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सनसनी नहीं, सच्चाई चाहिए : जब जाति की आग मीडिया की हेडलाइन से भड़काई जाती है

✍️ डॉ. महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल की कलम से

भोपाल / झालावाड़ (राजस्थान)

मंदिर की मटकी से पानी पीने को लेकर युवक पर कुल्हाड़ी से हमला—यह खबर जितनी गंभीर है, उतनी ही गंभीर है इसका ग़लत प्रस्तुतिकरण। दुर्भाग्यपूर्ण यह नहीं कि हमला हुआ, बल्कि यह है कि प्रिंट मीडिया ने जिस तरह से इस घटना की हेडलाइन गढ़ी, उसने समाज को सच नहीं बल्कि भ्रम परोसने का काम किया।
प्रथम दृष्टया समाचार की हेडलाइन पढ़ते ही यह धारणा बनती है कि किसी सवर्ण पुजारी ने दलित युवक पर मंदिर में पानी पीने के कारण हमला किया। यही वह बिंदु है जहाँ तथाकथित समाज के ठेकेदार और सोशल मीडिया के उन्मादी समूह बिना तथ्य जाने ही “मनुवाद” और “ब्राह्मणवाद” का शोर मचाने लगते हैं।
लेकिन सच्चाई क्या है?

इस पूरे मामले का सबसे अहम और जानबूझकर छिपाया गया तथ्य यह है कि—
• पुजारी स्वयं दलित समाज से है
• पानी पीने वाला युवक भी दलित समाज से है
• दोनों अलग-अलग दलित उप-समाज से आते हैं
• आरोपी पुजारी कोई ब्राह्मण या सवर्ण नहीं है
अर्थात यह घटना सवर्ण बनाम दलित की नहीं, बल्कि एक ही समुदाय के भीतर व्याप्त ऊँच-नीच और छुआछूत की मानसिकता की है।
सवाल समाज से भी है-यह कटु सत्य है कि आज जिस सामाजिक भेदभाव का आरोप केवल सवर्ण समाज पर मढ़ा जाता है, वही भेदभाव दलित समाज के भीतर भी गहराई से मौजूद है। उप-जातियों के आधार पर आपसी छुआछूत, विवाह, खान-पान और सामाजिक दूरी—ये सब आज भी सच्चाई हैं।

समस्या धर्म की नहीं, मानसिकता की है-यह मान लेना कि धर्म परिवर्तन से ऊँच-नीच समाप्त हो जाएगी, एक आत्म-भ्रम है।चाहे समाज हिंदू हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो या बौद्ध—जहाँ भी मनुष्य है, वहाँ श्रेष्ठता और हीनता की भावना किसी न किसी रूप में मौजूद है। इसका समाधान धर्म बदलने में नहीं, बल्कि विचार बदलने में है।
मीडिया से सीधा सवाल-क्या मीडिया का काम केवल “ब्रेकिंग न्यूज़” बनाना है, या सच दिखाना?
अगर हेडलाइन यह होती—“दलित पुजारी द्वारा दलित युवक पर हमला”तो शायद यह खबर न तो ट्रेंड करती, न ही किसी एजेंडे को खाद देती।लेकिन ऐसा करने से टीआरपी नहीं मिलती, नैरेटिव नहीं बनता और समाज में जहर घोलने का अवसर हाथ से निकल जाता है—इसीलिए सच्चाई को हेडलाइन से बाहर रखा गया।

अपील
• किसी भी खबर पर प्रतिक्रिया देने से पहले उसकी गहराई तक जाएँ
• भावनाओं में बहकर समाज को बाँटने वालों से सावधान रहें
• और मीडिया से यह अपेक्षा करें कि वह आग नहीं, आईना दिखाए

क्योंकि-समाज को सच चाहिए, सनसनी नहीं। न्याय चाहिए, नैरेटिव नहीं।

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