भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर संगोष्ठी का सार्थक आयोजन संपन्न : वक्ताओं ने इसे विश्व में श्रेष्ठ बताया
• भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर संगोष्ठी का सार्थक आयोजन संपन्न : वक्ताओं ने इसे विश्व में श्रेष्ठ बताया
• भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन, समृद्ध और निरंतर विकसित होने वाली परंपराओं में से एक है और आज भी प्रासंगिक है : गोविंद पाल
• सदियों से गुरुकुल, परिवार और समाज में बुजुर्गों की अनुभवी पीढ़ी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को निरंतर समृद्ध किया है। भारत ऋषि और कृषि परंपरा वाला देश है : डॉ महेशचंद्र शर्मा
• भारतीय ज्ञान परंपरा मनुष्य को श्रेष्ठ विचार, सदाचरण, धर्म और लोकमंगल के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है : घनश्याम देवांगन
भिलाई। भिलाई वरिष्ठ नागरिक महासंघ के तत्वावधान में सियान सदन वैशाली नगर में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर बुजुर्गो संग संगोष्ठी का सार्थक आयोजन संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध साहित्यकार गोविंद पाल थे। शिक्षाविद् आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा, साहित्यकार नेहा वार्ष्णेय, राजकिशोर गुमास्ता विशेष रूप से उपस्थित थे। अध्यक्षता महासंघ के अध्यक्ष घनश्याम कुमार देवांगन ने की। वक्ताओं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा समाज एवं देश को दिशा देने वाली अमूल्य धरोहर है, जिसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है।
मुख्य वक्ता गोविंद पाल ने संगोष्ठी में आधार वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन, समृद्ध और निरंतर विकसित होने वाली परंपराओं में से एक है और आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टांतों के जरिए इसकी श्रेष्ठता प्रतिपादित की। उन्होंने तक्षशिला जैसी संस्थानों की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को उत्कृष्ट बनता। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में व्यक्त ज्ञान एवं चिंतन मानव जीवन के जीवन, व्यवहार, संस्कृति, अध्यात्म, विज्ञान, आयुर्वेद, योग और प्रकृति—सबके साथ गहराई से जुड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को मुगलों, अंग्रेजों एवं आक्रांताओं ने हर तरह से नष्ट करने की कोशिशें की। परंतु इसकी श्रेष्ठता आज भी बरकरार है। उन्होंने आधुनिक शिक्षा प्रणाली को गुरूकुल शिक्षा पद्धति में समाहित करने की वकालत की। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज भी पाश्चात्य संस्कृति के जरिए भारतीय ज्ञान परंपरा को नष्ट करने की साज़िशें की जा रही है।
डॉ. महेशचंद्र ने कहा कि सदियों से गुरुकुल, परिवार और समाज में बुजुर्गों की अनुभवी पीढ़ी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को निरंतर समृद्ध किया है। भारत ऋषि और कृषि परंपरा वाला देश है। यही इसकी श्रेष्ठता है। भारतीय ज्ञान परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी व्यापकता और सहिष्णुता है। उन्होंने व्याख्या करते हुए कहा कि वेदों, उपनिषदों, लोककथाओं, कहावतों, भजनों और रीति-रिवाजों को बुजुर्गों ने स्मृति और अनुभव के सहारे अगली पीढ़ी तक पहुँचाया।
अध्यक्ष घनश्याम देवांगन ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा मनुष्य को श्रेष्ठ विचार, सदाचरण, धर्म और लोकमंगल के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। हमें इस पर गर्व है। भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल संदेश सम्यक जीवन-बोध है, जो जीवन आदर्श, ज्ञान एवं नैतिक मूल्यों को व्यावहारिक जीवन में उतारने की प्रेरणा देती है। भारतीय ज्ञान परंपरा केवल अतीत की विरासत नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य का सशक्त मार्गदर्शक है। यह परंपरा हमें जीवन जीने की कला, कर्तव्य और करुणा, ज्ञान और विवेक, तथा व्यक्ति और समाज के संतुलन एवं उत्कृष्टता का बोध कराती है।
संगोष्ठी में राजकिशोर गुमास्ता, नेहा वार्ष्णेय, रामायण मिश्रा आदि ने संबोधित करते हुए भारतीय संस्कृति, दर्शन, धर्म , नैतिक मूल्यों और जीवन-पद्धति पर अपने विचार साझा किए। सभी ने इसे श्रेष्ठ बताया। वक्ताओं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा समाज को दिशा देने वाली अमूल्य धरोहर है, जिसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है।
इस अवसर पर साहित्यकार नेहा वार्ष्णेय की अंग्रेजी पुस्तक हीलिंग ए जर्नी फ्राम पेन टू पावर का विमोचन किया गया। साथ ही दिसंबर माह में जन्म तिथि वाले वरिष्ठ नागरिकों रतनलाल गोयल, डॉ. एच. आर. वार्ष्णेय, सुरेशचंद्र जैन एवं सुरेश रत्नानी का सामूहिक जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया। उपस्थित विद्वानों ने संस्कृत भाषा में जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए उनके दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना की।
इस अवसर पर शैलजा वार्ष्णेय ने भिलाई वरिष्ठ नागरिक महासंघ को मंच के लिए डायस भेंट किया।
कार्यक्रम में गायक जोसफ, दीपक ताहिलरामानी, संतोष जाटव, संतोष शुक्ला एवं दिनेश गुप्ता ने अपनी सुमधुर भजन एवं पुराने गीतों से समां बांधा।
संगोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद पाल एवं नेहा वार्ष्णेय ने अपनी स्वलिखित पुस्तकें तथा वरिष्ठ समाजसेवी राजकुमार गुमास्ता ने गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित 25 पुस्तकों एवं ग्रंथों का एक सेट वैशाली नगर सियान सदन खंके पुस्तकालय को भेंट किया। इस प्रेरणादायी अनूठी पहल की सभी ने प्रशंसा की।
महासंघ के द्वारा पुस्तकें दान करने वाले साहित्यकारों का सम्मान किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक महासंघ के पदाधिकारी दिनेश कुमार गुप्ता, शिवप्रसाद साहू, राधेश्याम प्रसाद, गंगाचरण पुरोहित, धानेश्वर कुमार निर्मल, रामायण मिश्रा, राजपाल सिंह राघव, राम बोरकर, हुकुमचंद देवांगन, जगदीश राम साहू, आर.पी. वार्ष्णेय, पं. वासुदेव भट्टाचार्य, देवेन्द्र चौहान, सुरेश जोशी, सुरेन्द्र बाबू गुप्ता, पवन जैन, धनीराम साहू, अर्जुन सिंह साहू, हाजी रियाज खान, सतीश मिश्र, शंकर शेंडे, कृष्ण कुमार साहू, घनश्याम यादव, शैलजा वार्ष्णेय, मंदा वासनकर , प्रीति ताहिलरामानी, मालती देवी गुप्ता, सुषमा आदि सहित वरिष्ठ नागरिक गण उपस्थित थे। अंत में कोषाध्यक्ष दिनेश कुमार गुप्ता ने आभार प्रदर्शन किया।