
अजमेर शरीफ की यात्रा का सम्मान और शिष्टाचार
अजमेर शरीफ की यात्रा का सम्मान और शिष्टाचार
एक समय था जब रेल परिवहन की कमी के कारण अजमेर शरीफ की यात्रा बहुत कठिन थी। लेकिन हज़रत शाह जहाँगीर (I) मौलाना मुख़लिसुर रहमान (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) ने इस यात्रा को इतना महत्वपूर्ण माना कि आपने चटगाँव, बांग्लादेश से अजमेर शरीफ, भारत की यात्रा की, जिसमें 6 महीने का समय लगा।
आपके उत्तराधिकारी, हज़रत शाह जहाँगीर (II) फ़ख़रुल आरेफ़ीन मौलाना अब्दुल हई (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) ने सलाह दी कि एक व्यक्ति को औलिया (संतों) के दरबार शरीफ में एक सामान्य व्यक्ति की तरह जाना चाहिए और कभी भी खुद को किसी और से बेहतर नहीं समझना चाहिए। आपने फरमाया कि सूरज के सामने दीपक बनने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप औलिया (संतों) के मक़ाम पर खुद को किसी ख़ास व्यक्ति के रूप में पेश करने के ख़िलाफ़ थे। आप इन मुबारक जगाहों पर किसी भी आध्यात्मिक मार्गदर्शक द्वारा नए मुरीदों (शिष्यों) से बैय्यत स्वीकार करने के भी खिलाफ थे।
हज़रत मौलाना अब्दुल हई (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) ने अजमेर शरीफ में कभी भी नए मुरीदों (शिष्यों) से बैय्यत स्वीकार नहीं की और न ही खुद को वहां किसी महत्वपूर्ण या खास व्यक्ति के रूप में पेश होने दिया। आप हमेशा आम लोगों की तरह दरबार अजमेर शरीफ में जमीन पर बैठते थे। दरबार अजमेर शरीफ के प्रति आपको इतना सम्मान था कि आपने वहां कभी अपनी आवाज़ ऊंची नहीं की, और केवल धीमी आवाज़ में बात की।
दरबार अजमेर शरीफ के प्रति इस महान सम्मान को अल्लाह सुब्हानहु व ता’ला ने क़ुबूल किया और ऐसा इनाम दिया कि बाद में सिलसिला ए आलिया को हज़रत ख्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) के माध्यम से इतनी सफलता और प्रगति मिली कि अब इस सिलसिले में अजमेर शरीफ और आसपास के क्षेत्रों से हजारों मुरीद हैं।
यह सम्मान हज़रत ख़्वाजा मौलाना मोहम्मद ख़ुशहाल(क़द्दस अल्लाहु सिर्राहु) के जीवनकाल में भी जारी रहा, जो दरबार अजमेर शरीफ के ख़ादिमों के प्रति बहुत सम्मान रखते थे और उन्हें हमेशा बड़े सम्मान के साथ स्वीकार करते थे, और यही तरीक़ा अब उनके उत्तराधिकारी हज़रत सूफी जव्वाद अहमद ख़ुशहाली के साथ जारी है।
दुआ:
या अल्लाह, हम सब को अपनी बारगाह-ए- एहदियत में कर क़बूल, हज़रत मुख़लिसुर्रहमान जहांगीरी ए हुदा के वास्ते
दिल को हमारे या ख़ुदा दे जिंदगी और ताज़गी,
शाह मुहम्मद अब्दुल हई मक़बूल उद दुवा के वास्ते
सिलसिला - ए - आलिया ख़ुशहालिया !!
(संदर्भ: सीरत ए फख़रुल आरेफिन, पृष्ठ 80-81 / हज़रत अशरफ जहांगीर सिमनानी (आर ए) और सल्तनत-ए-बंगला में उनके ओड़ एनकाउंटर्स : मिर्जा़खिल दरबार शरीफ - एक केस स्टडी, पृष्ठ 18-28)
Syed Afzal Ali Shah maududi.
Lucknow bureau