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सोनिया गाँधी का नया झोल

खटमल परिवार-20: सोनिया गांधी की रहस्यमय गतिविधियाँ

आप जानते हैं कि राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को हुई थी। उन दिनों लोकसभा चुनाव चल रहे थे, बहुत सी सीटों पर मतदान हो चुका था। परन्तु राजीव गाँधी की हत्या होने के बाद तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ने शेष लोकसभा क्षेत्रों में मतदान पूरे एक महीने के लिए टाल दिया था, जिससे कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर बन गयी और कांग्रेस बहुमत के निकट पहुँच गयी। शेष कार्य सूटकेसों ने कर दिया। इस प्रकार नरसिंह राव की सरकार बन गयी।

राजीव गाँधी की हत्या के ठीक एक महीने बाद 21 जून 1991 को ‘राजीव गांधी फाउंडेशन’ नाम से एक एनजीओ बनाया गया और सोनिया गाँधी इसकी अध्यक्ष बनीं। उन्होंने 1993 में ब्रिटेन में राजीव गांधी फाउंडेशन की ब्रांच खोली और ब्रिटेन सरकार ने उनकी उपस्थिति में इसके संबंध में प्रस्ताव पारित किया। उसी वर्ष वे राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़े काम के लिए अमेरिका गईं। वह काम वास्तव में क्या था, यह जानकारी किसी को नहीं मिली। लेकिन उसी वर्ष यानी 1993 में ही जॉर्ज सोरोस ने न्यूयॉर्क में ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ की स्थापना की। यह मात्र संयोग नहीं था।

दिसंबर 1994 में फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन द एशिया-पैसिफिक (FDL-AP) नाम से एक NGO शुरू किया गया। इस फोरम के लगभग सभी सदस्य अमेरिका समर्थक थे। कुछ अन्य लक्ष्यों के अलावा, इस NGO का मुख्य लक्ष्य था- ‘स्वतंत्र कश्मीर’! जी हां, आपने सही पढ़ा है- ‘स्वतंत्र कश्मीर’। राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी इस फोरम की सह-अध्यक्ष थीं। सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन इस NGO के प्रमुख वित्तपोषकों में से एक था। अर्थात् स्वतंत्र कश्मीर बनाने के उद्देश्य वाले NGO को सोरोस फाउंडेशन फंड कर रहा था और सोनिया गाँधी जानबूझकर उसमें शामिल हुई थीं।

1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तब कंधार विमान अपहरण की घटना हुई थी। कंधार पहुंचने से पहले विमान ईंधन भरने के लिए यूएई में उतरा था। वहाँ के अधिकारियों ने अमेरिकी राजदूत को हवाई अड्डे में प्रवेश करने की अनुमति दी, लेकिन भारतीय राजदूत को नहीं दी। उसके बाद विमान को लेकर आतंकी अफगानिस्तान के कंधार पहुंचे, जो उस समय तालिबान के अधीन था। उन दिनों रूस का मुकाबला करने के लिए अमेरिका तालिबान का समर्थन कर रहा था।

विमान अपहरणकर्ताओं ने शुरुआत में 36 आतंकवादियों की रिहाई की मांग की थी, लेकिन सौदेबाजी के बाद मसूद अजहर समेत 3 आतंकवादियों की रिहाई पर बात बनी। 36 आतंकियों की उस सूची में एक नाम आतंकी ‘लतीफ’ का था, लेकिन उसे रिहा नहीं किया गया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई को मसूद अज़हर में विशेष रुचि थी। एफबीआई ने 1995 से 1998 के बीच कई बार उस आतंकी का ‘साक्षात्कार’ लिया था, जब वह भारतीय जेल में था। रिहाई के बाद आतंकी मसूद अजहर ISI की सहायता से पाकिस्तान पहुंचा और जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन शुरू किया, जिसका लक्ष्य भी ‘आजाद कश्मीर’ है!

