logo

हिमालय के प्रहरी: हर्षिल घाटी का दर्द और हम

हर्षिल घाटी सिर्फ पर्यटन का केंद्र नहीं, बल्कि हिमालय की आत्मा है। भारत की पारिस्थितिकी के लिए जैसे अरावली ‘रीढ़’ है, वैसे ही हर्षिल घाटी और उसके देवदार के जंगल ‘फेफड़े’ हैं। यह घाटी भागीरथी के प्रवाह को साधती है और गंगोत्री क्षेत्र का संतुलन बनाए रखती है। लेकिन आज विकास की आंधी ने इन शांत वादियों में विनाश की आहट दे दी है। हाल ही में खबर आई है कि झाला से भैरोंघाटी के बीच सड़क चौड़ीकरण के लिए लगभग 7,000 देवदार के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने वाली है। यह संख्या कोई आंकड़ा नहीं, बल्कि हिमालय के उस कवच का विनाश है जिसे सदियों ने गढ़ा है।

हिमालय का मनुष्य के नाम पत्र
अगर आज हिमालय बोल सकता, तो शायद वह यह कहता—
प्रिय मनुष्य
मैं हिमालय हूं
तुम्हारी नदियों का जन्मस्थान, तुम्हारी ऋतुओं का रक्षक, तुम्हारी साँसों का अदृश्य संरक्षक हूं।
सदियों से तुम्हें जल देता हूं, हवा देता हूं, जीवन देता हूं। तुम मेरे चरणों में बसे, मेरी पगडंडियों पर चले और मेरी चोटियों को निहारते रहे।
लेकिन अब तुम मेरे सीने पर तेज कुल्हाड़ियां चला रहे हो। मेरे हरे सैनिक देवदार तुम काट रहे हो, और पूछते हो कि मैं खामोश क्यों हूं? यह खामोशी मेरा संताप है। याद रखना, जब मैं बोलूंगा, तो बादल फटेंगे, पहाड़ टूटेंगे और नदियां गरजेंगी। मेरे घावों से निकला मलबा तुम्हारे ही रास्ते रोकेगा। अभी भी समय है मुझे समझो, मुझे बचाओ, ताकि मैं तुम्हें बचा सकूं। लेकिन आज… उन्हीं देवदारों पर तुमने लाल निशान लगा दिया है। मैं उन्हें हर सुबह सहलाता हूं पर वे कांपते हैं। डरे हुए बच्चों की तरह।
“7,000 देवदार… इन्हें तुम क्या समझते हो?”
इन पेड़ों की उम्र तुम्हारी सभ्यता से भी पुरानी है, मनुष्य। इनकी जड़ों में सदियों की शांत प्रार्थनाएं हैं। लेकिन तुमने इनके तने पर लाल रंग से ‘मृत्यु’ लिख दी है। तुम्हें शायद लगता होगा कि यह बस लकड़ी है। लेकिन मेरे लिए?
ये मेरे हाथ–पांव हैं। मेरी पसलियों के नीचे धड़कता हुआ जीवन है। तुम जब किसी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाओगे, तब वह सिर्फ गिरेगा नहीं मेरी रीढ़ टूटेगी। मेरी मिट्टी चीख उठेगी।
मेरी पहाड़ियां ढह जाएंगी।
“तुम्हें याद है 2025 का धराली?”
उस रात बादल नहीं फटा था… मेरा दिल फटा था, मनुष्य। मेरे सीने से 16 ज़िंदगियां फिसल गई थीं। तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे बूढ़े, तुम्हारे अपने।
मैं बहुत रोया था उस रात… लेकिन तुमने सोचा
कुछ दिनों की खबर है, सब ठीक हो जाएगा।
और आज फिर वही गलती…उसी जगह उसी घाटी उसी जख्म पर तुम कुल्हाड़ी रख रहे हो।
