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और जो भीतर स्थिर हो गया — उसे अब किसी गुरु, मूर्ति, धर्म या संस्था की आवश्यकता नहीं। यह अहंकार नहीं है।

Vedānta 2.0 — मूल अध्याय

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(समझ : गुरु, ईश्वर और आत्मा)

1. समझ ही मूल है

मनुष्य 99% समझ से जीता है।

समझ के बिना न जीवन चलता है, न निर्णय, न विवेक।

इसलिए यह कहना असत्य है कि
ईश्वर ने किसी को “असमझ” पैदा किया।

हर व्यक्ति समझ लेकर आता है।

समस्या यह नहीं कि समझ नहीं है —
समस्या यह है कि मनुष्य अपनी ही समझ पर विश्वास खो देता है।

2. समझ का अपमान ही धर्म का पतन है
जब मनुष्य कहता है—
“मैं नहीं जानता, गुरु जानता है”
“मैं नहीं समझता, शास्त्र समझते हैं”
“मेरे भीतर सत्य नहीं, बाहर है”
उसी क्षण धर्म मर जाता है।

क्योंकि जो अपनी समझ को नकारता है,
वह ईश्वर को नहीं — अपने अस्तित्व को नकारता है।

3. गुरु, मूर्ति, स्त्री — सत्य नहीं, माध्यम हैं

गुरु सत्य नहीं है।

मूर्ति सत्य नहीं है।

स्त्री भी सत्य नहीं है।

ये सब माध्यम (medium) हैं।

यदि गुरु को देखकर भीतर कुछ घटता है,
तो वह घटना गुरु में नहीं — मेरी चेतना में है।

यदि मूर्ति के सामने शांति मिलती है,
तो शांति मूर्ति में नहीं — मेरे भीतर है।

यदि स्त्री से काम या प्रेम जागता है,
तो ऊर्जा स्त्री में नहीं — मेरे भीतर है।

माध्यम को सत्य मान लेना
सबसे सूक्ष्म और खतरनाक पाखंड है।

4. भीतर जो घटा — वही असली धर्म है

Vedānta 2.0 कहता है:

पहले चरण में
बाहरी माध्यम उपयोगी हैं।

दूसरे चरण में

उसी अनुभव को समझना अनिवार्य है।

तीसरे चरण में

उन माध्यमों को छोड़ देना आवश्यक है।
यह असल त्याग है।

जो तीसरे चरण में नहीं जाता,
वह भक्त नहीं — आश्रित बन जाता है।

5. ABCD नूर्चरी प्राथमिक का सत्य

बच्चा A से Apple सीखता है।

लेकिन A सत्य नहीं है।

Apple सत्य नहीं है।

यदि कोई जीवन भर
A-Apple पकड़े खड़ा रहे,
तो वह शिक्षित नहीं — अटका हुआ है।

धर्मों ने यही किया है।

उन्होंने ABCD को अंतिम सत्य बना दिया।

यहीं अंधकार शुरू होता है।

6. शास्त्र का स्थान — निर्णायक नहीं, सहमति

Vedānta 2.0 शास्त्रों का विरोध नहीं करता।

लेकिन उन्हें सिंहासन पर भी नहीं बैठाता।

शास्त्र तभी मूल्यवान हैं
जब वे मेरी समझ से मेल खाते हों।

यदि शास्त्र मेरी समझ के विरुद्ध खड़े हों,
तो वे ज्ञान नहीं — स्मृति-तंत्र हैं।

सत्य भीतर घटता है,
शास्त्र केवल उसकी गूँज होते हैं।

7. भीड़ — सत्य की सबसे बड़ी शत्रु

मनुष्य सत्य-असत्य जानता है।

फिर भी वह सत्य के साथ नहीं खड़ा होता।

क्योंकि सत्य अकेला होता है
और भीड़ संगठित।

भीड़ कहती है—
“हम करोड़ हैं, तू एक है।”