जून 2001 में सोनिया गांधी अपने सहयोगियों (मनमोहन सिंह, नटवर सिंह, मुरली देवड़ा, तथा जयराम रमेश) के साथ पांच दिनों के लिए अमेरिका गईं। लेकिन वहां पहुंचने से पहले उन्होंने ब्रिटेन और आइसलैंड का दौरा किया। ये दोनों ही देश टैक्स चोरी करने वालों के लिए स्वर्ग समान (Tax Havens) हैं! अमेरिका में सोनिया गांधी ने विदेशी संबंधों की काउंसिल और हेनरी किसिंजर के साथ ‘बंद कमरे’ में बैठक की। ये वे लोग हैं जो हर चीज का फैसला करते हैं, यहां तक कि अमेरिका के राष्ट्रपति भी इनसे दबते हैं। इस दौरे में सोनिया गांधी के सहयोगी नटवर सिंह के अनुसार, सोनिया गांधी को वहां बहुत ख़ास लोगों से मिलने की उम्मीद थी। ये ख़ास लोग कौन थे, उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया।

इसके छ महीनों बाद ही 13 दिसंबर 2001 को ‘जैश-ए-मोहम्मद’ के आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया। ‘संयोग’ की बात है कि जब संसद पर हमला हुआ था, तो उससे पहले ही सोनिया गांधी संसद से निकल गई थीं।

2004 में चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी ने सरकार चलाने के लिए एक NAC का गठन किया। हर्ष मंदर और अरुंधति रॉय जैसे घोर वामपंथी और आतंकवाद समर्थक इस NAC का हिस्सा थे। रोचक बात यह है कि ये दोनों भारत में जॉर्ज सोरोस के लिए काम करते थे! इनका एक एनजीओ 'HRLN' राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ मिलकर शहरी नक्सलियों और अलगाववादियों के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। यहां तक कि इस NGO को सोरोस और अमेरिका से भी फंड मिला है। यह भी उल्लेखनीय है कि 2004 में सत्ता में आने के बाद सोनिया गांधी का पहला फैसला आतंकवाद विरोधी कानून पोटा को खत्म करना था।

28 मई 2010 को यूपीए की सरकार ने ‘सद्भावना के तौर पर’ 25 आतंकवादियों को रिहा किया। इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि उस आतंकी ‘लतीफ़’ को भी रिहा कर दिया गया, जिसका नाम मसूद अज़हर के साथ विमान अपहर्ताओं की माँगवाली सूची में शामिल था और उसे उस समय रिहा नहीं किया गया था।

RTI से मिली जानकारी के अनुसार, सरकार के पास 2004 से 2014 के बीच सोनिया गांधी की विदेश यात्राओं का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस अवधि में सोनिया गांधी ने ‘मेडिकल’ कारणों से कई बार अमेरिका का दौरा किया था। यह जानकारी भी कांग्रेस प्रवक्ताओं द्वारा ही दी जाती थी और वह भी उनके भारत छोड़ने के बाद! इसी प्रकार, 30 नवंबर 2015 को वह ‘मेडिकल चेकअप’ के लिए तीन दिनों के लिए अमेरिका गईं।

सोनिया गाँधी की इस यात्रा के लगभग एक माह बाद ही 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में वायु सेना के अड्डे पर आतंकी हमला हुआ था। आश्चर्यजनक बात यह है कि उस हमले का मास्टरमाइंड वही आतंकी ‘लतीफ’ था, जिसे 2010 में यूपीए की सरकार ने ‘सद्भावना के तौर पर’ रिहा कर दिया था।

(पहले चित्र में सोनिया गाँधी एवं जार्ज सोरोस, दूसरे चित्र में जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी शाहिद लतीफ)

-- डॉ. विजय कुमार सिंघल
मार्गशीर्ष अमावस्या, सं. 2082 वि. (19 नवम्बर, 2025)🤔#

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