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शास्त्र कोई विश्वास नहीं सिखाते, वे अस्तित्व के नियम बताते हैं। और विज्ञान उन्हीं नियमों की आधुनिक भाषा है।

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✦ सत्ता और सत्य ✦

साधारण से साधारण
और छोटे से छोटा व्यक्ति भी
सत्ता चाहता है।

धन की सत्ता,
धर्म की सत्ता,
पद की सत्ता,
राजनीति की सत्ता।

जीवन को जीना नहीं है—
जीवन पर राज करना है।

इसलिए
कोई सत्य के साथ खड़ा नहीं होता।
अधिकांश लोग सत्ता के साथ खड़े होना चाहते हैं।

सत्ता कैसे मिले—
यही संसार की प्रमुख साधना बन गई है।

---

जो डर से झुक गया—
वह भिखारी हो गया।
जो सुविधा के लिए झुका—
वह राजनीतिक दल बन गया।

धन, साधन, शासन
आज सबसे बड़ी सत्ता नहीं हैं।

सबसे बड़ी सत्ता
अब धर्म बन चुका है।

धर्म अब
भक्ति नहीं रहा,
आस्था नहीं रहा—
धर्म अब शासन है।

#picturechallenge

लगभग पूरा संसार
क्षणिक सत्ता का खेल खेल रहा है।

लेकिन
यदि हजार में एक भी व्यक्ति
सत्य के साथ खड़ा हो जाए—

तो
हजार हार सकते हैं,
लाख हार सकते हैं,
करोड़ हार सकते हैं।

क्योंकि
असली सत्ता सत्य है।

जब कोई सत्य में खड़ा होता है—
तब सत्ता के असंख्य खेल
उसके चारों ओर चलते रहते हैं,
पर वह
उस खेल से बाहर होता है।

#अनुभव

यदि सत्ता चाहिए—
तो
सत्य के संग जाना होगा।

सत्य से बड़ी
कोई सत्ता नहीं।

ब्रह्मा,
शिव,
राम,
कृष्ण,
महावीर,
विवेकानंद,
कबीर,
ओशो—

ये नाम
पूजा के नहीं,
अवस्थाओं के संकेत हैं।

यही असली सत्ता है।

#𝕍𝕖𝕕ā𝕟𝕥𝕒

यदि किसी के भीतर
वासना है,
भूख है,
प्यास है,
लोभ है,
क्रोध है—

तो वही
सत्य के योग्य है।

क्योंकि
काम, क्रोध, मोह, वासना
पाप नहीं हैं।

वे प्रकृति हैं।

और
प्रकृति का धर्म है—
परिवर्तन।

धार्मिक वह नहीं
जो वासना से भागता है,
धार्मिक वह है
जो वासना को दिशा देता है।

#वेदांत

काम को दबाना नहीं है—
उसे दिव्य बनाना है।
क्रोध को काटना नहीं है—
उसे ऊर्जा में बदलना है।

सत्य की मित्रता
धन से नहीं होती,
संस्थाओं से नहीं होती,
राजनीति से नहीं होती।

मित्रता होती है
हवा से,
पानी से,
अग्नि से,
आकाश से,
धरती से,
और सूर्य से—
अर्थात प्रकृति से।

यही
पंच-तत्व हैं।
यही असली देव हैं।

#कर्म

जब पंच-तत्व से मित्रता होती है,
तब व्यक्ति
परम सत्ता के साथ खड़ा हो जाता है।

तब वासना
न बुरी रहती है,
न क्षणिक।

वही वासना
दृष्टि बनती है,
हृदय में प्रेम बनती है,
और
समाधि में रूपांतरित होती है।

यह परिवर्तन
संघर्ष से नहीं,
समझ से होता है।

#गीत

जब ऊर्जा और प्रकृति को बेचकर
धन, पद, शासन पाया जाता है—
तो वह
एक कौड़ी की उपलब्धि होती है।

