्रांसफर, मुफ्त सुविधाएँ—बिना यह पूछे कि लाभार्थी आत्मनिर्भर बना या नहीं।
सरकारें जानती हैं कि
👉 मेहनत करने वाला सवाल पूछता है
👉 मुफ्तखोर सिर्फ़ अगली किश्त देखता है
इसीलिए नीति मेहनत को नहीं, निर्भरता को बढ़ावा देती है।
योग्यता का गला घोंटती व्यवस्था
आज की सबसे खतरनाक सच्चाई यह है कि—
• कम अंकों पर सरकारी पद
• न्यूनतम योग्यता पर सर्वोच्च जिम्मेदारी
• और सर्वोच्च प्रतिभा के लिए “कोई जगह नहीं”
जो युवा 95–99% अंक लाते हैं, वे देश छोड़ रहे हैं।जो व्यवस्था में फिट नहीं बैठते, वे विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।यह ब्रेन ड्रेन नहीं, ब्रेन रिजेक्शन है—सरकारी नीतियों द्वारा।
महँगाई पर रोना, लेकिन कारण पर चुप्पी
कुछ विचारधाराएँ दिन-रात चिल्लाती हैं—महँगाई बढ़ गई, देश पीछे रह गया।लेकिन यह नहीं बतातीं कि—
• जब उत्पादन करने वाला वर्ग सिकुड़ेगा
• जब कमाने वालों पर बोझ बढ़ेगा
• जब मुफ्त खाने वालों की संख्या बढ़ेगी
तो अर्थव्यवस्था कैसे बचेगी?
वोट-बैंक ने राष्ट्रहित को कुचल दिया
आज सरकारें राष्ट्र नहीं चला रहीं, गणित चला रही हैं—किस जाति, किस वर्ग, किस समूह को कितना मुफ्त देना है ताकि सत्ता बनी रहे।
इस राजनीतिक कायरता का परिणाम है—
• बढ़ता भ्रष्टाचार
• प्रशासनिक अराजकता
• कानून का मज़ाक
• और भीतर ही भीतर उबलता असंतोष
देश आज सचमुच बारूद के ढेर पर बैठा है।
कठोर लेकिन अनिवार्य सवाल
• क्या सरकार की जिम्मेदारी केवल वोट जीतना है?
• क्या मेहनत करने वालों को दंड और मुफ्तखोरों को इनाम मिलेगा?
• क्या योग्यता अपराध बन चुकी है?
अगर जवाब “नहीं” है, तो नीति बदलनी होगी—नारे नहीं।
अब भी समय है
• फ्रीबी योजनाओं पर तुरंत रोक या कड़ी शर्तें
• योग्यता आधारित शिक्षा और भर्ती
• काम न करने पर लाभ नहीं—यह स्पष्ट संदेश
• राजनीति में नैतिक साहस, न कि जनभावना की दलाली
निष्कर्ष: चेतावनी अंतिम है
अगर सरकारें अब भी नहीं जागीं,अगर मेहनत को सम्मान और मुफ्तखोरी को प्रोत्साहन मिलता रहा,
तो वह दिन दूर नहीं जब

👉 देश चलाने वाले कम होंगे
👉 और सरकार से माँगने वाले ज़्यादा।
इतिहास माफ़ नहीं करता—न नाकाम नीतियों को, न वोट के लिए देश बेचने वालों को।

4
2157 views