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वो सिर्फ एक सैनिक नहीं था, वो भारत माता की चुपचाप गरजती हुई तलवार था।

वो सिर्फ एक सैनिक नहीं था,
वो भारत माता की चुपचाप गरजती हुई तलवार था।

ये सच्ची कहानी पढ़कर आपके “होश उड़” जाएंगे।
लेखक संजीव कुमार

पहले स्पष्ट इसलिए कर दिया ताकि आप इसे फिल्मी कहानी ना समझ बैठें। लेख का एक एक शब्द सच है।

वर्ष 2003, शोपियां, कश्मीर...

एक नौजवान कश्मीरी युवक-
“इफ्तिखार भट्ट” कंधे तक लंबे बाल, कंधों पर पारंपरिक “फेरन” और आँखों में आग लिए हिजबुल मुजाहिदीन के दरवाजे पर खड़ा था।

“इफ्तिखार भट्ट” सेना को गालियाँ दीं, अपने भाई की मौत का बदला लेने की बात कही। उसकी जुबान में ज़हर था, नज़रों में नफरत।

और शायद इसी नफरत ने आतंकियों को यह यकीन दिला दिया कि यह नौजवान उनके लिए “सही आदमी” है।

उसे पाकिस्तान भेजा गया, ट्रेनिंग दी गई,
हथियारों की, बमों की, जेहाद की।

वहां उसने जो प्रदर्शन किया, उसने आतंकियों को हैरान कर दिया। बाकी जेहादियों से तेज़, ज्यादा फुर्तीला और सबसे बड़ी बात, विचारधारा में अंधा समर्पण। 72 हूरों को पाने का उतावला।

उसे चुना गया-
विशेष नेतृत्व प्रशिक्षण के लिए।
फिर LOC पार कर भारत भेजा गया, ताकि वह सेना की चौकी पर हमला कर सके। हिजबुल के दो बड़े कमांडर अबू सबजार और अबू तोरा उसके मेंटर बनाए गए।

2004 में, जब उसने कहा कि वह एक बड़ा हमला कर सकता है, तो दोनों सीनियर कमांडरों को साथ लेकर वह एक ऐसे स्थान पर गया जहाँ से हमले की योजना बनाई जा सकती थी।

वह पूरी योजना विस्तार से बताता गया।

नक्शा, मोर्चा, रणनीति, सब कुछ इतना बारीक था कि कमांडरों को शक हो गया। उन्होंने “इफ्तिखार भट्ट” से सवाल पूछने शुरू किए।

“इफ्तिखार भट्ट” की पृष्ठभूमि जाननी चाही।

तभी उस नौजवान ने AK-47 सीनियर कमांडरों के हाथ में पकड़ाई और कहा, अगर भरोसा नहीं है, तो गोली मार दो।

और फिर… पीछे हटा।

इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते, उस नौजवान ने कमर से TT-30 टोक्रेव पिस्टल निकाली, और दो-दो गोलियां दोनों की छाती में, एक-एक उनके सिर पर उतार दी।

उसका निशाना बिलकुल वही सिग्नेचर स्टाइल जिसे पैरा स्पेशल फोर्स के ऑपरेटर्स अपनाते हैं, तीन गोलियों से क्लोज रेंज किल।

हथियार समेटे और पास के आर्मी कैंप तक टहलते हुए गया।

उसका नाम इफ्तिखार भट्ट नहीं था। वो था मेजर मोहित शर्मा (धुरंधर), 1 पैरा स्पेशल फोर्स। मद्रास रेजिमेंट का वह अधिकारी जो दुश्मन के घर में घुसकर उसकी नस काट आता था।

मोहित शर्मा जी 2009 में कश्मीर में ही एक सर्च ऑपरेशन के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए।
उसके आखिरी शब्द थे-
“सुनिश्चित करो कि कोई भी बचकर न जाए।”

न कोई फिल्म, न कोई वेबसीरीज, न कोई पुरस्कार… बस मिट्टी में समा जाने वाली एक कहानी।
मगर यह कोई कहानी नहीं थी, यह सत्य था।

ऐसा सत्य जो हमें याद दिलाता है कि असली हीरो लाल कालीनों पर नहीं चलते, वो बर्फ से ढके पहाड़ों में, मौत की परछाइयों के बीच, भारत माँ की रक्षा करते हुए शहीद हो जाते हैं।

मेजर मोहित शर्मा को कोटिशः नमन। वो आज नहीं हैं, लेकिन उनका बलिदान हर हिंदुस्तानी के दिल में जिंदा है।

उन जैसा बनना मुश्किल है,
लेकिन उन्हें याद रखना हमारा कर्तव्य है।

कमेंट में “जय हिंद” मेजर मोहित शर्मा जी को श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए.. जय हिंद 🇮🇳🫡🫡

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