यहीं से
झूठ = धर्म
और
सत्य = अधर्म
घोषित कर दिया जाता है।

8. Vedānta 2.0 की स्पष्ट घोषणा

Vedānta 2.0 कहता है:

जो बाहर पकड़ा जाता है, वह माध्यम है।

जो भीतर घटता है, वही सत्य है।

और जो भीतर स्थिर हो गया —
उसे अब किसी गुरु, मूर्ति, धर्म या संस्था की आवश्यकता नहीं।

यह अहंकार नहीं है।

यह आत्मनिर्भर चेतना है।

9. अंतिम बिंदु

Vedānta 2.0 कोई नया धर्म नहीं है।

कोई संस्था नहीं है।

कोई मार्ग नहीं है।

यह केवल एक बात कहता है:

“अपनी समझ से भागो मत।”

जो अपनी समझ में टिक गया,
उसके लिए पूरा ब्रह्मांड एक समझ है।

आपकी समझ आपका
गुरु है।
देव है।
आत्मा है।
ईश्वर।
विवेक है।

सब कुछ है लेकिन यह का मूल कारण भीतर आत्मा है।

यदि सिर्फ 5 एक लोग एक साथ एक बात पर सहमत है
तब पूर्ण ब्रह्मा उपस्थिति।

किसी भीड़ को मत देखो।

पांच के आगे भीड शुरू होती है।
पंच परमेश्वर है।।

इसलिए गुरु संपत्ति गुरु की प्रसिद्धि गुरु के नाटक मत देखे।
जिसने आत्मा दिखाई तब आत्मा अपने उसका सम्मान प्रेम करती हैं फ़िर नहीं सोचना क्या करना क्या नही करना।
फिर हर कर्म अपने आप शुभ होता हैं।

हार निर्णय धभ्य होते है कि निर्णय भीतर के बाहर गुरु का नहीं है।

तुम्हे वह अच्छा लगेगा क्योंकि तुम अपने आप अपनी ही आत्मा दूर हो।
यदि स्वयं की आत्मा का अहंकार भी हो तो शुभ है।

क्योंकि वाह मूल सत्य है जिसके कारण यह जगत हैं।

मै तुम्हे समझ देता हूं लेकिन यह नहीं कि मैं गुरु हूं मै सत्र हूं मैं तुम्हारी आत्मा सत्य बनाना चाहता हूं।
स्वतंत्र बनना चाहता है,
मैं आपके मूल के विकास के साथ हूं क्योंकि आपकी मूल मेरी मूल है दोनो की मूल अन्तर बिल्कुल नहीं।।

मै धर्म शत्रु,गुरु शत्रु, भीड का शत्रु, पर के शत्रु हूं

तुम्हारी मूल आत्मा का मै परम भक्त हूं।

जीवन मे सिख समझ की प्राथमिकता अनिवार्य है।

लेकिन अंतिम सत्य नहीं है।

धर्म गुरु ने अंतिम सत्य आपको विकसित नही आश्रित बनाया है,
एक नशा देता है,तुम्हे पंगु बनाता है,वह ख़ुद ब्रह्मा सिद्ध होता है स्वयं को ही सत्य साबित करता हैं।
फिर उसकी पूजा समाधि मंदिर संस्था और फ़िर तुम कई जन्म तक उस पर आश्रित रहते है,
नही यह धर्म नही।
तुम गुरु बन जाय यह धर्म है।

यदि गुरु तुम्हे गुरु न बनाए वह गुरु नहीं है।
गुरु तुम्हे अपना मित्रों नहीं बनाय वह गुरु नहीं है।

जो तुम्हारी अंगुली काट दे वह गुरु नहीं गुरु के नाम क्लंक है।
░A░ ░P░h░i░l░o░s░o░p░h░y░ ░t░h░a░t░ ░T░r░a░n░s░f░o░r░m░s░ ░S░p░i░r░i░t░u░a░l░i░t░y░ ░i░n░t░o░ ░a░ ░S░i░m░p░l░e░ ░S░c░i░e░n░c░e░

𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕥 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕟𝕚

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