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धर्म की सोच से मुझे शैतान कहा जाएगा, पत्थर मारे जाएँगे। और इसी का नाम है — ✦ वेदांत 2.0 ✦ आधुनिक आध्यात्मिक विज्ञान

वेदांत 2.0 : त्रिगुण–त्रि-आयाम का विज्ञान ✦

यह मान्यता कि
पंचतत्व से तीन गुण पैदा हुए,
यही पहला भ्रम है।
वास्तविक अनुभव यह है कि —
तीन गुण / स्वभाव / आयाम पहले हैं
और उन्हीं से पंचतत्व तथा पंचप्रकृति का विस्तार हुआ।
तीन आयाम हैं —
तम → शरीर
रज → मन
सत → आत्मा
इन्हीं को
ब्रह्मा–विष्णु–महेश के रूप में
प्रतीकात्मक रूप से समझाया गया।

✦ तीन को समझे बिना जीवन समझना असंभव है ✦

जब तक
शरीर (तम),
मन (रज),
आत्मा (सत)
— इन तीनों को अलग-अलग नहीं जाना,
तब तक जीवन केवल
जन्म–मृत्यु का खेल बना रहता है।
शरीर जड़ है।
मन रज है —
माया भी, लीला भी।
द्वैत का अर्थ “दो” नहीं है।
द्वैत का अर्थ है —
दो के बीच झूलता हुआ रज मन।
दो छोर हैं —
एक ओर तम (शरीर, जड़),
दूसरी ओर सत (आत्मा, सत्य)।
रज बीच का सेतु है।
आज यह सेतु
तम के ऊपर खड़ा है,
इसलिए मन कहता है —
“मैं शरीर हूँ।”

✦ आत्मा अदृश्य है, पर जीवन वहीं से शुरू होता है ✦

मन के लिए
जो दिखता है वही संसार है।
आत्मा
पुण्य है,
अद्भुत है,
अदृश्य है।
उसका मिलना —
आत्मबोध है।
आत्मबोध के बिना
500 जन्म भी बीत जाएँ,
तो जीवन कभी शुरू नहीं होता।
संसार तब भी माया ही रहता है।

✦ धर्म, साधना, भक्ति — सब साधन हैं ✦

धर्म, कर्मकांड,
तप, त्याग, तपस्या,
भक्ति, ज्ञान, शास्त्र,
मंदिर, प्रार्थना, पूजा —
ये सब
यात्रा के माध्यम हैं।
लेकिन अनुभव यह है कि
अधिकांश साधन
मनुष्य को
और अधिक तम बना रहे हैं।
जितना प्रयास,
उतना कठोर पत्थर।
जितनी साधना,
उतना मजबूत लोहा।
इसी को
अहंकार कहा जाता है।
धन, सत्ता,
ज्ञान, विज्ञान,
पद, प्रतिष्ठा,
संत, गुरु, प्रसिद्धि —
ये सब
तम के ही अलग-अलग रूप हैं।

✦ त्रिदेव का वास्तविक अर्थ ✦

तम = शिव
रज = विष्णु
सत = ब्रह्मा
अवतार केवल
रज (विष्णु) का होता है,
क्योंकि वही गतिमान है।
शिव को स्मरण किया जाता है
क्योंकि रज उसी पर खड़ा है।
विष्णु की पूजा में
अक्सर रज
अपने ही अहंकार की पूजा करता है।
ब्रह्मा से लोग दूरी बनाए रखते हैं,
फिर भी
सत का नाम लेते हैं,
क्योंकि सत ही
सबका प्रथम कारण है।
सत अविनाशी है।
सत प्रमाण नहीं माँगता।
सत का नाम लेते ही
दुनिया काँपती है।

✦ सत की छुअन ✦

सत को छूते ही
पहले रज की मृत्यु होती है,
फिर तम गलता है।
रज
दो के साथ खड़ा नहीं रह सकता।
एक ओर
पत्थर, लोहा, प्रमाण।
दूसरी ओर
शून्य जैसा सत्य —
अत्यंत सरल,
अत्यंत नाजुक,
जैसे है ही नहीं।
क्योंकि सत्य
प्रमाण से नहीं,
बोध से जाना जाता है।

✦ आज का धर्म : माया-धर्म ✦

𝕷𝖎𝖋𝖊 𝖎𝖘 99% 𝖘𝖈𝖎𝖊𝖓𝖈𝖊 — 𝖓𝖔𝖙 𝖋𝖆𝖎𝖙𝖍, 𝖇𝖊𝖑𝖎𝖊𝖋, 𝖉𝖊𝖛𝖔𝖙𝖎𝖔𝖓, 𝖗𝖊𝖑𝖎𝖌𝖎𝖔𝖓, 𝖔𝖗 𝕲𝖔𝖉.

आज पाखंड कहता है —
“मैं ही सत हूँ।”
तम और रज खुश हो जाते हैं।
वे कहते हैं —
अब सत्य की ज़रूरत नहीं,
इसी संत को पूजो।
संत को चेले चाहिए।
चेलों को गुरु चाहिए।
कोई किसी को छोड़ना नहीं चाहता।
यही आज का धर्म है।
यही माया-धर्म है।
इसका सत्व से कोई संबंध नहीं।

✦ अंतिम स्पष्टता ✦

यह जो कहा गया है —
❖ यह डाटा का विज्ञान नहीं है।
❖ यह प्रमाण-आधारित प्रयोगशाला विज्ञान नहीं है।
❖ यह अनुभव और बोध का विज्ञान है।

यदि इसमें भूल है,
तो केवल यह लेखन नहीं —
पूरा अस्तित्व ही गलत होगा।
और यदि इसे कोई बकवास माने,
तो वह अपने नर्क को
स्वर्ग समझकर जिए।
लेकिन जो इसे समझ ले —
उसके भीतर
सत का बीज जन्म ले चुका है।

धर्म की सोच से
मुझे शैतान कहा जाएगा,
पत्थर मारे जाएँगे।
और इसी का नाम है —

✦ वेदांत 2.0 ✦
आधुनिक आध्यात्मिक विज्ञान

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