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पर्दा एवं हिजाब : सभ्यता, सुरक्षा और सम्मान का शाश्वत दर्शन!!

लेखक : डॉ. मोहम्मद यूनुस कुरैशी

“पर्दा” शब्द आकार में भले ही छोटा हो, लेकिन इसके भीतर मानव सभ्यता का पूरा दर्शन समाया हुआ है। पर्दा केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं, न ही यह किसी एक धर्म, समाज या स्त्री से जुड़ा सीमित विचार है। पर्दा असल में सम्मान, मर्यादा, सुरक्षा, निजता, संयम और संतुलन का नाम है। यह वह अदृश्य सीमा है, जो जीवन को गरिमा देती है और समाज को दिशा।

कहा गया है—
“जो चीज़ जितनी कीमती होती है, उसे उतना ही संभालकर रखा जाता है।”
हीरा खुले में नहीं रखा जाता, सोना तिजोरी में बंद रहता है, और रहस्य हमेशा पर्दे के पीछे ही सुरक्षित रहते हैं। यही सिद्धांत मनुष्य, समाज और विशेष रूप से नारी सम्मान पर भी लागू होता है।

आज के दौर में पर्दा और हिजाब को लेकर भ्रम, विवाद और राजनीति का वातावरण बनाया जा रहा है। इसे पिछड़ेपन, दमन और असमानता से जोड़ने की कोशिश हो रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि पर्दा मानव सभ्यता का मूल संस्कार रहा है। यह संस्कार किसी पर थोपा नहीं गया, बल्कि अनुभव, विवेक और सामाजिक संतुलन से जन्मा है।

भारतीय सभ्यता और पर्दे की चेतना

भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक जीवंत सभ्यता है, जहां जीवन के हर पहलू में मर्यादा और संतुलन को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यहां स्वतंत्रता कभी उच्छृंखलता नहीं बनी और मर्यादा कभी कमजोरी नहीं मानी गई। ग्रामीण भारत में आज भी महिलाएं सिर पर ओढ़नी या दुपट्टा रखती हैं। यह कोई दबाव नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पहचान है।

जब कोई बुज़ुर्ग सामने आता है और महिला स्वयं को ढक लेती है, तो यह भय नहीं, बल्कि आदर का भाव होता है। यह उस सामाजिक समझ का प्रतीक है जिसमें यह माना गया कि हर रिश्ता बराबरी का नहीं होता, हर स्थान सार्वजनिक नहीं होता और हर समय प्रदर्शन उचित नहीं होता।
“जहाँ मर्यादा होती है, वहीं संस्कार जीवित रहते हैं।”

पर्दा केवल महिलाओं तक सीमित नहीं रहा। पुरुषों के सिर पर पगड़ी, साफा, टोपी—ये सभी सम्मान और पहचान के प्रतीक हैं। सिख समाज की पगड़ी, किसान का साफा, मजदूर का गमछा—ये सभी सामाजिक पर्दे हैं, जो व्यक्ति की गरिमा को दर्शाते हैं। छोटे बच्चों को ढककर रखना, बीमार व्यक्ति को अलग रखना—यह सब भी पर्दे का ही रूप है।

धर्म और पवित्रता का पर्दा

यदि पर्दा असभ्यता या पिछड़ेपन का प्रतीक होता, तो दुनिया के किसी भी धर्म में उसका स्थान नहीं होता। लेकिन सच्चाई यह है कि हर धर्म में पर्दा किसी न किसी रूप में मौजूद है। मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों को वस्त्रों से ढका जाता है, गर्भगृह में हर किसी का प्रवेश वर्जित होता है। मस्जिदों में सतर और हिजाब का सिद्धांत आत्मसंयम सिखाता है। गुरुद्वारों में सिर ढकना विनम्रता और समानता का प्रतीक है। चर्चों में भी मर्यादित वस्त्रों की अपेक्षा की जाती है।

धर्म हमें यह सिखाता है कि पवित्रता प्रदर्शन से नहीं, मर्यादा से बचती है।
“जो पवित्र है, वह शोर नहीं करता।”

