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मिथिला राज्य का गठन जरूरी

दरभंगा, मैथिली संसार की संभवतः अकेली ऐसी भाषा है जिसके आदि काल के प्रामाणिक एवं ठोस गद्य साहित्य उपलब्ध है। इसे संवैधानिक दर्जा हासिल हुए 23 साल बीतने के बावजूद यह अब तक ना तो प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बन पाई है और न ही इसे राजकाज में ही यथोचित स्थान मिल पाया है। यह बात रघुवर मिश्र ने मंगलवार को पुनौराधाम में आयोजित 21वें अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में 'मिथिला, मैथिली, मैथिलक उत्कर्ष' विषयक विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कही।इससे पहले सम्मेलन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेंद्र नारायण राम ने मैथिली के संवैधानिक अधिकार की प्राप्ति के लिए सांगठनिक प्रयास को तेज किए जाने को जरूरी बताया। प्रवीण कुमार झा ने कहा कि आपसी मतभेद में अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए नए सिपाही तैयार नहीं होना हित्य, संस्कृति आ सामाजिक समृद्धिक उत्सव
पुनौराधानम में मंगलवार को विचारगोष्ठी को संबोधित कर रहे वक्ता।चिंताजनक है। मणिकांत झा ने मैथिली अकादमी बंद होने की यथास्थिति पर चिंता जाहिर की। डॉ. ममता ठाकुर ने कहा कि मैथिली के संरक्षण व संवर्धन के लिए सबसे पहले इसे राजनैतिक कुचक्र के चंगुल से निकालना होगा। केदार नाथ कुमर ने कहा कि हमें सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वोट की राजनीति में सक्रियता बढ़ानी होगी। नीलम झा ने नेपाल एवं भारत की मैथिली की यथास्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण किया। इससे पहले वक्ताओं का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलन के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला, मैथिली एवं मैथिल के उत्कर्ष को बनाए रखने व इसके सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया। मणिकांत झा के संचालन में आयोजित विचारगोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. गणेश कांत झा ने किया।

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