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धर्म नहीं — यह अस्तित्व से बाहर निकलने का शॉर्टकट है आज धर्म क्या कर रहा है, इसे साफ़ समझना ज़रूरी है।

धर्म नहीं — यह अस्तित्व से बाहर निकलने का शॉर्टकट है

आज धर्म क्या कर रहा है, इसे साफ़ समझना ज़रूरी है।

धर्म अस्तित्व के नियम नहीं सिखा रहा,
वह अपने बनाए हुए नियम सिखा रहा है।
हर धर्म, हर पंथ, हर संस्था यही कहती है —
हमारा नियम श्रेष्ठ है, इसे मानो।

और यहीं सबसे बड़ा झूठ खड़ा होता है।

धर्म यह भ्रम पैदा करता है कि
तुम अस्तित्व के नियम से बाहर जा सकते हो।
कि कोई विशेष पूजा,
कोई विशेष मंत्र,
कोई विशेष पहचान
तुम्हें नियम से छूट दिला देगी।

यही धर्म का शॉर्टकट मॉडल है।

जबकि सत्य यह है कि
अस्तित्व में कोई शॉर्टकट होता ही नहीं।

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गीता, उपनिषद, वेद, बुद्ध-वचन —
इनमें कहीं भी
अपने बनाए नियम नहीं दिए गए।

वे यह नहीं कहते —
ऐसा करो तो मोक्ष मिलेगा,
वैसा करो तो उद्धार होगा।

वे केवल अस्तित्व के नियम की ओर संकेत करते हैं।

आज की धार्मिकता
गीता की नहीं है,
वेदों की नहीं है,
उपनिषदों की नहीं है,
बुद्ध की नहीं है।

यह सब बाद में गढ़े गए नियम हैं —
संस्थाओं द्वारा,
पंथों द्वारा,
धार्मिक व्यापार द्वारा।

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सनातन का अर्थ धर्म नहीं है।
सनातन का अर्थ है —
अस्तित्व के साथ जीना।

अपने स्वभाव में,
अस्तित्व के स्वभाव में।

हवा जैसे बहती है,
पानी जैसे बहता है,
वृक्ष जैसे जीते हैं,
पशु-पक्षी जैसे जीते हैं —
बिना पाप-पुण्य,
बिना लोभ-लालच,
बिना धर्म।

एक अनपढ़ व्यक्ति
जो किसी पंथ में नहीं है,
जो बस अस्तित्व के साथ जी रहा है —
वह सनातन है।

और जब कोई बौद्ध कहता है — हम सनातन हैं,
जैन कहता है — हम सनातन हैं,
हिंदू कहता है — हम सनातन हैं —
तो भीतर आग पैदा होती है।

क्योंकि
सनातन कोई लेबल नहीं,
कोई धर्म नहीं,
कोई संस्था नहीं।

सनातन जीने की अवस्था है।

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मनुष्य को
पशु, वृक्ष, पक्षी से
अधिक क्या करना है?

बस इतना —

> यह देखना कि मैं कौन हूँ,
मैं क्यों जी रहा हूँ,
और यह जीवन है क्या।

यही मनुष्य का धर्म है।

अस्तित्व को छूना,
भीतर उतरना,
और उस अंतिम सुख,
अंतिम आनंद,
अंतिम शांति को जीना
जो भीतर मौजूद है।

यह केवल मनुष्य कर सकता है।

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इसलिए प्रचार यह नहीं होना चाहिए कि
यह धर्म सही है, वह गलत है।

प्रचार यह होना चाहिए —

> मैं कौन हूँ?
तुम कौन हो?
और जो दिखता है, वह सत्य है या नहीं?

सत्य दिखाया नहीं जाता,
सत्य दिखता है।

सुख दिया नहीं जाता,
सुख मिलता है।

आनंद सिखाया नहीं जाता,
आनंद उपजता है।

मोक्ष कोई मार्ग नहीं,
मोक्ष जीने का परिणाम है।

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ध्यान भी कोई तकनीक नहीं है।
जैसे थका हुआ व्यक्ति
स्वाभाविक रूप से गहरी साँस लेता है —
वैसे ही भीतर ऊर्जा में टिक जाना
ध्यान है।

लेकिन आज कोई जी नहीं रहा,
सब हासिल करना चाहते हैं।

और यही धर्म
बुद्धिजीवी बनकर सिखा रहे हैं।

यह सब
सनातन सत्य के विरुद्ध है।

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✦ अंतिम सूत्र ✦

> धर्म जीने की कला नहीं सिखा रहा,
वह जीने से बचने के नियम सिखा रहा है।

और

> सनातन कोई धर्म नहीं,
अस्तित्व के साथ बहने की अवस्था है।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓓𝓲
𝐕𝐞𝐝𝐚𝐧𝐭𝐚 𝟐.𝟎 — 𝐓𝐡𝐞 𝐔𝐥𝐭𝐢𝐦𝐚𝐭𝐞 𝐒𝐩𝐢𝐫𝐢𝐭𝐮𝐚𝐥 𝐅𝐫𝐚𝐦𝐞𝐰𝐨𝐫𝐤
वेदान्त २.० — सत्य की नई दृष्टि

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