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भारत रत्न चौधरी चरण सिह जी की 123 वी जयन्ती पर शत शत नमन।

चौधरी चरण सिंह : गांव, किसान और सिद्धांतों की राजनीति के पुरोधा:---

भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह का नाम एक ऐसे राजनेता के रूप में स्मरण किया जाता है, जिन्होंने सत्ता से अधिक सिद्धांतों, गांव और किसान को महत्व दिया। वे उन विरले नेताओं में थे जिन्होंने राजनीति को केवल शासन का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और ग्रामीण उत्थान का साधन माना।
चौधरी चरण सिंह ने गांधीवादी विचारधारा को आत्मसात करते हुए गांव की आत्मा को सुरक्षित रखने का आग्रह किया। उनका विश्वास था कि यदि गांव सशक्त होंगे तो राष्ट्र स्वतः सशक्त होगा। उन्होंने गांव की संस्कृति, कृषि व्यवस्था और कुटीर उद्योगों को भारत की आर्थिक रीढ़ बताया। उनका स्पष्ट मत था कि अंधाधुंध शहरीकरण और केवल बड़े उद्योगों पर आधारित विकास मॉडल भारत की सामाजिक संरचना को कमजोर करेगा।
वे तकनीकी विकास के विरोधी नहीं थे, बल्कि संतुलित विकास के पक्षधर थे। उनका कहना था कि तकनीक का लाभ तभी सार्थक होगा जब वह गांव और किसान तक पहुंचे। यदि आज़ादी के बाद गांवों, कृषि और कुटीर उद्योगों की सुनियोजित रक्षा और उन्नयन किया गया होता, तो आज देश को भयावह बेरोजगारी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। करोड़ों युवाओं को रोजगार देने की क्षमता आज भी भारतीय गांवों में निहित है, क्योंकि सच यह है कि भारत गांवों में बसता है।
चौधरी चरण सिंह ने यह सच्चाई स्वतंत्रता के समय ही समझ ली थी कि भारत का भविष्य खेत, खलिहान और ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था से जुड़ा है। उन्होंने किसान को केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता के रूप में देखा। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत, ग्रामीण विकास और सतत विकास की बात करते हैं, तब उनके विचार पहले से कहीं अधिक समसामयिक और मार्गदर्शक प्रतीत होते हैं।
उनकी 123वीं जयंती पर हम ऐसे महान विचारक और कर्मयोगी नेता को नमन करते हैं, जिनकी राजनीति सत्ता नहीं, सेवा पर आधारित थी। चौधरी चरण सिंह का जीवन और चिंतन आज भी हमें यह सिखाता है कि गांव, किसान और नैतिक मूल्यों की उपेक्षा कर कोई भी राष्ट्र सशक्त नहीं बन सकता।
चौधरी चरण सिंह अमर रहें।
गांव, किसान और भारत माता की जय।
ओ पी रतूड़ी मेरठ

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