“रक्षा-सूत्र बंधा है मेरे शरीर पर, मनुष्य… लेकिन अब मैं खुद को बचा नहीं पा रहा”
मेरी पहाड़ियों की महिलाएं आज भी देवदारों से लिपटकर रोती हैं। वे पेड़ों को ऐसे पकड़ती हैं जैसे कोई डूबते बच्चे को पकड़ता है।
उनकी उंगलियां कांपती हैं… उनकी आवाज टूटती है… वे कहती हैं पेड़ मत काटो… हमारी जमीन बह जाएगी… हमारे बच्चे मलबे में दब जाएंगे।
मनुष्य, उनकी आवाज मेरे भीतर गूंजती है।
लेकिन तुम्हारे शहरों तक नहीं पहुंचती।
तुम कहते हो, सड़क चाहिए… लेकिन मैं पूछता हूं अगर मैं ही टूट गया, तो सड़क किस पर बनेगी? तुम्हें सेना के लिए चौड़ी सड़क चाहिए। मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं।
सेना मेरी ढाल है। पर क्या सैनिकों की सुरक्षा पेड़ों की लाशों पर बनी सड़क से होगी?
अगर मेरा ढलान खुल गया, अगर बारिश ने एक बार और चोट कर दी, अगर 7,000 देवदार गिर गए तो तुम्हारी सड़क भी टूट जाएगी। तुम्हारे पुल भी बह जाएंगे। तुम्हारी प्रगति भी मिट्टी में धंस जाएगी! मनुष्य, मेरी नदियों का पानी आज कड़वा है… गुस्से से, दर्द से ,भागीरथी मेरी बेटी है। आज वह कांपती है।क्योंकि जब जंगल कटेंगे, तो गाद उसकी नसों में भर जाएगी। तुम्हें पता है इसका मतलब?तुम्हारी हाइड्रो परियोजनाएं बंद। तुम्हारे शहरों में पानी का संकट। तुम्हारी कृषि ध्वस्त।
मनुष्य, मैं तुमसे बदला नहीं लेना चाहता,पर तुम खुद अपने साथ यह सब कर रहे हो। मैं और कितना सहूं? बताओ… हर साल बारिश मुझ पर भारी हो जाती है। हर साल सड़कें मुझसे लड़ती हैं। हर साल कोई न कोई गांव मेरे गोद से फिसल जाता है। अब मैं सच में थक गया हूं। मेरे पास सहने की क्षमता नहीं बची है । तुमने मुझे इतना काटा है, इतना खोदा है,
इतना दबाया है, कि अब मैं टूटने लगा हूं ।मनुष्य, अगर तुमने मुझे नहीं बचाया… तो मैं भी तुम्हें नहीं बचा पाऊंगा।” तुम्हारी नदियां मेरी नसों से निकलती हैं। तुम्हारी सांसें मेरे पेड़ों में बसी हैं। तुम्हारी प्रकृति मेरे दिल पर टिकी है।अगर मैं मर गया तुमने भी बचे रहोगे? सोचो…ईमानदारी से सोचो।
अंतिम विनती: मुझे मत काटो… मुझे मत मारो… मैं गिरा तो तुम भी गिरोगे।
मनुष्य,
मैं हर्षिल… पहाड़ का वह टुकड़ा, जो तुम्हें हमेशा बिना शर्त प्यार करता आया है, तुम्हारे बच्चों को गोद में खिलाता आया है, तुम्हें अपने जंगलों में शांति देता आया है आज तुमसे भीख मांग रहा हूं: सड़क बनाओ, लेकिन मुझे मत तोड़ो। विकास करो, लेकिन विनाश मत करो। पेड़ बचाओ क्योंकि मैं उन्हीं से जिंदा हूं। अगर तुम मेरी यह आखिरी चिट्ठी नहीं सुनोगे तो अगली बारिश शायद मेरी नहीं, तुम्हारी होगी।
तुम्हारा
हर्षिल एक घाटी, जो आज भी उम्मीद लगाए बैठी है कि मनुष्य उसे समझेगा… और बचा लेगा।

4
96 views