
कोरोना काल के बाद बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत और अभिभावकों की चिंता
कोरोना महामारी का दौर भले ही अब बीत चुका है और जनजीवन पूरी तरह सामान्य हो गया है, लेकिन उस समय बच्चों की पढ़ाई के लिए मजबूरी में थमाया गया मोबाइल अब उनके और अभिभावकों के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गया है। स्थिति यह है कि स्कूल खुलने और कक्षाएं ऑफलाइन शुरू होने के काफी समय बाद भी बच्चे डिजिटल दुनिया के मोहपाश से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। कोरोना काल में शुरू हुई ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को मोबाइल का आदी बना दिया था, मगर अब यह आदत पढ़ाई से हटकर गेमिंग और सोशल मीडिया तक सिमित हो गई है, जिससे हर दूसरा अभिभावक परेशान नजर आता है।
चिकित्सकों और नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार कई घंटों तक मोबाइल की स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने के कारण बच्चों की आँखों पर बहुत गहरा और बुरा असर पड़ रहा है। अस्पतालों की ओपीडी में ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिनकी आँखों में सूखापन, जलन और कम उम्र में ही नजर कमजोर होने की शिकायतें सामने आ रही हैं। मोबाइल की यह लत केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बच्चों को बीमार बना रही है, क्योंकि स्क्रीन से चिपके रहने के कारण उनके स्वभाव में भी भारी बदलाव देखा जा रहा है।
अभिभावकों का कहना है कि जब भी वे बच्चों से मोबाइल लेने की कोशिश करते हैं या उन्हें टोकते हैं, तो बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और कई बार तो खाना-पीना तक छोड़ देते हैं। जो बच्चे पहले शाम होते ही खेल के मैदानों की तरफ भागते थे और दोस्तों के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेलते थे, अब वे घर के कोने में बैठकर मोबाइल पर अंगुलियाँ चलाने में ही अपनी दुनिया मान बैठे हैं। इस वजह से उनका शारीरिक विकास तो रुक ही रहा है, साथ ही उनमें सामाजिकता और मिलनसार व्यवहार की भी कमी होती जा रही है।
इस गंभीर होती समस्या पर मनोवैज्ञानिकों और शिक्षकों का मानना है कि अब समय आ गया है जब माता-पिता को सख्ती और समझदारी दोनों से काम लेना होगा। बच्चों को डिजिटल दुनिया से पूरी तरह अलग करना तो संभव नहीं है, लेकिन उनके स्क्रीन टाइम को सीमित करना और उन्हें बाहरी खेलों या अन्य रचनात्मक गतिविधियों की तरफ मोड़ना बेहद जरूरी हो गया है, ताकि उनका भविष्य एक सीमित स्क्रीन में कैद होकर न रह जाए।