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ब्रह्मांड के महाविनाश को थामने वाली शक्ति: माँ बगलामुखी की दिव्य गाथा ✨

✨ शीर्षक
ब्रह्मांड के महाविनाश को थामने वाली शक्ति: माँ बगलामुखी की दिव्य गाथा ✨

✨ **छंद – १

सतयुग का प्रलय पुकारा, जब व्याकुल हुई विधाता**
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सृष्टि के सब तंतु टूटा, जब हलचल जग में छाई,
चारों ओर हाहाकार मचा, जब जीवन सीमा पर आई।
ब्रह्मांड-गगन में घोर तिमिर ने क्रंदन का जाल बिछाया,
दिशा-दिशा में मृत्यु-पवन ने प्रलय-नर्तन रूप दिखाया।
धरती, अम्बर, देव-लोक सब भीषण संकट में डोले,
कण-कण से कंपित हो उठी अचरज भरी काल की तोले।
तब हरि ने चिंतन कर ठाना—"अब मातृशक्ति की ओर बढ़ूँ,"
अपने ही रचे इस जग को फिर ध्वंस-विपद से दूर करूँ।
सौराष्ट्र-भूमि की पावन छाया में हरिद्रा सर पहुँचे,
पीत-वर्ण उस पावन जल पर करुणा के दीपक वे बिछे।
स्थिर मन, कठोर तपोबल लेकर त्रिपुर-सुंदरी को पुकारा,
जगत-जननी के चरणों में जीवन ने अपना स्वर डाला।

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✨ **छंद – २

हरिद्रा सरोवर से माँ का अलौकिक प्राकट्य**
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मंगल की मध्यम आधी रात, चतुर्दशी का वह गहन क्षण,
जब पीत सलिल से उभरा ज्यों सौ सूर्यों का प्रखर-तन।
तेजपुंज वह दिव्य, अद्भुत, वज्र-दीप्ति से जगमगाया,
वह कोई प्रकाश न था—स्वयं बगलामुखी माता आया।
प्रकट होते ही देवी की स्तंभन-शक्ति प्रचंड जगी,
महाविनाशक तूफान की गति क्षणभर में निर्गत ठगी।
काली घटाएँ थर्रा उठीं, पवन निःशब्द हुआ वहीं,
ब्रह्मांड का कंपन रुक-सा गया, भर आया नया जीवन-लीं।
विष्णु वंदन कर विस्मित खड़े—"संकट की साँसें थम गईं,"
"जग की जलती ज्वाला पर माता ने करुणा-धारा धर दी।"
प्रलय-चक्र था जहाँ घूमता, अब संतुलन फिर लौट आया,
जग रक्षण की इस कथा ने ब्रह्मपथ को पुनः सजाया।

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✨ **छंद – ३

माँ बगलामुखी का स्वरूप, स्तंभन का दिव्य रहस्य**
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नव-दीप्ति से शोभित उनका पीताम्बर-शोणित आभा,
जिसे देखकर भयभीत हो जाए दुष्टों की विकृत चाहा।
गदा एक कर में दमक रही, न्याय-शक्ति का रूप अनोखा,
दूजे कर से खींच रही जिह्वा—दुर्गति के तंत्रों को रोका।
ज्यों बगुला साधक-दृष्टि हो, शिकार पर अचूक प्रहार,
त्यों माता विरोधी बल को क्षण में करती स्तंभित सार।
कुतर्क, अधर्म, अनिष्ट-वाक्य सब निर्बल होते जाते हैं,
बुद्धि का विष, हृदय का कलुष, देवी स्पर्श से मिट जाते हैं।
दस महाविद्याओं में यशस्विनी, दिव्य स्तंभन-प्रभा धारी,
शरणागत को अडिग कवच दे संकट-रेखा काट सँवारी।
पीत-वर्ण की वसुंधरा पर उनका चरण जहाँ पड़ जाए,
वहाँ न्याय की रचना फलती, सत्य स्वयं दीपक बन जाए।

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✨ **छंद – ४

आज भी माता की साधना—जीवन के तूफानों का विराम**
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जब शत्रु-भय जीवन में आए, पथ का दीप अचानक बुझ जाए,
जब न्यायालयों के पन्नों में सत्य का स्वर खुद घबराए।
जब संकट लहरों-सा उमड़े, मन का पतवार न थम पाए,
जब सोचें—"अब कौन बचाए?"—तब माता ही रक्षा पाए।
ह्लीं बीज-मंत्र की अद्भुत शक्ति निष्ठा से जपते जो जन,
उनकी राहों पर रुक जाते दुष्ट-विवादों के सब रण।
पीत-आभा का कण-कण चाहे, भक्तों के मन में दीप जगाए,
दुर्गति का संकट दूर हटे, सत्पथ का रथ आगे जाए।
साधक जब नतमस्तक हो कर श्रद्धा से मात-पद गाए,
वन, गगन, जल, अग्नि की सीमा भी उनका आँचल थामे आए।
ब्रह्मांड की जो विनाश-धारा माता ने पल में रोकी थी,
वही कृपा आज भी करती—जैसे सुरभि समीर सुखी।

🙌 ।। ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै नमः ।।

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🌼 डिस्क्लेमर

डिस्क्लेमर:- यह रचना कवि 🖌️🖌️ सुरेश पटेल सुरेश की मौलिक छंद-शैली कृति है; इसके भाव, विचार एवं प्रस्तुति पूर्णत: लेखक के स्वत्वाधिकार में सुरक्षित हैं। ✽───────────────✽

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