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सरसी कबीर/समुंदर छंद

सरसी
कबीर/समुंदर छंद
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1-
अंशुमान की स्वर्णिम आभा,
करे-रैन का अंत।
महा सन्त की निर्मल-भाषा,
काटे कष्ट-अनंत।।
धर्मराज की धर्म-प्रभा से,
हुआ-विश्व जीवंत।
हरि-भक्तों की रक्षा करते,
माँ-कमला के कंत।।
2-
घना कोहरा कटु-कर्मों का,
भरे-श्यामला रंग।
सर्दी-का मौसम सर्दीला,
काँप-रहा हर-अंग।।
नाच-रहे हैं यमुना तट पे,
कृष्ण-राधिका संग।
देख-रहे हैं दृश्य-अनोखा,
पीकर-भोला भंग।।
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प्रभुपग धूल
















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