जनप्रतिनिधि समझो
लोकतंत्र की आत्मा जन-प्रतिनिधियों और जनता के बीच के रिश्ते में बसती है। चुनाव जीतकर सत्ता में पहुँचना ही जन-प्रतिनिधि का अंतिम लक्ष्य नहीं होता, बल्कि जनता के प्रति संवेदनशील, विनम्र और उत्तरदायी व्यवहार करना भी उतना ही आवश्यक है। दुर्भाग्य से कई बार देखा जाता है कि सत्ता मिलते ही कुछ जन-प्रतिनिधि लोक-व्यवहार की मर्यादा भूल जाते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जन-प्रतिनिधियों को लोक-व्यवहार का पाठ कैसे पढ़ाया जाए।
जनता जितनी जागरूक होगी, जन-प्रतिनिधि उतने ही उत्तरदायी बनेंगे। नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे गलत व्यवहार पर सवाल उठा सकें। शिक्षित और सचेत समाज ही शालीन लोक-व्यवहार की माँग कर सकता है।
शांतिपूर्ण विरोध, ज्ञापन, जनसुनवाई और संवाद के माध्यम से जनता अपनी नाराज़गी व्यक्त कर सकती है। हिंसा नहीं, बल्कि तर्क और संयम से किया गया विरोध जन-प्रतिनिधियों को लोक-व्यवहार का महत्व समझाता है।