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भारतीय मुद्रा का गिरता स्तर चिंताजनक ।

भारतीय रुपये की गिरावट हाल के वर्षों में एक प्रमुख आर्थिक मुद्दा बन गई है। दिसंबर 2025 तक, रुपये ने डॉलर के मुकाबले 90 का स्तर पार कर लिया है, जो ऐतिहासिक निचला स्तर है। वर्ष 2025 में यह लगभग 5-6% कमजोर हुआ है, जो एशिया की प्रमुख मुद्राओं में सबसे खराब प्रदर्शन है। यह गिरावट केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आम आदमी की जेब, निर्यात-आयात और समग्र अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। नीचे हम अंतरराष्ट्रीय (ग्लोबल) और भारतीय (डोमेस्टिक) कारकों को ध्यान में रखते हुए इसके प्रमुख कारणों को समझेंगे ।

ये कारण वर्तमान आर्थिक रिपोर्टों और विशेषज्ञ विश्लेषणों पर आधारित हैं।अंतरराष्ट्रीय स्थिति के प्रमुख कारणअंतरराष्ट्रीय कारक रुपये की गिरावट के पीछे सबसे मजबूत दबाव डाल रहे हैं, क्योंकि वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती और जोखिम से बचाव की प्रवृत्ति उभरती अर्थव्यवस्थाओं (जैसे भारत) की मुद्राओं को दबा रही है।

मुख्य कारण ये हो सकते हैं -

अमेरिकी डॉलर की मजबूती और ब्याज दरों का अंतर: अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की 'उच्च ब्याज दरों को लंबे समय तक बनाए रखने' की नीति ने डॉलर को सुरक्षित निवेश का आकर्षक विकल्प बना दिया है। 2025 में फेड ने ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कम कीं, जिससे डॉलर इंडेक्स (DXY) मजबूत रहा। इसके विपरीत, भारत में कम ब्याज दरें (RBI की हालिया कटौती के कारण) पूंजी को अमेरिका की ओर खींच रही हैं। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा, और USD/INR दर 90.56 तक पहुंच गई।

अमेरिका के टैरिफ और व्यापार तनाव: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 2025 में भारतीय निर्यात पर 50% तक टैरिफ लगाए, खासकर रूसी तेल खरीद को लेकर। इससे भारत का अमेरिका को निर्यात (जैसे कृषि उत्पाद, वस्त्र) 11.8% गिर गया। यह व्यापार घाटे को बढ़ा रहा है और विदेशी निवेशकों का विश्वास कम कर रहा है। भारत-अमेरिका व्यापार समझौते (ट्रेड डील) में देरी ने अनिश्चितता बढ़ाई, जिससे रुपये का 'रिस्क प्रीमियम' (जोखिम भत्ता) ऊंचा हो गया।

वैश्विक जोखिम से बचाव और भू-राजनीतिक अस्थिरता: मध्य पूर्व संघर्ष, यूक्रेन-रूस युद्ध और वैश्विक मंदी की आशंकाओं ने निवेशकों को 'रिस्क-ऑफ' मोड में धकेल दिया। इससे पूंजी उभरते बाजारों से बाहर निकल रही है। भारत जैसे देशों में विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जो डॉलर की मांग बढ़ा रहा है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव (भारत 85% तेल आयात करता है) ने भी डॉलर मांग को बढ़ाया।

वैश्विक मुद्रास्फीति और कमोडिटी कीमतें: वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और सोने जैसी कमोडिटीज की कीमतें ऊंची रहने से आयात बिल बढ़ा। अक्टूबर 2025 में सोने के आयात 200% बढ़े, जो डॉलर की मांग को और तेज कर रहा है।

ये कारक रुपये को वैश्विक डॉलर चक्र से जोड़ते हैं, जहां फेड की नीतियां और व्यापार युद्ध सीधे प्रभाव डालते हैं।भारतीय स्थिति के प्रमुख कारणभारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत है (Q2 FY26 में GDP ग्रोथ 8.2%, खुदरा मुद्रास्फीति मात्र 0.25%), लेकिन कुछ आंतरिक कमजोरियां गिरावट को तेज कर रही हैं। RBI ने हस्तक्षेप कम किया है ताकि निर्यात प्रतिस्पर्धी बने रहें, लेकिन इससे अस्थिरता बढ़ी है।

मुख्य कारण:विदेशी पूंजी की निकासी (FII आउटफ्लो): 2025 में FII ने भारतीय इक्विटी से ₹1.5 लाख करोड़ (लगभग $16.5 बिलियन) निकाले। जुलाई-नवंबर में यह ₹1.03 लाख करोड़ था। कारण: उच्च वैश्विक ब्याज दरें और अमेरिकी बाजारों का आकर्षण। इससे फॉरेक्स रिजर्व $12.1 बिलियन गिरे (नवंबर 2025 में $688 बिलियन)।

व्यापार घाटा और आयात दबाव: अक्टूबर 2025 में व्यापार घाटा रिकॉर्ड $41.7 बिलियन पहुंचा। आयात $76.1 बिलियन (16.6% YoY बढ़ोतरी), मुख्यतः सोना, तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स। त्योहारी सीजन में सोने के आयात ने डॉलर मांग को चरम पर पहुंचाया। निर्यात गिरावट (विशेषकर अमेरिका को) ने असंतुलन बढ़ाया।

मुद्रास्फीति अंतर और RBI नीतियां: भारत में मुद्रास्फीति अमेरिका से ऊंची रही, जो रुपये की क्रय शक्ति को कमजोर करती है। दिसंबर 2025 में RBI ने ब्याज दरें काटीं, जो रुपये को और दबा रही। RBI ने $30 बिलियन डॉलर बेचे, लेकिन अब अस्थिरता प्रबंधन पर फोकस है, न कि सख्त बचाव पर।
कॉर्पोरेट हेजिंग और सट्टा मांग: आयातक (जैसे तेल कंपनियां) रुपये की और गिरावट की आशंका से डॉलर जमा कर रहे हैं, जो मांग-आपूर्ति असंतुलन बढ़ा रहा है।

निष्कर्ष और प्रभावरुपये की गिरावट अंतरराष्ट्रीय दबाव (डॉलर मजबूती, टैरिफ) और भारतीय कमजोरियों (पूंजी निकासी, घाटा) का संयोजन है।

सकारात्मक पक्ष: निर्यात प्रतिस्पर्धी बनेगा और रेमिटेंस बढ़ेगा। लेकिन नकारात्मक: आयात महंगे (ईंधन, FMCG 3-5% महंगे), विदेश यात्रा/शिक्षा पर बोझ, और मुद्रास्फीति में 35 bps वृद्धि। RBI के हस्तक्षेप और फेड कटौती से राहत मिल सकती है, लेकिन 2026 तक 88-90 रेंज में रहने की संभावना। आम आदमी के लिए सलाह: विदेशी खर्च सीमित करें, निर्यात-केंद्रित निवेश पर नजर रखें। अर्थव्यवस्था मजबूत है, लेकिन वैश्विक संतुलन जरूरी है ।
निजी विचार ....

मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT

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