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बेगूसराय- हाल ही में हुऐ बुलडोजर कार्यवाही कानून-व्यवस्था, समाजिक न्याय और बौद्धिक ईमानदारी पर गम्भीर सवाल हैं?

बेगूसराय हाल ही में हुऐ बुलडोजर कार्यवाही केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और बौद्धिक ईमानदारी का भी गम्भीर सवाल खड़ा करती हैं।
बेगूसराय में अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोजर चलाया गया। इस कार्रवाई के दौरान रेलवे लाइन के किनारे बने झोपड़पट्टी से अर्धनिर्मित देशी शराब और कुछ अंग्रेजी शराब की बरामदगी को आधार बनाकर बेगूसराय के सवर्ण समाज के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों जिनमें खासकर
सवर्ण समाज के जिले के चर्चित अधिवक्ता व अन्य बुद्धिजीवी वर्ग जो जातिवाद कुंठा से ओतप्रोत हैं जिन्होंने ऐसा ज़हरीला विमर्श खड़ा किया मानो पूरी झोपड़पट्टी अपराध का अड्डा हो। बिना किसी ठोस प्रमाण के उसे चोरों का अड्डा, शराब माफिया का ठिकाना और यहाँ तक कि देह व्यापार का केंद्र तक घोषित कर दिया गया। इस अमानवीय और जातिवादी भाषा का परिणाम यह हुआ कि झोपड़पट्टी को पूरी तरह जमींदोज कर दिया गया—वही हुआ, जो ‘मालिक समाज’ चाहता था।

लेकिन आज वही बेगूसराय एक और सच से रूबरू है। एक सत्ताधारी दल BJP नेता के रिश्तेदार के घर से 3 करोड़ 50 लाख रुपये की स्मैक और 20 लाख 47 हजार रुपये नकद बरामद किए गए हैं। यह बरामदगी न केवल अपराध की गंभीरता को उजागर करती है, बल्कि उस दोहरे मापदंड पर भी सवाल खड़े करती है, जो अब तक झोपड़पट्टियों और गरीब बस्तियों पर लागू किया जाता रहा है।

अब प्रश्न सीधा और असहज है, क्या जातिवादी मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी इस स्मैक के धंधेबाजों के घरों पर बुलडोजर चलाने की मांग करने का नैतिक साहस दिखाएंगे क्या? क्या वे उतनी ही तीखी भाषा, उतनी ही आक्रामक हेडलाइन और उतनी ही नैतिक चिंता अब भी व्यक्त करेंगे? या फिर कानून, नैतिकता और राष्ट्रहित की सारी परिभाषाएँ केवल गरीब, दलित-वंचित बस्तियों तक ही सीमित हैं?

यदि कानून सचमुच समान है, तो उसका बुलडोजर भी समान होना चाहिए। अन्यथा यह साफ समझा जाएगा कि बेगूसराय में अपराध नहीं, बल्कि जाति और वर्ग तय करता है कि किसका घर टूटेगा और किसका सम्मान बचाया जाएगा।

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