
धर्म नहीं — यह हिसाब से बचने का कारोबार है।
𝐕𝐞𝐝𝐚𝐧𝐭𝐚 𝟐.𝟎 — 𝐓𝐡𝐞 𝐔𝐥𝐭𝐢𝐦𝐚𝐭𝐞 𝐒𝐩𝐢𝐫𝐢𝐭𝐮𝐚𝐥 𝐅𝐫𝐚𝐦𝐞𝐰𝐨𝐫𝐤 ·
धर्म नहीं — यह हिसाब से बचने का कारोबार है।
धार्मिक भाषा अक्सर यह कहती है —
सेवा करो, दान करो, अच्छे बनो, पुण्य कमाओ।
सुनने में यह आदेश जैसा लगता है,
इसलिए मन में विद्रोह पैदा होता है —
ये हमें जीने नहीं देते, नियम थोपते हैं।
लेकिन सत्य यह है कि
अस्तित्व कुछ भी थोपता नहीं।
वह केवल अपना नियम चलाता है।
जैसे आग जलाती है,
पानी भिगोता है —
वैसे ही कर्म फल देता है।
न नैतिकता के कारण,
न पाप-पुण्य के कारण,
बल्कि नियम के कारण।
समस्या अच्छाई या बुराई नहीं है,
समस्या कर्ता-भाव है।
जब कोई “अच्छा” बनने लगता है,
तो भीतर यह भाव पैदा होता है —
मैं कर रहा हूँ, मैं श्रेष्ठ हूँ।
यहीं से धर्म अहंकार बन जाता है,
और अहंकार हमेशा अधर्म ही पैदा करता है।
आज का धर्म इसी अहंकार को पोषित करता है।
वह कहता है —
गलत भी कर लो,
फिर गंगा है,
कुंभ है,
दान है,
पूजा है।
> करोड़ का घोटाला करो,
लाख का पुण्य चढ़ा दो —
हिसाब बराबर।
यही सबसे बड़ा धार्मिक छल है।
अस्तित्व में
न अच्छा है,
न बुरा।
वहाँ केवल भुगतान है।
आज नहीं तो कल,
हर कर्म का पूरा मूल्य चुकाना ही पड़ता है।
कोई भगवान बीच में खड़ा होकर
हिसाब नहीं बदलता।
इसलिए अधर्म गलत करने में नहीं है,
अधर्म यह मानने में है
कि उसका समाधान कहीं और से हो जाएगा।
✦ अंतिम बात ✦
धर्म अच्छा बनने का अभ्यास नहीं है,
धर्म नियम को समझ लेने की स्पष्टता है।
जो समझ गया —
वह न पाप से डरता है,
न पुण्य का व्यापार करता है।
वह जानता है —
जो करेगा, वही भरेगा।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓓𝓲
𝐕𝐞𝐝𝐚𝐧𝐭𝐚 𝟐.𝟎 — 𝐓𝐡𝐞 𝐔𝐥𝐭𝐢𝐦𝐚𝐭𝐞 𝐒𝐩𝐢𝐫𝐢𝐭𝐮𝐚𝐥 𝐅𝐫𝐚𝐦𝐞𝐰𝐨𝐫𝐤 · वेदान्त २.० — सत्य की नई दृष्टि — 🙏🌸 𝐀𝐠𝐲𝐚𝐭 𝐀𝐠𝐲𝐚𝐧𝐢