
डीएम नान का प्रभार संभालते ही डीएसओ अनीता सोरते के आदेश पर उठे सवाल
12 नवम्बर का आदेश निरस्त, 2021-22 ऑडिट समापन को लेकर गहराया संशय
अनूपपुर।
जिले में नागरिक आपूर्ति निगम की कार्यप्रणाली पर बुधवार को एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। कलेक्टर हर्षल पंचोली द्वारा 2 दिसम्बर 2025 को म.प्र. स्टेट सिविल सप्लाईज कॉर्पोरेशन लिमिटेड अनूपपुर के प्रबंधन का अतिरिक्त प्रभार जिला आपूर्ति अधिकारी अनीता सोरते को सौंपे जाने के मात्र 24 घंटे बाद ही उन्होंने निगम का एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक आदेश निरस्त कर दिया।
नवीन आदेश 3 दिसम्बर 2025 को जारी किया गया, जिसमें 12 नवम्बर 2025 को जारी उस पूर्व आदेश को रद्द कर दिया गया है, जिसके अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2021-22 के ऑडिट समापन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी। पुराने आदेश में कार्य दायित्व जिलास्तरीय स्टाफ को सौंपे गए थे, जबकि वर्तमान आदेश में इन्हें बदलते हुए पूरा दायित्व कोतमा कार्यालय को स्थानांतरित कर दिया गया है।
पूर्व आदेश को निरस्त करने का कारण स्पष्ट नहीं
सूत्र बताते हैं कि यह निर्णय अचानक और बिना किसी स्पष्ट कारण के लिए लिया गया, जिसके कारण कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कई अधिकारी इसे तुगलकी कदम बताकर आलोचना कर रहे हैं, क्योंकि यह निर्णय उस समय लिया गया जब ऑडिट प्रक्रिया वर्षों से लंबित होकर अंतिम चरण में पहुंचने वाली थी।
ऑडिट प्रक्रिया बाधित होने का आरोप
12 नवम्बर को तत्कालीन प्रबंधक संतोष कचराम द्वारा जारी आदेश के अनुसार कनिष्ठ सहायक अच्छेलाल रैदास को जिला कार्यालय में संलग्न कर ऑडिट की जिम्मेदारी दी गई थी, सहायक विजय सिंह को प्रदाय केंद्र कोतमा का प्रभार सौंपा गया था। इस आदेश को निरस्त करने से अब ऑडिट प्रक्रिया अनिश्चितकाल के लिए ठहरती दिखाई दे रही है।
निगम में चर्चाओं का दौर तेज
कर्मचारी और विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस निर्णय से यह संकेत मिल रहा है कि नए प्रभार संभालने के बाद डीएसओं अनीता सोरते किस प्रकार की प्रशासनिक नीति अपनाएंगी, इसको लेकर निगम में आशंका और चर्चा दोनों का माहौल है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी सरकारी संस्था में ऑडिट न केवल वित्तीय अनुशासन का साधन है, बल्कि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का आधार भी है। ऐसे में ऑडिट रोकना या दिशा बदलना भविष्य में अनियमितताओं के जोखिम को बढ़ा सकता है।
विक्रेन्द्रीकृत से केंद्रीकृत उपार्जन की ओर कदम
प्रदेश स्तर पर भी उपार्जन प्रणाली को लेकर बड़ा बदलाव संभावित बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 14 अक्टूबर 2025 को केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव दिया था कि विकेन्द्रीकृत उपार्जन योजना के अंतर्गत वास्तविक लागत की प्रतिपूर्ति नहीं हो पा रही है, बैंकों से लिए गए 72,177 करोड़ के ऋण का भुगतान संकट में है, इसलिए प्रदेश में केंद्रीकृत उपार्जन प्रणाली लागू करने की अनुमति दी जाए। इस पर अब प्रशासनिक गतिविधियाँ तेज होती दिखाई दे रही हैं और जिला स्तर के निर्णयों को उसी दिशा में जोड़ा जा रहा है।
अब निगाहें अगले आदेश पर
निगम और विभाग दोनों की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या ऑडिट प्रक्रिया के लिए नया आदेश जारी होगा? या निर्णय स्थगन की दिशा में आगे बढ़ेगा? यदि ऐसा होता है तो पिछले वर्षों की वित्तीय समीक्षा और जवाबदेही अधर में अटकना तय माना जा रहा है।