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गुरु अहंकार को सहारा देता है, और शिष्य उसे धर्म समझ लेता है। **“𝙑𝙚𝙙𝙖𝙣𝙩𝙖 2.0 — 𝙏𝙝𝙚 𝙁𝙞𝙧𝙨𝙩 𝙗𝙤𝙤𝙠 𝙞𝙣 𝙩𝙝𝙚 𝙒𝙤𝙧𝙡𝙙

जब गुरु से ज्ञान मिला,
जब समझ पैदा हुई,
जब भ्रम टूटा,
जब अंधभक्ति गिरी,
जब विज्ञान मिला
और अंधविश्वास से मुक्ति हुई—

तब गुरु को धन्यवाद देना धर्म है।

क्योंकि
प्रकाश मिला,
मार्ग मिला,
अंधकार हटा।

तब समझ में आता है—
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महेश है।

लेकिन यहाँ कोई देव-पूजा नहीं है।
यह बोध की घटना है।

तब स्पष्ट होता है—
कौन ब्रह्मा है,
कौन विष्णु है,
कौन महेश है।

और यह भी दिखता है कि
सृष्टि के तीन आयाम
कैसे
रचना, पालन और परिवर्तन के रूप में
एक ही चेतना का रचनात्मक खेल हैं।

जब यह समझ घटती है—
तो वह समाधि बन जाती है।

और तब भीतर से
कोई सीखी हुई प्रार्थना नहीं,
कोई मांगी हुई याचना नहीं—
बल्कि
धन्यवाद स्वयं उठता है।

तीनों की ओर,
सभी देवों की ओर,
अस्तित्व की ओर।

यही धर्म है—
जो बोध से जन्म लेता है,
अनुभव से पुष्ट होता है,
और भीतर स्वयं प्रकट होता है।

#पाखंडी

लेकिन इसके ठीक उलट
एक नकली गुरु भी होता है—

जो पहले
डर गिनवाता है,
भय बैठाता है,
पाप–पुण्य,
अच्छाई–बुराई का हिसाब सिखाता है।

तब मन कहता है—
“यह तो मुझे पहले से पता है।”

और मन खुश हो जाता है।

क्योंकि
यह गुरु नहीं,
मन का प्रतिबिंब है।

यह गुरु पाखंडी लगता नहीं,
क्योंकि
उसकी और शिष्य की बातें एक जैसी होती हैं।

तब शिष्य कहता है—
“मैं जानता हूँ।
मैं श्रेष्ठ हूँ।”

क्योंकि
गुरु से उसके विचार मिलते हैं।

यही प्रमाण बन जाता है।

जितना गुरु की ओर झुकता है,
उतना ही
दुनिया के सामने
सिर ऊँचा उठाता है।

यहाँ
विनय नहीं है,
यहाँ प्रतिस्पर्धा है।

और यही है
धर्म की असली गणित—

गुरु
अहंकार को सहारा देता है,
और शिष्य
उसे धर्म समझ लेता है।

**“𝙑𝙚𝙙𝙖𝙣𝙩𝙖 2.0 — 𝙏𝙝𝙚 𝙁𝙞𝙧𝙨𝙩 𝙗𝙤𝙤𝙠 𝙞𝙣 𝙩𝙝𝙚 𝙒𝙤𝙧𝙡𝙙 𝙩𝙤 𝙏𝙧𝙪𝙡𝙮 𝙐𝙣𝙙𝙚𝙧𝙨𝙩𝙖𝙣𝙙 𝙩𝙝𝙚 vedanta 𝙋𝙧𝙞𝙣𝙘𝙞𝙥𝙡𝙚.”**

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