
देहरादून : बिंदाल–रिस्पना एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट का विरोध तेज, स्थानीय जनता ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को लिखा पत्र
देहरादून | राजधानी देहरादून को ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित बिंदाल–रिस्पना एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट का विरोध अब तेज होने लगा है। इस परियोजना को लेकर देहरादून के कई सामाजिक संगठनों और लगभग 140 पूर्व सैनिकों ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखकर इस योजना को शुरू न करने की मांग की है।
पत्र में कहा गया है कि यह परियोजना देहरादून के लिए गंभीर आपदा का कारण बन सकती है। सोशल डेवलपमेंट कम्युनिटीज़ फाउंडेशन के संस्थापक एवं सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल के अनुसार, देहरादून मेन बाउंड्री थ्रस्ट और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट के बीच स्थित है, जिससे यह क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। ऐसे में नदियों के ऊपर भारी-भरकम एलिवेटेड संरचना भविष्य में बड़े खतरे को जन्म दे सकती है।
अनूप नौटियाल ने बताया कि पहले देहरादून को भूकंप जोन-4 (अब उच्च संवेदनशीलता वाले जोन) में रखा गया था। समय-समय पर हुए शोध यह भी संकेत देते हैं कि अत्यधिक अतिक्रमण और अनियंत्रित विकास के चलते शहर पर दबाव लगातार बढ़ा है। हाल के वर्षों में आई आपदाएं इसी का संकेत मानी जा रही हैं।
पत्र में यह भी आशंका जताई गई है कि यदि बिंदाल–रिस्पना एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट जमीन पर उतरा तो इससे न केवल दोनों नदियों के प्राकृतिक प्रवाह पर असर पड़ेगा, बल्कि बाढ़ के खतरे और पर्यावरणीय असंतुलन की आशंका भी बढ़ जाएगी। इसके साथ ही शहर की जैव विविधता, खासकर छोटे जीव-जंतु और नदी तंत्र से जुड़ा पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होगा।
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि देहरादून जैसे संवेदनशील शहर के लिए एलिवेटेड रोड नहीं, बल्कि ब्लू–ग्रीन कॉरिडोर की आवश्यकता है, जिसमें नदियों का संरक्षण, पैदल पथ, साइकिल ट्रैक और हरित क्षेत्रों का विकास शामिल हो। उनका मानना है कि यही मॉडल शहर की ट्रैफिक समस्या के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी मददगार होगा।
गौरतलब है कि देहरादून को ट्रैफिक जाम से मुक्त करने और मसूरी की ओर यातायात को सुगम बनाने के लिए रिस्पना और बिंदाल नदियों के ऊपर लगभग 26 किलोमीटर लंबे एलिवेटेड कॉरिडोर का प्रस्ताव है। हालांकि संभावित पर्यावरणीय, सामाजिक और आपदा जोखिमों को देखते हुए इस परियोजना का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है।