समीक्षा की समीक्षा - तीन बन्दर और एक बकरी
*समीक्षा की समीक्षा - तीन बन्दर और एक बकरी* हमें बताया गया कि एक बकरी वाला तीन बंदरों की कहानी सुनाता था और देश की भोली जनता को उस कहानी से सीख लेने को कहता था ...पहले बन्दर बन्दर ने अपनी आखें बंद कर रक्खी थीं जिसका मतलब था बुरा मत देखो ....जैसे कि हिन्दुओं की स्त्रियों का बलात्कार हो रहा होहिन्दुओं को तरह तरह के जेहाद में फंसाया जा रहा हो हिन्दुओं को उनके ही राष्ट्र में दूसरे स्तर का नागरिक बनाया जा रहा हो मतलब ....कोई भी बुरा काम जो हिन्दुओं के साथ हो रहा हो उसे न तो देखो न ही औरों को दिखाओ और देखने दो |आज कल की सेक्युलर मीडिया इसका जीता जागता उदहारण है जिसे हिन्दुओं पर होते अत्याचार नहीं दिखाई देते लेकिन जाहिल जेहादियों पर आई खरोंच भी उनको मानवता पर हमला दिखाई देती है | ___________________________दूसरे बन्दर ने अपने कान बन्द कर रक्खे थे ...जिसका मतलब था बुरा मत सुनो तो उसे हिन्दुओं की चीखे सुनाई नहीं देतीं थीं न तो नोवाखाली में उसको उन स्त्रियों की चीखे सुनाई दीं जिनके स्तन जेहादियों द्वारा काट लिए गए न ही उसको वह चीखें सुनाई दीं जब पाकिस्तान से आई हिन्दू स्त्रियों ने दिल्ली की एक मस्जिद में शरण ली तो उन्हें भारी बरसात के बीच वहां से निकाल कर असहाय अपमानित होने के लिए छोड़ दिया गया__________________________________तीसरे बन्दर ने अपना मुंह बंद कर रक्खा था --- जिसका मतलब था कि बुरा मत बोलो तो उसने कभी भी हिन्दुओ / निर्दोषों / शोषितों के लिए कभी कुछ नहीं बोला जब ट्रेन की बोगियों हिन्दुओं की कटी हुई लाशें आ रही थी तो भी वह मौन रहा जब लाखों हिन्दुओं की हृदय विदारक हत्याएं हुईं, बहन बेटियों के बलात्कार हुए तो भी उसका मुंह नहीं खुला जब कभी भी हिन्दुओं पर अत्याचार की कोई सूचना मिलती यह बन्दर तुरन्त मौनव्रत कर धरने पर बैठ जाता ___________________________रही बात बकरी की और बकरी वाले की ....तो उस बकरी को पालने का खर्च उस समय में भी कई घोड़ों को पालने से अधिक आता था ...उस समय उन्ही की एक बड़ी सहयोगी नेताने कहा था कि बकरीवाले को गरीब दिखाने का खर्च उस समय हर वर्ष लाखों रुपयों में आता था ... अच्छा पाल तो वह गाय भी सकता था *लेकिन उसको पता था कि बकरी ही विशेष समुदाय की पहचान है और विशेष प्रजाति को संतुष्ट करना ही उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था |*उसने हिन्दुओ को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और हिन्दू इतने मूर्ख हैं कि उन्हें हर दस-बीस साल बाद एक नया मार्गदर्शक चाहिए होता है जिसको वह स्वयं ही भगवान बना देते हैं | तो उसने हिन्दुओं को अहिंसक बना कर नपुंसक बना दिया और मुसलमानों ने उसकी कोई बात नहीं मानी इसलिए वह अपने स्वभाव के अनुरूप ही रहे |स्वयं सोच कर देखिये कि जिस आदमी को अफ्रीका में कोई नहीं जानता था..जहाँ उसने एक भी आन्दोलन नहीं किया वह यहाँ आकर कैसे अपने आप पूरे देश का सर्वमान्य नेता बन गया ...*स्वयं सोच कर देखिये कि जो अहिंसा का देवता था उसने 25 लाख के करीब हिन्दुओ को विश्वयुद्ध में अंग्रेजो की ओर से लड़ने या कहूं कि मरने भेज दिया और यह आज तक विश्व रिकार्ड भी है कि दुनियां में किसी भी लड़ाई में उस देश के लगभग 87 000 सैनिक मरे, 34,354 घायल हुए और 67,340 युद्धबंदी बने जो देश उस युद्ध में शामिल ही नहीं था | जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिन्द सेना का गठन कर रहे थे तो बकरी वाला हिन्दू युवाओं को बरगलाकर अंग्रेजों की फ़ौज में शामिल करवा रहा था |*उसे दुनियां का सबसे सफल पाखण्डी यूँ ही नहीं कहा गया ....लिखने को मैं बहुत कुछ लिख सकती हूँ पर मुझे लगता है कि पढ़ने के बाद चिंतन करना अति आवश्यक होता है ।हिन्दुओं के पास चिंतन करने के लिए न तो पर्याप्त समय है और न ही संकल्प की दृढ़ शक्ति लेकिन हिन्दुओं के पास उनका प्राचीन गौरव है, उनकी परंपराएं हैं उनके शास्त्र हैं और उनमें छिपे सन्देश हैं जिन्हें वह जिस दिन समझ जायेंगे वह अजेय हो जाएंगे ।पूरे लेख का सार केवल इतना है किसी के कर्मों का आंकलन करने के उपरांत ही उसे कोई भी पदवी देनी चाहिए ...और कोई भी किसी को भी कुछ भी मानने के लिए बाध्य नहीं ।© राष्ट्रपुत्री समीक्षा सिंह । कासगंज । उत्तर प्रदेश आधार आपका अधिकार है भूलिए मत.........