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ताज-उल-औलिया हज़रत शाह मोहम्मद निज़ामुद्दीन तेगी क़ादरीؒ का तृतीय भव्य उर्स श्रद्धा व गरिमा के साथ संपन्न।

हाजीपुर/ताज-उल-औलिया हज़रत शाह मोहम्मद निज़ामुद्दीन तेगी क़ादरी यूसुफ़ी मीनाई शम्सीؒ का तृतीय भव्य उर्स-ए-मुबारक अत्यंत श्रद्धा, सम्मान एवं आध्यात्मिक वातावरण के बीच संपन्न हुआ। उर्स की अध्यक्षता पीर-ए-तरीक़त व रहबर-ए-शरीअत हज़रत अल्लामा मौलाना मोहम्मद शाहिद निज़ामी तेगी क़ादरी, सज्जादा-नशीन ख़ानक़ाह-ए-निज़ामिया तिघा सराय, मरचा (वैशाली) ने की, जबकि कार्यक्रम की सरपरस्ती सूफ़ी शाह अब्दुल कलाम यूसुफ़ी निज़ामी क़िबला ने की।

उर्स-ए-निज़ामी की परंपराओं के अनुसार चादरपोशी, गुलपोशी एवं क़ुल शरीफ़ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश व राज्य में अमन-शांति, आपसी भाईचारे तथा गंगा-जमुनी तहज़ीब के संरक्षण व विकास के लिए विशेष दुआएँ की गईं।

हज़रत शाह मोहम्मद निज़ामुद्दीन तिघी क़ादरीؒ सरकार, हाजीपुर की याद में आयोजित इस आध्यात्मिक कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। उर्स की अध्यक्षता करते हुए मौलाना मोहम्मद शाहिद निज़ामी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे आदर्श हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद और बुज़ुर्गाने-दीन हैं। उनके बताए मार्ग पर चलकर ही दुनिया और आख़िरत में सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उर्स-ए-निज़ामी का यह दृश्य इस बात का प्रमाण है कि मज़ार-ए-अक़दस पर बिना किसी धर्म या मज़हब के भेदभाव के सभी लोग हाज़िरी देते हैं। यहाँ विभिन्न धर्मों के अनुयायी एक ही दस्तरख़्वान पर बैठकर भोजन करते हैं, जो हमारे देश की सुंदरता और गंगा-जमुनी संस्कृति की मिसाल है।

उर्स के अवसर पर एक भव्य धार्मिक-सांस्कृतिक सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से आए प्रसिद्ध उलेमा, शायर, ख़ुलफ़ा, मुरीदीन एवं गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया और अपने विचारों व कलाम से महफ़िल को गरिमा प्रदान की।

इस मौके पर शहीद-ए-आज़म कमेटी, वैशाली के सचिव मोहम्मद नसीम अहमद ने कहा कि उर्स हम सूफ़ी संतों और बुज़ुर्गों की याद में मनाते हैं, क्योंकि उनके फ़ैज़ से समाज को आध्यात्मिक और नैतिक दिशा मिलती है। उन्होंने कहा कि वैशाली ज़िला सदियों से सूफ़ी संतों की धरती रहा है और उर्स-ए-निज़ामी के माध्यम से हम अमन-शांति का संदेश जन-जन तक पहुँचा रहे हैं।

ज़ायरीनों की सुविधा के लिए उर्स के दौरान विशेष लंगर की व्यवस्था की गई, जिसमें दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं ने सहभागिता की। कुल मिलाकर उर्स-ए-निज़ामी प्रेम, सौहार्द, आपसी भाईचारे और आध्यात्मिक फ़ैज़ का भव्य प्रतीक बनकर उभरा।

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