हिजाब : बंधन नहीं, अधिकार

हिजाब को आज जानबूझकर विवाद का विषय बनाया जा रहा है, जबकि हिजाब महिला का मौलिक अधिकार है। यह उसकी पसंद है, उसका निर्णय है और उसकी पहचान है। जैसे किसी महिला को आधुनिक कपड़े पहनने का अधिकार है, वैसे ही उसे हिजाब पहनने का भी पूरा अधिकार है।

वास्तविक आज़ादी वह नहीं होती जिसमें केवल एक ही प्रकार का जीवन थोपा जाए। वास्तविक आज़ादी वह होती है जिसमें हर व्यक्ति को अपनी आस्था, संस्कृति और पहचान के साथ जीने का अधिकार मिले।
“चॉइस वही है, जिसमें विकल्प हों।”

स्वास्थ्य, सुरक्षा और आधुनिक जीवन में पर्दा

मनुष्य अपने शरीर को कपड़ों से ढकता है—धूप, सर्दी, गर्मी और बीमारियों से बचने के लिए। दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनना अनिवार्य है, क्योंकि सिर सबसे संवेदनशील अंग है। आंखों पर चश्मा, चेहरे पर मास्क, बारिश में रेनकोट—यह सब आधुनिक पर्दे हैं।

क्या कोई कहता है कि हेलमेट आज़ादी छीन रहा है?
नहीं—क्योंकि सुरक्षा, आज़ादी से अधिक मूल्यवान है।

हवाई जहाज़, ट्रेन, कार—सब बंद ढांचे में चलते हैं ताकि यात्री सुरक्षित रहें। खुलेपन की ज़िद यहां कोई नहीं करता, क्योंकि जीवन की कीमत सब समझते हैं।

घर, परिवार और निजी जीवन का पर्दा

घर की चारदीवारी, खिड़कियों के पर्दे, दरवाज़ों के ताले—यह सब सामाजिक और नैतिक पर्दे हैं। पति-पत्नी का संबंध, परिवार की बातचीत, बच्चों की परवरिश—ये सब निजी विषय हैं। अगर सब कुछ सार्वजनिक हो जाए, तो रिश्ते समाप्त हो जाएं।

“जो रिश्ता जितना गहरा होता है, वह उतना ही खामोश होता है।”

सत्ता, प्रशासन और प्रोटोकॉल का पर्दा

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री—सुरक्षा घेरे में रहते हैं। उनके लिए प्रोटोकॉल होता है, सीमाएं तय होती हैं। यह अहंकार नहीं, जिम्मेदारी है।
यदि देश के सबसे बड़े पदों को पर्दे की आवश्यकता है, तो नारी गरिमा को क्यों नहीं?

व्यवसाय, विज्ञान और तकनीक में पर्दा

पैकिंग किसी भी वस्तु की कीमत और आयु दोनों बढ़ाती है। दवाइयों की पैकिंग जीवन बचाती है। मशीनों पर कवर, फैक्ट्रियों में सुरक्षा जाल, परमाणु परीक्षणों का भूमिगत होना—यह सब पर्दे के सिद्धांत पर आधारित है।

प्रकृति में भी पेड़-पौधे प्रदूषण के विरुद्ध प्राकृतिक पर्दा हैं। देश की सीमाएं, बॉर्डर फेंसिंग—यह राष्ट्रीय पर्दा है।

पश्चिम और आधुनिकता का भ्रम

पश्चिम में भी निजी और सार्वजनिक जीवन की स्पष्ट सीमाएं हैं। गोपनीयता कानून, ड्रेस कोड, प्राइवेट स्पेस—ये सभी पर्दे ही हैं। आधुनिकता का अर्थ नग्नता नहीं, बल्कि संतुलन है।

नारी सम्मान और इतिहास

रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, फातिमा शेख, सावित्रीबाई फुले—इन सभी ने मर्यादा में रहकर इतिहास रचा। पर्दा कभी उनकी शक्ति में बाधा नहीं बना।

निष्कर्ष

पर्दा बंधन नहीं, सुरक्षा है।
पर्दा पिछड़ापन नहीं, समझदारी है।
पर्दा रोक नहीं, संतुलन है।

“पर्दा हटाने से सोच बड़ी नहीं होती,
पर्दा अपनाने से सम्मान घटता नहीं।”

हिजाब शर्म नहीं, शान है।
मर्यादा बोझ नहीं, पहचान है।
पर्दा रहेगा, क्योंकि सभ्यता रहेगी।

धन्यवाद!!

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