लेकिन
अहंकार
उसी एक कौड़ी को
99 प्रतिशत मान लेता है।

शेष रहता है
1 प्रतिशत की वास्तविक जरूरत
और
99 प्रतिशत का भ्रम—

इसी भ्रम को
माया कहा गया है।

#life

पाने में
लगभग कुछ नहीं है।

लेकिन
जीना सीख लिया जाए—
तो
यही जीवन
99 प्रतिशत बन जाता है।

जीवन की वास्तविक जरूरतें
सिर्फ़ 1 प्रतिशत हैं।

#ईश्वर

सुख, आनंद, स्वर्ग
कहीं बाहर नहीं—
भीतर हैं।

इसलिए
वासना, क्रोध, लोभ का होना
कमज़ोरी नहीं,
ऊर्जा का प्रमाण है।

फिर भी
यदि कोई
एक कौड़ी की सत्ता के लिए
दौड़ता रहे—

तो वह
99 प्रतिशत प्राण और चेतना
क्षणिक उपलब्धि पर
खर्च कर देता है।

#पाखंडी

जिस दिन
पाने की दौड़
निरर्थक दिखने लगे—

उसी दिन
जीवन शुरू होता है।

तब
गीता, वेद, उपनिषद
शब्द नहीं रहते—
अनुभव बन जाते हैं।

और
विज्ञान
हाथ में उपकरण नहीं,
दृष्टि बन जाता है।

#osho

भारत
सोने की चिड़िया
और विश्व-गुरु इसलिए था
क्योंकि उसकी सत्ता
धन में नहीं थी।

उसकी सत्ता
सूर्य, चंद्र, हवा, पानी
के साथ सामंजस्य में थी।

यही
सनातन है।

Sadhguru Hindi

धन, साधन, शासन—
एक कौड़ी की वासना हैं।

सत्य के लिए
99 की वासना चाहिए।

और
जिस दिन वासना
सत्य की हो जाती है—
उसी दिन
क्षण सत्ता स्वयं गिर जाती है।

✦ शास्त्र-प्रमाण (संकेतात्मक) ✦

1️⃣ सत्ता बनाम सत्य

> सत्यमेव जयते — मुण्डक उपनिषद
सत्य ही विजयी होता है, सत्ता नहीं।

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2️⃣ वासना = पाप नहीं, ऊर्जा

> काम एष क्रोध एष — भगवद्गीता 3.37
काम और क्रोध ऊर्जा हैं;
अज्ञान में बंधन,
बोध में रूपांतरण।

---

3️⃣ दमन नहीं, रूपांतरण

> योगः कर्मसु कौशलम् — गीता 2.50
धर्म दमन नहीं,
ऊर्जा का कौशल है।

---

4️⃣ 1% आवश्यकता, 99% भ्रम (माया)

> मायाṁ तु प्रकृतिं विद्यान् — श्वेताश्वतर उपनिषद
प्रकृति का गलत बोध ही माया है।

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5️⃣ पाने में शून्य, जीने में पूर्णता

> तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा — ईश उपनिषद
त्याग का अर्थ छोड़ना नहीं,
सही तरह से जीना है।

---

6️⃣ देव बाहर नहीं, तत्व

> पञ्चभूतात्मकं विश्वम् — तैत्तिरीय उपनिषद
संपूर्ण जगत पंच-तत्वों से बना है—
यही देवता हैं।

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7️⃣ शास्त्र = अनुभव, विज्ञान = नियम

> ऋतं सत्यं परं ब्रह्म — उपनिषदिक सूत्र
सत्य ही नियम है,
और नियम ही ब्रह्म।

---

✦ निष्कर्ष (जैसा पाठ में बैठता है) ✦

शास्त्र कोई विश्वास नहीं सिखाते,
वे अस्तित्व के नियम बताते हैं।

और विज्ञान
उन्हीं नियमों की
आधुनिक भाषा है।

इसलिए
सत्य में
शास्त्र और विज्ञान
अलग नहीं होते।

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